मारुति स्तोत्र अर्थ महत्त्व और जाप विधि

मारुति स्तोत्र, भगवान श्री राम जी के परम भक्त पवन पुत्र हनुमान जी को समर्पित एक स्तोत्र है। यह स्तोत्र समर्थ रामदास स्वामी द्वारा रचित है। मारुति स्तोत्र में, हनुमान जी की महिमा का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से बचाते हैं। मारुति  स्तोत्र के 10 श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक में, हनुमान जी के एक विशेष गुण का वर्णन किया गया है।

मारुति स्तोत्र लिरिक्स मीनिंग Maruti Stotra Lyrics Meaning

मारुति स्तोत्र जानिये अर्थ महत्त्व और जाप विधि

Meaning
भीमरूपी महारुद्रा वज्र हनुमान मारुती। वनारी अंजनीसूता रामदूता प्रभंजना॥१॥
भीमरूपी महारुद्रा: जिनका रूप भीम (महान) और रुद्र (भयंकर) है।
वज्र हनुमान मारुती: जो वज्र के समान कठोर शरीर वाले हनुमान हैं, जो पवनपुत्र (मारुति) हैं।
वनारी अंजनीसूता: जो वानर (बंदर) हैं और माता अंजनी के पुत्र हैं।
रामदूता प्रभंजना: जो भगवान राम के दूत हैं और संकटों का नाश करने वाले हैं।
 
महाबली प्राणदाता सकळां उठवी बळें। सौख्यकारी शोकहर्ता धूर्त वैष्णव गायका॥२॥
महाबली प्राणदाता: जो महान बलशाली हैं और जीवनदाता हैं।
सकळां उठवी बळें: जो सभी को अपनी शक्ति से उठाते हैं।
सौख्यकारी शोकहर्ता: जो सुख देने वाले और शोक (दुःख) हरने वाले हैं।
धूर्त वैष्णव गायका: जो चतुर वैष्णव (भगवान विष्णु के भक्त) हैं और उनकी स्तुति गाते हैं।
 
दीननाथा हरीरूपा सुंदरा जगदंतरा। पाताळ देवता हंता भव्य सिंदूर लेपना॥३॥
दीननाथा हरीरूपा: जो दीनों (गरीबों) के स्वामी हैं और हरि (विष्णु) के रूप हैं।
सुंदरा जगदंतरा: जो सुंदर हैं और जगत (संसार) के अंतर में व्याप्त हैं।
पाताळ देवता हंता: जो पाताल (नरक) के देवताओं के संहारक हैं।
भव्य सिंदूर लेपना: जो भव्य सिंदूर का लेप धारण करते हैं।
 
लोकनाथा जगन्नाथा प्राणनाथा पुरातना। पुण्यवंता पुण्यशीला पावना परितोषका॥४॥
लोकनाथा जगन्नाथा: जो लोक (दुनिया) के स्वामी और जगत के स्वामी हैं।
प्राणनाथा पुरातना: जो जीवन के स्वामी और प्राचीन हैं।
पुण्यवंता पुण्यशीला: जो पुण्यवान और पुण्यशील हैं।
पावना परितोषका: जो पवित्र और संतोष देने वाले हैं।
 
ध्वजांगे उचली बाहू आवेशें लोटला पुढें। काळाग्नि काळरुद्राग्नि देखतां कांपती भयें॥५॥
ध्वजांगे उचली बाहू: जिन्होंने अपने ध्वज (झंडे) पर भुजाएं उठाई हैं।
आवेशें लोटला पुढें: जो आवेश (उत्साह) में आगे बढ़ते हैं।
काळाग्नि काळरुद्राग्नि: जो कालाग्नि (प्रलय की अग्नि) और कालरुद्र (महान रुद्र) की अग्नि के समान हैं।
देखतां कांपती भयें: जिन्हें देखकर भय से कांपते हैं।
 
