मेरे गिनियो ना अपराध लाडली श्री राधे
मेरे गिनियो ना अपराध लाडली श्री राधे
मेरे गिनियो ना अपराध, लाडली श्री राधे |लाडली श्री राधे, किशोरी श्री राधे ||
माना कि मैं तो पतित बहुत हूँ |
पतितपावन तेरो नाम ||
जो तुम मेरे अवगुण देखो,
उनका नहीं है हिसाब ||
अष्ट सखिन मे, कोटि गोपीन मे,
लिख लीजो मेरा भी नाम ||
मेरे गिनियो ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे, लाड़ली श्री राधे,
किशोरी श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
माना कि मैं पतित बहुत हूँ,
है पतित पावन तेरो नाम,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
उन्हऊँ की दास दासिन मैं,
अरे लिख लीजो मेरो नाम,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
कोटि उमा रमा ब्रम्हाणी,
रमा ब्रम्हाणी उमा ब्रम्हाणी,
तेरे चरणों में पावें विश्राम,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
अवगुण मेरे नेक ना देखो,
नेक ना देखो नेक ना देखो,
अब ना है कोई हिसाब,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
लाड़ली श्री राधे, किशोरी श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
लाड़ली श्री राधे, लाड़ली श्री राधे,
किशोरी श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
माना कि मैं पतित बहुत हूँ,
है पतित पावन तेरो नाम,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
उन्हऊँ की दास दासिन मैं,
अरे लिख लीजो मेरो नाम,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
कोटि उमा रमा ब्रम्हाणी,
रमा ब्रम्हाणी उमा ब्रम्हाणी,
तेरे चरणों में पावें विश्राम,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
अवगुण मेरे नेक ना देखो,
नेक ना देखो नेक ना देखो,
अब ना है कोई हिसाब,
लाड़ली श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
लाड़ली श्री राधे, किशोरी श्री राधे,
मेरे गिनियों ना अपराध,
लाड़ली श्री राधे।
सुन्दर भजन “मेरे गिनियो ना अपराध, लाडली श्री राधे” में लाडली श्री राधारानी के प्रति भक्त की विनम्र प्रार्थना और उनके प्रेम में पूर्ण समर्पण का मार्मिक चित्रण है। भक्त अपनी कमियों और अपराधों को स्वीकार करते हुए राधे रानी से क्षमा माँगता है, यह जानते हुए कि वह पतितपावन हैं, जिनका नाम ही पापों को धो देता है। उसकी याचना है कि राधे रानी उसके अवगुणों का हिसाब न लगाएँ, क्योंकि वे अनगिनत हैं। जैसे एक बालक माता की गोद में अपनी गलतियों को भूलने की प्रार्थना करता है, वैसे ही भक्त राधे की कृपा के सामने नतमस्तक है। यह उद्गार सिखाता है कि सच्ची भक्ति में विनम्रता और प्रेम ही प्रभु के निकट ले जाते हैं।
भक्त अपनी तुच्छता को मानते हुए भी श्री राधे की अष्ट सखियों और कोटि गोपियों के बीच अपना नाम लिखने की कामना करता है। यह उसकी तीव्र लालसा को दर्शाता है कि वह राधारानी की भक्ति और प्रेम में शामिल हो सके। जैसे एक बूँद सागर में मिलकर पूर्ण हो जाती है, वैसे ही भक्त राधे रानी के प्रेम और कृपा में लीन होकर अपने जीवन को धन्य करना चाहता है। यह भाव प्रदर्शित करता है कि श्री राधे की कृपा हर पतित को पवित्र कर सकती है, और उनकी शरण में मिला स्थान ही भक्त के लिए सबसे बड़ा सौभाग्य है।
