वह रंग अब कहाँ है नसरीनो नसरतन

वह रंग अब कहाँ है नसरीनो नसरतन में

वह रंग अब कहाँ है, नसरीनो नसरतन में
वह रंग अब कहाँ है, नसरीनो नसरतन में ।
उजड़ा पड़ा हुआ है, क्या खाक है वतन में ।

कुछ आरज़ू नहीं है, है आरज़ू तो यह है,
रख दे कोई जरा-सी, खाके-वतन कफन में ।

ए पुखतारे-उलफत, होशियार डिग न जाना,
मेराजे आशकां है, इस दार और रसन में ।

था नाराये अनल हक़, और द्वाए-मुहब्बत,
रखा हुआ था और क्या, मंसूरों को हकन में ।

मौत और ज़िंदगी है, दुनिया का एक तमाशा,
फरमान कृष्ण का था, अर्जुन को बीच रन मे ।

जिसने हिला दिया था, दुनिया को एक पल में,
अफ़सोस क्यों नहीं है, वह रूह अब वतन में ।

ऐ ख़ायनीने मिल्लत, ये खूब याद रखना,
हैं बोस और कन्हाई, अब भी बहुत वतन में ।

सैयाद ज़ुल्मपेशा आया है जब से हसरत,
हैं बुलबुलें कफस में जागो जगन चमन में ।

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