ब्रह्मांड माईला नेणों आवळें दंतपंगती। नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा भृकुटी त्राहिटिल्या बळें॥६॥
ब्रह्मांड माईला नेणों: जो ब्रह्मांड की माया को नहीं जानते।
आवळें दंतपंगती: जिनके दांतों की पंक्तियाँ मजबूत हैं।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा: जिनकी नेत्रों की अग्नि से ज्वालाएँ निकलती हैं।
भृकुटी त्राहिटिल्या बळें: जिनकी भृकुटी (भौंहें) बल से तनी हुई हैं।
 
पुच्छ तें मुरडिलें माथां, किरीटी कुंडलें बरीं। सुवर्णकटीकासोटी, घंटा किंकिणी नागरा॥७॥
पुच्छ तें मुरडिलें माथां: जिनकी पूंछ मस्तक पर लिपटी हुई है।
किरीटी कुंडलें बरीं: जो मुकुट और सुंदर कुंडलों से सुशोभित हैं।
सुवर्णकटीकासोटी: जिनकी कमर स्वर्ण (सोने) की करधनी से बंधी है।
घंटा किंकिणी नागरा: जो घंटा, किंकिणी (छोटी घंटियाँ) और नूपुर (पायल) धारण किए हुए हैं।

ठकारे पर्वताऐसा, नेटका सडपातळू। चपळांग पाहतां मोठें, महाविद्युल्लतेपरी॥८॥
ठकारे पर्वताऐसा: जो पर्वत के समान स्थिर हैं।
नेटका सडपातळू: जिनका शरीर सुडौल और पतला है।
चपळांग पाहतां मोठें: जिनके अंग चपल (फुर्तीले) हैं और देखने में विशाल हैं।
महाविद्युल्लतेपरी: जो महान विद्युत (बिजली) की लहर के समान हैं।

कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे। मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधे उत्पाटिला बळें॥९॥
कोटिच्या कोटि उड्डाणें: जो करोड़ों की संख्या में उड़ान भर सकते हैं।
झेपावे उत्तरेकडे: जो उत्तर दिशा की ओर छलांग लगा सकते हैं।
मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू: जिन्होंने मंद्राचल पर्वत के समान द्रोणगिरि को।
क्रोधे उत्पाटिला बळें: क्रोध में अपनी शक्ति से उखाड़ लिया।

आणिता मागुता नेला, गेला आला मनोगती। मनासी टाकिलें मागें, गतीस तूळणा नसे॥१०॥

आणिता मागुता नेला: जो लाने और ले जाने में सक्षम हैं।
गेला आला मनोगती: जो मन की गति से जा और आ सकते हैं।
मनासी टाकिलें मागें: जिन्होंने मन को पीछे छोड़ दिया है।
गतीस तूळणा नसे: जिनकी गति की तुलना नहीं की जा सकती।

अणूपासोनि ब्रह्मांडा, येवढा होत जातसे। तयासी तुळणा कोठें, मेरु- मांदार धाकुटे॥११॥
अणूपासोनि ब्रह्मांडा: जो अणु (सूक्ष्म) से लेकर ब्रह्मांड के आकार तक हो सकते हैं।
येवढा होत जातसे: जो इतने बड़े होते जाते हैं।
तयासी तुळणा कोठें: जिनकी तुलना कहीं नहीं है।
मेरु- मांदार धाकुटे: जिनके सामने मेरु और मंदराचल पर्वत छोटे लगते हैं।

ब्रह्मांडाभोंवते वेढे, वज्रपुच्छें करूं शके। तयासी तुळणा कैंची, ब्रह्मांडीं पाहतां नसे॥१२॥
ब्रह्मांडाभोंवते वेढे: जो ब्रह्मांड के चारों ओर घूम सकते हैं।
वज्रपुच्छें करूं शके: जो अपनी वज्र के समान पूंछ से कर सकते हैं।
तयासी तुळणा कैंची: जिनकी तुलना किससे की जा सकती है।
ब्रह्मांडीं पाहतां नसे: जिन्हें ब्रह्मांड में देखा नहीं जा सकता।

