अब तौ हरी नाम लौ लागी मीरा बाई पदावली
अब तौ हरी नाम लौ लागी मीरा बाई पदावली
अब तौ हरी नाम लौ लागी
अब तौ हरी नाम लौ लागी।।टेक।।
सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्यो बैरागी॥
कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
गौर कृष्ण की दासी मीरा, रसना कृष्ण बसै॥
(कटि=कमर, पीतांबर=पीले वस्त्रों वाला)
अब तौ हरी नाम लौ लागी।।टेक।।
सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्यो बैरागी॥
कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
गौर कृष्ण की दासी मीरा, रसना कृष्ण बसै॥
(कटि=कमर, पीतांबर=पीले वस्त्रों वाला)
मन जब प्रभु के नाम में रम जाता है, तो सारी दुनिया पीछे छूट जाती है। यह प्रेम वह रस्सी है, जो आत्मा को संसार के बंधनों से खींचकर प्रभु के चरणों तक ले जाती है। वह माखनचोर, जो सबके मन को चुरा लेता है, बैरागी बनकर भी हृदय में बसता है। उसका नाम ही वह मंत्र है, जो हर दुख को हर लेता है।
मोहन की मुरली, गोपियों का साथ, ये सब छूट जाता है, जब आत्मा वैराग्य की राह पर चल पड़ती है। मूँड़ मुड़ाकर, कमर में डोर बाँधकर, सादगी की टोपी पहनकर, वह प्रभु का सच्चा भक्त बन जाता है। जैसे कोई यात्री अनावश्यक बोझ छोड़कर हल्का हो जाता है, वैसे ही यह मन केवल प्रभु के नाम का आलंबन लेता है।
जसोदा का लाल, जो माखन के लिए बँधता था, वही श्याम अब चैतन्य बनकर आत्मा को जागृत करता है। उसका गौर वर्ण, पीतांबर का भाव, और कटि की कौपीन यह दिखाती है कि सच्ची भक्ति में बाहरी वैभव नहीं, मन की शुद्धता मायने रखती है। जैसे सूरज की किरणें हर कोने को रोशन करती हैं, वैसे ही यह प्रेम हृदय को आलोकित करता है।
प्रभु की दासी का जीवन केवल उसी के रंग में रंगा है। उसकी रसना, उसका मन, उसका रोम-रोम केवल प्रभु के नाम से सराबोर है। यह भक्ति वह नदी है, जो बहते-बहते सागर में मिल जाती है, और फिर उसका अपना कोई अलग वजूद नहीं रहता। प्रभु का नाम ही उसका सच्चा साथी, सच्चा धन, और सच्चा सुख बन जाता है।
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