वह रंग अब कहाँ है नसरीनो नसरतन
वह रंग अब कहाँ है नसरीनो नसरतन में
वह रंग अब कहाँ है, नसरीनो नसरतन मेंवह रंग अब कहाँ है, नसरीनो नसरतन में ।
उजड़ा पड़ा हुआ है, क्या खाक है वतन में ।
कुछ आरज़ू नहीं है, है आरज़ू तो यह है,
रख दे कोई जरा-सी, खाके-वतन कफन में ।
ए पुखतारे-उलफत, होशियार डिग न जाना,
मेराजे आशकां है, इस दार और रसन में ।
था नाराये अनल हक़, और द्वाए-मुहब्बत,
रखा हुआ था और क्या, मंसूरों को हकन में ।
मौत और ज़िंदगी है, दुनिया का एक तमाशा,
फरमान कृष्ण का था, अर्जुन को बीच रन मे ।
जिसने हिला दिया था, दुनिया को एक पल में,
अफ़सोस क्यों नहीं है, वह रूह अब वतन में ।
ऐ ख़ायनीने मिल्लत, ये खूब याद रखना,
हैं बोस और कन्हाई, अब भी बहुत वतन में ।
सैयाद ज़ुल्मपेशा आया है जब से हसरत,
हैं बुलबुलें कफस में जागो जगन चमन में ।
इस देशभक्ति गीत में वतन के खोए रंग और उसकी पीड़ा का गहरा उदगार है। नसरीन और नसरतन की वह रौनक अब उजड़े चमन की तरह वीरान है, जो देश के गौरव के पतन को दर्शाता है। भक्त की एकमात्र आरजू है कि मृत्यु के बाद भी वतन की मिट्टी कफन में बंधे, जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रिय की स्मृति को हृदय में संजोए रखता है।
प्यार का मेराज और अनल हक की पुकार मंसूर की तरह आज भी वतन के लिए बलिदान की प्रेरणा देती है। श्रीकृष्णजी का अर्जुन को दिया संदेश कि जीवन और मृत्यु एक तमाशा है, यह सिखाता है कि वतन के लिए संघर्ष में डर का स्थान नहीं। गीत यह प्रश्न उठाता है कि वह आत्मा, जिसने कभी दुनिया को हिला दिया था, अब वतन में क्यों नहीं जागती। यह पुकार है कि देशवासी जुल्म के खिलाफ बुलबुल की तरह चमन में जागें, क्योंकि बोस और कन्हाई जैसे प्रेम और बलिदान के प्रतीक आज भी वतन में मौजूद हैं। यह भाव आत्मा को प्रेरित करता है कि वतन की शान को पुनर्जनन करने के लिए एकता और संघर्ष ही मार्ग है, जो शांति और गर्व की ओर ले जाता है।