आरक्त देखिले डोळां, ग्रासिलें सूर्यमंडळा। वाढतां वाढतां वाढे, भेदिलें शून्यमंडळा॥१३॥
आरक्त देखिले डोळां: जिनकी आँखें रक्तवर्ण (लाल) हैं।
ग्रासिलें सूर्यमंडळा: जिन्होंने सूर्य मंडल को ग्रस लिया।
वाढतां वाढतां वाढे: जो बढ़ते ही जा रहे हैं।
भेदिलें शून्यमंडळा: जिन्होंने शून्य (आकाश) मंडल को भेद दिया।
 
धनधान्य पशुवृद्धि पुत्रपौत्र समग्रही। पावती रूपविद्यादि स्तोत्रपाठें करूनियां॥१४॥
धनधान्य पशुवृद्धि पुत्रपौत्र समग्रही: जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे धन, धान्य, पशुधन, पुत्र-पौत्र आदि सभी प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है।
पावती रूपविद्यादि स्तोत्रपाठें करूनियां: इस स्तोत्र के पाठ से रूप, विद्या आदि की भी प्राप्ति होती है।

भूतप्रेतसमंधादि रोगव्याधि समस्तही। नासती तुटती चिंता आनंदे भीमदर्शनें॥१५॥
भूतप्रेतसमंधादि रोगव्याधि समस्तही: इस स्तोत्र के पाठ से भूत-प्रेत, समंध (बाधाएं) और सभी प्रकार के रोग-व्याधि नष्ट हो जाते हैं।
नासती तुटती चिंता आनंदे भीमदर्शनें: सभी चिंताएं समाप्त होती हैं और भीम (हनुमान) के दर्शन से आनंद की प्राप्ति होती है।

हे धरा पंधराश्लोकी लाभली शोभली बरी। दृढदेहो, निःसंदेहो संख्या चंद्रकला गुणें॥१६॥
हे धरा पंधराश्लोकी लाभली शोभली बरी: इस पंद्रह श्लोकों वाले स्तोत्र को धारण करने से (पाठ करने से) लाभ और शोभा प्राप्त होती है।
दृढदेहो, निःसंदेहो संख्या चंद्रकला गुणें: इससे शरीर दृढ़ होता है, इसमें कोई संदेह नहीं; यह चंद्रमा की कलाओं की संख्या (१६) के गुणों के समान है।

रामदासीं अग्रगण्यू कपिकुळासि मंडणू। रामरूपी अन्तरात्मा दर्शने दोष नासती॥१७॥
रामदासीं अग्रगण्यू कपिकुळासि मंडणू: हनुमान रामदासों (राम के भक्तों) में अग्रगण्य हैं और वानर कुल के आभूषण हैं।
रामरूपी अन्तरात्मा दर्शने दोष नासती: राम के रूप में अंतरात्मा हैं; उनके दर्शन से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।

समाप्ति: ॥इति श्री रामदासकृतं संकटनिरसनं नाम श्री मारुतिस्तोत्रम् संपूर्णम्॥
यह श्री रामदास द्वारा रचित 'संकटनिरसन' नामक श्री मारुति स्तोत्र पूर्ण हुआ।

जाप विधि

मारुति  स्तोत्र का पाठ करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं हैं। इसे किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। हालांकि, यदि आप इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करते हैं, तो आपको इसके अधिक लाभ प्राप्त होंगे। मारुति  स्तोत्र का पाठ करने का सबसे अच्छा समय सुबह जल्दी उठकर है। इस समय हनुमान जी की कृपा सबसे अधिक होती है। आप इस स्तोत्र का पाठ किसी भी भाषा में कर सकते हैं। हालांकि, यदि आप संस्कृत में पाठ करते हैं, तो आपको इसका अधिक लाभ मिलेगा।

मारुति  स्तोत्र का पाठ करने से पहले, आपको हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। आप उन्हें फूल, फल, मिठाई आदि अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद, आप हनुमान जी की आरती कर सकते हैं।