भक्त अपनी तुच्छता को मानते हुए भी श्री राधे की अष्ट सखियों और कोटि गोपियों के बीच अपना नाम लिखने की कामना करता है। यह उसकी तीव्र लालसा को दर्शाता है कि वह राधारानी की भक्ति और प्रेम में शामिल हो सके। जैसे एक बूँद सागर में मिलकर पूर्ण हो जाती है, वैसे ही भक्त राधे रानी के प्रेम और कृपा में लीन होकर अपने जीवन को धन्य करना चाहता है। यह भाव प्रदर्शित करता है कि श्री राधे की कृपा हर पतित को पवित्र कर सकती है, और उनकी शरण में मिला स्थान ही भक्त के लिए सबसे बड़ा सौभाग्य है।
बृज का पारम्परिक संगीत : बृज पारंपरिक लोक संगीत को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है: मौखिक रूप से प्रसारित संगीत के रूप में, अज्ञात संगीतकारों के रूप में या लंबे समय से स्थायी संगीत। यह शास्त्रीय और वाणिज्यिक शैलियों के विपरीत था। उत्तर प्रदेश का लोक संगीत हर मनोदशा और हर अवसर के लिए गीत है। लोक गीतों ने सामूहिक जीवन और सामूहिक श्रम को अधिक सुखद बना दिया। वे पीढ़ी से पीढ़ी तक मौखिक रूप से पारित किए गए थे।
1. सोहर यह ऐसा रूप है जो जीवन-चक्र के प्रदर्शन का हिस्सा है। इसे एक बच्चे के जन्म का जश्न मनाने के लिए गाया जाने वाला रूप बताया गया है।
छापक पेड़ छिउलिया त पतवन धनवन हो
तेहि तर ठाढ़ हिरिनिया त मन अति अनमन हो।।
चरतहिं चरत हरिनवा त हरिनी से पूछेले हो
हरिनी ! की तौर चरहा झुरान कि पानी बिनु मुरझेलु हो।।
नाहीं मोर चरहा झुरान ना पानी बिनु मुरझींले हो
हरिना ! आजु राजा के छठिहार तोहे मारि डरिहें हो।।
मचियहिं बइठल कोसिला रानी, हरिनी अरज करे हो
रानी ! मसुआ त सींझेला रसोइया खलरिया हमें दिहितू नू हो।।
पेड़वा से टाँगबो खलरिया त मनवा समुझाइबि हो
रानी ! हिरी-फिरी देखबि खलरिया जनुक हरिना जियतहिं हो
जाहु हरिनी घर अपना, खलरिया ना देइब हो
हरिनी ! खलरी के खँजड़ी मढ़ाइबि राम मोरा खेलिहेनू हो।।
जब-जब बाजेला खँजड़िया सबद सुनि अहँकेली हो
हरिनी ठाढि ढेकुलिया के नीचे हरिन के बिजूरेली हो।।
2. कहारवा यह विवाह के समय कहार जाति द्वारा गाया जाता है।
3. चनैनी एक प्रकार का नृत्य संगीत
4. नौका झक्कड़ यह नाई समुदाय में बहुत लोकप्रिय है और इसे नाई गीत के रूप में माना जाता है।
भारत की विभिन्न भाषाओं की पहली फिल्म
5. बंजारा और नजवा संगीत का यह रूप रात के समय तेली समुदाय के लोगों द्वारा गाया जाता है।
6. कजली या कजरी इसे सावन के महीने में महिलाओं द्वारा गाया जाता है। यह अर्ध-शास्त्रीय गायन के रूप में भी विकसित हुआ और इसकी गायन शैली बनारस घराने से निकटता से जुड़ी हुई है।
7. जरेवा और सदवाजरा सारंगा संगीत का यह रूप लोक-पत्थरों के लिए गाया जाता है।
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6. कजली या कजरी इसे सावन के महीने में महिलाओं द्वारा गाया जाता है। यह अर्ध-शास्त्रीय गायन के रूप में भी विकसित हुआ और इसकी गायन शैली बनारस घराने से निकटता से जुड़ी हुई है।
7. जरेवा और सदवाजरा सारंगा संगीत का यह रूप लोक-पत्थरों के लिए गाया जाता है।