जानिये क्या है आदित्यहृदयं स्त्रोतम : आदित्य स्त्रोत श्री अगत्स्य ऋषि के द्वारा श्री राम को रावण युद्ध के दौरान रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए दिया गया था जिसका वर्णन वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में मिलता है। इस स्त्रोत को आज से लगभग बीस हजार साल पहले वाल्मीकि के काल में रचित किया गया था। इस स्त्रोत में ३१ श्लोक हैं। यह स्त्रोत मूलतः भगवान् श्री शिव की स्तुति है एंव उनसे एक प्रकार की विनती है जिससे वो रक्षा करें। यह मूलतः भगवान् श्री राम की विजय को सुनिश्चित करने के लिए लिखा गया था। यहाँ उल्लेखनीय है की राम के द्वारा रावण को मारना असंभव था क्यों की रावण भी महा ब्राह्मण था और कई शक्तियों का मालिक था। अगत्स्य ऋषि ने तब गूढ़ शक्तियों का खुलाशा कर श्री राम को उनके बारे में बताया और यह विद्या दी जिसके माध्यम से श्री राम रावण का अंत करने में सबल हो पाए। अगत्स्य ऋषि ने कहा की दिवस में तीन बार इसके पाठ से मनवांछित परिणाम प्राप्त होते हैं। इसका पहला स्त्रोत भगवन श्री राम जी के आगमन को दर्शाता है।
आदित्यहृदयं स्त्रोतम पाठ के लाभ : इसके नियमित पाठ से शत्रुओं का अंत होता है, दुष्ट शत्रु चाहे जितना भी महाबली क्यों ना हो उसकी पराजय सुनिश्चित है। जातक को मानसिक शांति प्राप्त होती है और शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। अनेकों प्रयत्नों के बाद भी बार बार मिलने वाली ससफलताओं से मुक्ति मिलती है और सौभाग्य प्राप्त होता है। श्री सूर्यदेव की उपासना के माध्यम से हमें विजयी मार्ग पर ले जाने की विनती की जाती है। आदित्य हृदय स्तोत्र से सभी प्रकार के पाप काटते है और शत्रुओं का नाश होता है। यह स्त्रोत सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है।
अर्थ : श्री राम युद्ध भूमि में थककर खड़े हैं और चिंत में दुबे हुए हैं, इतने में ही रावण श्री राम के सामने खड़ा हो गया इस पर ऋषि आगतस्य श्री राम के समीप जाकर बोलते हैं।
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
अर्थ : हे राम तुम सबके हृदय में वाश करते हो मेरा यह गोपनीय स्त्रोत सुनो। इस गोपनीय स्त्रोत के जाप से तुम शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हो।
अर्थ : इस स्त्रोत का नाम आदित्यहृदय है जो की गोपनीय है। यह परम शत्रुओं का नाश करने वाला स्त्रोत है। यह स्त्रोत सदा विजय दिलवाता है और परम कल्याणकारी है। यह मंगल से भी मंगल स्त्रोत है। आदित्यहृदय स्त्रोत से सभी शत्रु पराजित होते हैं और यह सब पापों का नाश कर देता है। आदित्यहृदय स्त्रोत चिंता और शोक को समाप्त कर देता है। यह स्त्रोत आयु वृद्धि करने वाला है।
अर्थ : यह स्त्रोत भगवान् श्री सूर्य देव की अनंत किरणों से युक्त है जो नित्य उदय होने वाले देवता हैं। भगवान् सूर्य संसार के स्वामी हैं और असुर भी उनको नमस्कार करते हैं। आप इनकी पूजा करो।
अर्थ : सारे देवता गण इनके ही स्वरुप हैं और भगवान् सूर्य अपनी किरणों से समस्त संसार को ऊर्जा और स्फूर्ति देते हैं। भगवान् सूर्य देव अपनी तेजमय किरणों से सुर और असुर तथा समस्त सृष्टि के पालनहार हैं।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
अर्थ : भगवान् सूर्य ही सारे देव हैं यथा ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश प्रदान करने वाले हैं।
अर्थ : भगवान् सूर्य देव को कई नाम से जाना जाता है। इनके नाम हैंआदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग, पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व, सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति (सात घोड़ों वाले), मरीचिमान (किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान, हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है
अर्थ : आप ही जयस्वरूप और कल्याण के प्रदाता हो तथा आपके रथ आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं । सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य ! आपको बारम्बार प्रणाम है । आप अदिति के पुत्र हैं और आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमन है ।
अर्थ : हे सूर्यदेव आप ब्रह्म विष्णु शिव के स्वामी हो। आपकी संज्ञा सूर है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमन है ।
अर्थ : आप अन्धकार और अज्ञान का नाश करने वाले हो। आप शत्रु का नाश करने वाले हो और आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमन है ।
अर्थ : रघुनन्दन ! ये भगवान् सूर्य आप ही संपूर्ण भूतों का संहार करने वाले हैं, आप ही सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं ।
अर्थ : श्री सूर्यदेव समस्त भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं ।
अर्थ : श्री सूर्य देव ही देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं ।
अर्थ : हे राम श्री सूर्य देव का जो भी विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर सुमिरन और पूजा करता है उसे किसी प्रकार के दुःख का सामना नहीं करना पड़ता है।
अर्थ :भगवान् सूर्य का उपदेश सुनकर श्री रामकी चिंता समाप्त हो गयी और श्री राम ने पवित्र मन से स्त्रोत को धारण किया। श्री राम ने तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जाप किया । इससे भगवान् श्री राम को बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे । उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया ।
अर्थ : भगवान् सूर्य जो की देवताओं के मध्य में खड़े हुए थे ने खुश होकर श्रीरामचन्द्रजी की देखकर कहा ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’ । इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र संपन्न होता है ।
मकर संक्रांति के रोज इस स्त्रोत का जाप करने से अत्यंत लाभ मिलता है। यह स्त्रोत अवश्य ही आपको विजय दिला सकेगा। इसके नियमित पाठ से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति आशा से ओत प्रोत हो जाता है। आपके जीवन में खुशियां आती है और सुख समृद्धि आती है। अंत में कहे तो इसके पाठ से वयक्ति निरोगी होता है और लम्बी आयु प्राप्त होती है।
आदित्य हृदय स्तोत्र के कुछ मुख्य लाभ इस प्रकार हैं:
स्तोत्र के नित्य जाप से सभी कष्टों से मुक्तिमिलती है.
यह स्तोत्र भक्तों को शक्ति, बुद्धि, और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
विधि विधान से जाप करने पर हर प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है.
इसके नित्य जाप से मानसिक शांति प्राप्त होती है.
आदित्य हृदय स्तोत्र एक बहुत ही शक्तिशाली और पवित्र स्तोत्र है, और इसका पाठ करने से आपको सूर्य भगवान् जी की असीम कृपा प्राप्त होगी.
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