रक्षा कवच है श्री रामरक्षा स्तोत्र संपूर्ण अर्थ जानिये

श्रीराम रक्षास्तोत्रम् लिरिक्स Ramraksha Stotra Ram Bhajan Meaning


श्रीरामरक्षास्तोत्रम् लिरिक्स Ramraksha Stotra Lyrics
 
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: ।
सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं, रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
 
श्री राम रक्षा स्तोत्र भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का एक अनमोल रत्न है। इसे सुनने, पढ़ने और जपने से जीवन के हर क्षेत्र में रक्षा और सफलता मिलती है। इस स्तोत्र की रचना ऋषि बुधकौशिक ने की थी। यह कहा जाता है कि भगवान शंकर ने स्वप्न में स्वयं इसका उपदेश ऋषि को दिया था। इस स्तोत्र में भगवान श्री राम के दिव्य स्वरूप, उनकी अद्भुत लीलाओं और शक्ति का वर्णन किया गया है।

"अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। 
श्रीसीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप् छन्दः। सीता शक्ति। 
श्रीमद् हनुमान कीलकम्।"

श्री राम रक्षा स्तोत्र का उद्देश्य भगवान श्रीराम की कृपा और सुरक्षा प्राप्त करना है। इसकी रचना बुधकौशिक ऋषि ने की है। इस स्तोत्र के देवता श्रीराम और सीता माता हैं। अनुष्टुप छंद का उपयोग इसमें किया गया है। माता सीता इसकी शक्ति हैं, और हनुमान जी इसके रक्षक। इस स्तोत्र का पाठ भगवान श्रीराम की प्रसन्नता के लिए किया जाता है।
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्॥


अर्थ: जो भगवान श्रीराम धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, जो बद्धपद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं, जिनके शरीर पर पीताम्बर (पीले वस्त्र) हैं और जिनकी आंखें कमल दलों से भी सुंदर हैं, जिनके चेहरे पर प्रसन्नता छाई हुई है, जिनकी बाईं ओर सीता माता हैं, जिनका रूप बादल के समान श्याम है और जिनकी जटाओं में विभिन्न आभूषण झिलमिलाते हुए हैं, मैं उन श्रीरामचंद्रजी का ध्यान करता हूँ। यह ध्यानमंत्र राम रक्षा स्तोत्र के जप से पहले किया जाता है ताकि हम श्रीराम की उपस्थिति का अनुभव करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥1॥


अर्थ: श्री रघुनाथ (भगवान श्रीराम) का चरित्र इतना व्यापक है कि वह शतकोटि (१०० करोड़) रूपों में विस्तारित है। इस महान चरित्र के प्रत्येक अक्षर का उच्चारण मानवों के महापातकों (विशाल पापों) का नाश करने वाला है।

इस श्लोक के माध्यम से यह बताया गया है कि भगवान श्रीराम का चरित्र अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली है, और उनके प्रत्येक शब्द, प्रत्येक कार्य से पापों का नाश होता है।
 
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌॥2॥


अर्थ: मैं ध्यान करता हूँ उन भगवान श्रीराम का, जो नीलकमल के समान श्याम रंग के हैं, जिनकी आँखें कमल के समान सुंदर हैं, और जिनके सिर पर जटाओं का मुकुट सुशोभित है। वे श्री सीता (जानकी) और लक्ष्मण के साथ सदा विराजमान रहते हैं।
 
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तञ्चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥3॥


अर्थ: मैं ध्यान करता हूँ उन श्री राम का, जो अजन्मे हैं (जिनका जन्म नहीं हुआ), जो स्वयं प्रकट हुए हैं, सर्वव्यापक हैं (सभी स्थानों में व्याप्त हैं), और जिनके हाथों में खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण हैं। वे राक्षसों के संहार और अपनी लीलाओं से सम्पूर्ण जगत की रक्षा करने के लिए अवतरित हुए हैं।

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥4॥


अर्थ: मैं श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ, जो सभी पापों का नाश करने वाला और समस्त इच्छाओं को पूरा करने वाला है। हे राघव, मेरे सिर की रक्षा करें, और हे दशरथ के पुत्र, मेरे मस्तक की रक्षा करें।

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल:॥5॥


अर्थ: हे कौशल्या के पुत्र श्री राम, मेरे नेत्रों की रक्षा करें, हे विश्वामित्र के प्रिय राघव, मेरे कानों की रक्षा करें, हे यज्ञ रक्षक श्री राम, मेरे नथुने (घ्राण) की रक्षा करें, और हे सुमित्रा के वत्सल, मेरे मुख की रक्षा करें।
 
जिव्हा विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक:॥6॥


अर्थ: जो सर्व विद्या के स्वामी हैं, श्री राम मेरी जिव्हा (वाणी) की रक्षा करें। जिनका भरत ने वंदन किया, श्री राम मेरी कंठ (गला) की रक्षा करें। जिनके कंधों पर दिव्य अस्त्र हैं, श्री रघुपति राम मेरे कंधों की रक्षा करें, और जिनका धनुष महादेव ने तोड़ा, ऐसे भगवान श्री राम मेरी भुजाओं की रक्षा करें।

