मेरा श्याम अपने दर पे आखो से मय पिलाए

मेरा श्याम अपने दर पे आखो से मय पिलाए

मेरा श्याम अपने दर पे,
आखो से मय पिलाए,
मोहन जिसे पिलाए,
उसे होश कैसे आये,

मीरा ने पीली मस्ती,
अपनी मिटा दी हसती,
दीवानी हो गयी वो,
ओर बावरी कहायी,
मेरा श्याम अपने दर पै,
आँखों से मय पिलाए.

पहले पिलायी नांदे को
सुद्ध बुध भुला दी उसने
फिर आप नन्दा बनकर
मोहन चरन दबाए
मेरा श्याम अपने दर पै,
आँखों से मय पिलाए.

हे दीन बंधू तेरी
ये दया नहीं तो क्या है
ठुकराए जिसको दुनिया
उसे तू गले लगाये
मेरा श्याम अपने दर पै,
आँखों से मय पिलाए.


सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रेम की अतुलनीय शक्ति को प्रदर्शित किया गया है। यह प्रेम कोई साधारण अनुराग नहीं, बल्कि आत्मा को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देने वाला दिव्य आकर्षण है। यह भाव मीरा की भक्ति की उस अवस्था को दर्शाता है, जहाँ प्रेम में डूबी आत्मा सांसारिक अस्तित्व को भूल जाती है। जब श्रीकृष्णजी की कृपा बरसती है, तब भक्त की सुध-बुध विलीन हो जाती है और केवल उनके प्रेम का आनंद शेष रहता है।

श्रद्धा और समर्पण की यह गहराई भक्त को श्रीकृष्णजी के अद्वितीय सान्निध्य तक ले जाती है, जहाँ न कोई मोह रहता है, न कोई भ्रम। संसार जिसे अस्वीकार कर देता है, उसे श्रीकृष्णजी गले लगाते हैं, क्योंकि उनका प्रेम सीमाओं से परे है।

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