मारुति स्तोत्र


॥ मारुति स्तोत्र ॥
भीमरूपी महारुद्रा वज्र हनुमान मारुती ।
वनारी अन्जनीसूता रामदूता प्रभंजना ॥१॥
महाबळी प्राणदाता सकळां उठवी बळें ।
सौख्यकारी दुःखहारी (शोकहर्ता) (धूर्त) दूत वैष्णव गायका ॥२॥
दीननाथा हरीरूपा सुंदरा जगदंतरा ।
पातालदेवताहंता भव्यसिंदूरलेपना ॥३॥
लोकनाथा जगन्नाथा प्राणनाथा पुरातना ।
पुण्यवंता पुण्यशीला पावना परितोषका ॥४॥
ध्वजांगें उचली बाहो आवेशें लोटला पुढें ।
काळाग्नि काळरुद्राग्नि देखतां कांपती भयें ॥५॥
ब्रह्मांडें माइलीं नेणों आंवाळे दंतपंगती ।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा भ्रुकुटी ताठिल्या बळें ॥६॥
पुच्छ तें मुरडिलें माथां किरीटी कुंडलें बरीं ।
सुवर्ण कटि कांसोटी घंटा किंकिणि नागरा ॥७॥
ठकारे पर्वता ऐसा नेटका सडपातळू ।
चपळांग पाहतां मोठें महाविद्युल्लतेपरी ॥८॥
कोटिच्या कोटि उड्डाणें झेंपावे उत्तरेकडे ।
मंदाद्रीसारखा द्रोणू क्रोधें उत्पाटिला बळें ॥९॥
आणिला मागुतीं नेला आला गेला मनोगती ।
मनासी टाकिलें मागें गतीसी तूळणा नसे ॥१०॥
अणूपासोनि ब्रह्मांडाएवढा होत जातसे ।
तयासी तुळणा कोठें, मेरु- मांदार धाकुटे ॥११॥
ब्रह्मांडाभोंवते वेढे वज्रपुच्छें करूं शके ।
तयासी तुळणा कैंची ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ॥१२॥
आरक्त देखिले डोळां ग्रासिलें सूर्यमंडळा ।
वाढतां वाढतां वाढे भेदिलें शून्यमंडळा ॥१३॥
धनधान्य पशुवृद्धि पुत्रपौत्र समग्रही ।
पावती रूपविद्यादि स्तोत्रपाठें करूनियां ॥१४॥
भूतप्रेतसमंधादि रोगव्याधि समस्तही ।
नासती तुटती चिंता आनंदे भीमदर्शनें ॥१५॥
हे धरा पंधराश्लोकी लाभली शोभली बरी ।
दृढदेहो, निःसंदेहो संख्या चंद्रकला गुणें ॥१६॥
रामदासीं अग्रगण्यू कपिकुळासि मंडणू ।
रामरूपी अन्तरात्मा दर्शने दोष नासती ॥१७॥
॥इति श्री रामदासकृतं संकटनिरसनं नाम ॥
॥ श्री मारुतिस्तोत्रम् संपूर्णम् ॥

मारुति स्तोत्र Maruti Stotra क्या है ?

मारुति स्तोत्र Maruti Stotra भगवान श्री हनुमान जी को समर्पित एक स्तुति है। पवन पुत्र हनुमान जी को समर्पित यह स्तुति अयंत ही प्रभावशाली और शुभ फल देने वाली है। इस स्तुति के पाठ से श्री हनुमान जी का आशीर्वाद सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। श्री हनुमान जी की कृपा से जातक शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त करता है और जीवन के हरेक क्षेत्र में सफल होता है क्योंकि हनुमान जी अष्ट सिद्धि और नव निधि के दाता हैं। 
भीमरूपी महारुद्रा वज्र हनुमान मारुती ।
वनारी अन्जनीसूता रामदूता प्रभंजना ॥१॥



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