श्री महावीर स्वामी आरती
श्री महावीर स्वामी आरती
जय सन्मति देवा, प्रभु जय सन्मति देवा |वर्द्धमान महावीर वीर अति, जय संकट छेवा || टेक
सिद्धारथ नृप नन्द दुलारे, त्रिशला के जाये |
कुण्डलपुर अवतार लिया, प्रभु सुर नर हर्षाये || ऊँ जय0
देव इन्द्र जन्माभिषेक कर, उर प्रमोद भरिया |
रुप आपका लख नहिं पाये, सहस आंख धरिया ||ऊँ जय0
जल में भिन्न कमल ज्यों रहिये, घर में बाल यती |
राजपाट ऐश्वर्य छाँड सब, ममता मोह हती || ऊँ जय0
बारह वर्ष छद्मावस्था में, आतम ध्यान किया |
घाति-कर्म चकचूर, चूर प्रभु केवल ज्ञान लिया || ऊँ जय0
पावापुर के बीच सरोवर, आकर योग कसे |
हने अघातिया कर्म शत्रु सब, शिवपुर जाय बसे ||ऊँ जय0
भूमंडल के चांदनपुर में, मंदिर मध्य लसे |
शान्त जिनेश्वर मूर्ति आपकी, दर्शन पाप नसे || ऊँ जय0
करुणासागर करुणा कीजे, आकर शरण गही ||
दीन दयाला जगप्रतिपाला, आनन्द भरण तुही || ऊँ जय
श्री महावीर स्वामी की आरती में उनके जीवन की महानता और आध्यात्मिक गहराई का वर्णन है। वे वर्धमान महावीर के नाम से विख्यात हैं, जिन्होंने संसार के मोह-माया और संकटों को हराने का मार्ग दिखाया। राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में जन्म लेकर, उन्होंने सांसारिक वैभव त्याग कर आत्मज्ञान की प्राप्ति की। बारह वर्षों की कठोर तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ, जिससे वे समस्त अघातिया कर्मों से मुक्त हुए।
उनका जीवन सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय जैसे उच्चतम नैतिक मूल्यों का परिचायक है। उन्होंने न केवल अपने लिए, बल्कि सम्पूर्ण जीवों के लिए शांति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया। पावापुर के serene सरोवर के किनारे योग साधना करके उन्होंने संसार के बंधनों को तोड़ा और निर्वाण की प्राप्ति की। उनके जन्मस्थान कुण्डलपुर और निर्वाण स्थल पावापुर आज भी श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा के केंद्र हैं।
उनकी महिमा में कहा गया है कि देवता इंद्र ने उनका जन्माभिषेक किया और उनकी दिव्य छवि को सहसों आंखें भी निहार न सकीं। उन्होंने राजसी वैभव छोड़कर ममता और मोह से ऊपर उठकर जीवन को सरलता और तपस्या के मार्ग पर चलाया। छद्मावस्था में भी उन्होंने आत्म-ध्यान और ज्ञान की प्राप्ति की, जिससे वे संसार के अज्ञान और कर्मों से मुक्त हुए।
महावीर स्वामी की शिक्षाएँ आज भी आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक हैं। उनका संदेश अहिंसा, सत्य और सहिष्णुता का है, जो सभी जीवों के प्रति समान व्यवहार की प्रेरणा देता है। उनका जीवन यह बताता है कि सांसारिक सुखों का त्याग कर भी व्यक्ति उच्चतम आनंद और शांति प्राप्त कर सकता है। उनके आदर्शों को अपनाकर मनुष्य न केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए भी कल्याणकारी बनता है।