कैसी जादू डारी मीरा बाई पदावली

कैसी जादू डारी मीरा बाई पदावली

 
कैसी जादू डारी मीरा बाई पदावली

 कैसी जादू डारी
कैसी जादू डारी। अब तूने कैशी जादु॥टेक॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी॥१॥
वृंदाबन कुंजगलीनमों। लुटी गवालन सारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलहारी॥३॥
 
श्याम का वह जादुई रूप मन को ऐसा बांध लेता है, जैसे कोई मंत्र आत्मा पर छा जाए। मोर-मुकुट, पीतांबर, और कानों में झूलते कुंडल की छवि इतनी अनुपम है कि नजर हटती ही नहीं। वृंदावन की कुंज-गलियों में उनकी लीला ने हर ग्वालिन के हृदय को लूट लिया, मानो प्रेम का रंग हर किसी पर चढ़ गया हो।

मीरा का मन उनके चरण-कमलों में रम गया, जहां हर सांस उनके प्रति समर्पण बन जाती है। जैसे कोई दीपक हवा में भी स्थिर जलता रहे, वैसे ही यह भक्ति का जादू है, जो सारे संसार को भुलाकर केवल गिरिधर के प्रेम में डुबो देता है। यह प्रेम ही वह सत्य है, जो जीवन को सार्थक बनाता है।
 

Bhakti Padawali (Meera Ke Bhajan) /भक्ति पदावली (मीरा के भजन)

मूल भाव माधुर्य से पूर्ण है—जहाँ आकर्षण के रहस्य में बंधा मन बार–बार उसी ओर खिंच जाता है, जो अपने दिव्य रूप, अलौकिक छवि और सौन्दर्य के तेज से समस्त संसार को मन्त्रमुग्ध कर लेता है। यह ज्योति, यह छवि आत्मा की गहराइयों को छू जाती है; सारी गली–गली, वृंदावन की कुंज–कुंज, जीवन के हर मोड़ पर ये स्वरूप अपनी झलक से मन में नवस्फूर्ति और आनंद जगाता है।  

यह अद्भुत जादू केवल बाहरी वेशभूषा या आभूषणों में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण व्यवहार, दृष्टि और आत्मा के प्रेमिल समर्पण में झलकता है—जिसके चरणों में तन–मन निःशर्त समर्पण हो जाता है। यह छवि जब मन के भीतर उतरती है, तब हृदय के कोनों–कोनों में सुधा अमृत सा प्रेम बहता है। उस रूप, उस कृपा के सम्मुख मन बार–बार अपना बल न्योछावर करता है—और महसूस करता है कि यही आनंद, यही खिंचाव सृष्टि के सबसे महान रहस्य हैं, जो हर युग, हर भक्त के जीवित अनुभव बन जाते हैं।
 
 कैसी जादू डारी
कैसी जादू डारी। अब तूने कैशी जादु॥टेक॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी॥१॥
वृंदाबन कुंजगलीनमों। लुटी गवालन सारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलहारी॥३॥
 
मेरी लाज तुम रख भैया । नंदजीके कुंवर कनैया ॥ध्रु०॥
बेस प्यारे काली नागनाथी । फेणपर नृत्य करैया ॥ मे० ॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे । मुखपर मुरली बजैया ॥ मे० ॥२॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे । कान कुंडल झलकैया ॥ मे० ॥३॥
ब्रिंदावनके कुंज गलिनमें नाचत है दो भैया ॥ मे० ॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल लपटैया ॥ ने० ॥५॥

मन मोहन दिलका प्यारा ॥ध्रु०॥
माता जसोदा पालना हलावे । हातमें लेकर दोरा ॥१॥
कबसे अंगनमों खडी है राधा । देखे किसनका चेहरा ॥२॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे । गळा मोतनका गजरा ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरन कमल बलहारी ॥४॥

काना तोरी घोंगरीया पहरी होरी खेले किसन गिरधारी ॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी ॥२॥
आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी ॥३॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी ॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी ॥५॥

भीजो मोरी नवरंग चुनरी । काना लागो तैरे नाव ॥ध्रु०॥
गोरस लेकर चली मधुरा । शिरपर घडा झोले खाव ॥१॥
त्रिभंगी आसन गोवर्धन धरलीयो । छिनभर मुरली बजावे ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरन कमल चित लागो तोरे पाव ॥३॥ 
 
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