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय:॥7॥


अर्थ: सीता के स्वामी श्री राम मेरे हाथों की रक्षा करें, जो जमदग्नि के पुत्र परशुराम को जीतने वाले हैं, वे श्री राम मेरे हृदय की रक्षा करें। जो खर राक्षस का वध करने वाले हैं, वे श्री राम मेरे शरीर के मध्य भाग की रक्षा करें, और जो जाम्बवंत को आश्रय देने वाले हैं, वे भगवान श्री राम मेरी नाभि की रक्षा करें। 

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌॥8॥


अर्थ: सुग्रीव के स्वामी, श्री राम, मेरी कमर की रक्षा करें। हनुमान के स्वामी और राक्षसों के वंश का विनाश करने वाले रघुकुल के सर्वोत्तम श्री राम, मेरी जाँघों की रक्षा करें।
 
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥


अर्थ: जो श्री राम समुद्र पर सेतु बांधने वाले हैं, वे मेरे दोनों घुटनों की रक्षा करें।
जो रावण के वधकर्ता हैं, वे मेरी जंघाओं की रक्षा करें।
जो विभीषण को ऐश्वर्य और लंका का राज्य देने वाले हैं, वे मेरी पूरी देह की रक्षा करें।

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥

अर्थ: जो भक्त श्रद्धा और भक्ति से इस राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता है, उसे दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील बनने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि:॥

अर्थ:जो प्राणी पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते हैं, या छद्म रूप में घूमते रहते हैं, वे श्री राम के नाम से सुरक्षित व्यक्ति को देख भी नहीं पाते।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥

अर्थ: जो व्यक्ति श्री राम, रामभद्र, या रामचंद्र का स्मरण करता है, वह पापों से मुक्त होता है और भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌।
य: कण्ठे धारयेत् तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय:॥

अर्थ: जो व्यक्ति जगत के विजय मंत्र श्री राम के नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ करता है, वह सभी सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है।

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌॥

अर्थ: जो व्यक्ति इस वज्रपंजर नामक श्री राम रक्षा कवच का स्मरण करता है, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता और वह हमेशा विजय और मंगल की प्राप्ति करता है।

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:॥

अर्थ: भगवान शंकर ने स्वप्न में इस श्री राम रक्षा स्तोत्र का आदेश बुधकौशिक ऋषि को दिया था, और उन्होंने प्रातःकाल जागकर उसे वैसा ही लिख दिया।

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु:॥

अर्थ: प्रभु राम, जो कल्पवृक्षों के समान विश्राम देने वाले हैं, जो सभी दुखों को समाप्त करने वाले हैं और जो तीनों लोकों में सुंदर हैं, वही श्री राम हमारे प्रभु हैं।

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥

अर्थ: जो युवा, सुंदर, सुकुमार, महाबली और कमल के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, जो मुनियों के समान वस्त्र और काले मृग का चर्म धारण करते हैं।

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥

अर्थ: जो फल और कंद का आहार करने वाले, संयमी, तपस्वी और ब्रह्मचारी हैं, वे दशरथ के पुत्र श्री राम और लक्ष्मण हैं।

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ॥

अर्थ: जो महाबली, रघु कुल के श्रेष्ठ, सभी प्राणियों के शरणदाता और सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ हैं, राक्षसों के कुल का विनाश करने वाले श्री राम हमारी रक्षा करें।

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌॥

अर्थ: जो धनुष तैयार किए हुए, बाण को छूते हुए, अक्षय बाणों से लदा हुआ तूणीर धारण किए हुए श्री राम और लक्ष्मण, मेरे मार्ग में आगे बढ़कर मेरी रक्षा करें।
 
संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण:॥21॥

अर्थ: यह श्लोक भगवान श्रीराम के शौर्य, सुरक्षा और तत्परता को व्यक्त करता है। इसमें कहा गया है:
संनद्ध: (तत्पर) – भगवान श्रीराम हमेशा तैयार रहते हैं।
कवची: (कवचधारी) – भगवान राम ने सुरक्षा कवच धारण किया है।
खड्‌गी: (तलवारधारी) – उनके हाथ में खड्ग (तलवार) है।
चापबाणधरो: (धनुष-बाणधारी) – उनके पास धनुष और बाण भी हैं।
युवा: (युवा) – वे युवा हैं, उनके अंदर शक्ति और जोश है।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं: (हमारी इच्छा को पूरा करते हुए) – भगवान राम हमारी इच्छाओं और मनोकामनाओं को पूरा करते हुए आगे बढ़ते हैं।
राम: पातु सलक्ष्मण: (श्रीराम और लक्ष्मण हमारी रक्षा करें) – भगवान राम, लक्ष्मण के साथ हमारे सामने आकर हमारी रक्षा करें।

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम:॥22॥

अर्थ: यह श्लोक भगवान शिव के कथन का वर्णन करता है, जिसमें वे भगवान श्रीराम के अद्वितीय गुणों का बखान कर रहे हैं:
रामो दाशरथि: (राम, दशरथ के पुत्र) – श्रीराम दशरथ के पुत्र हैं।
शूरो: (वीर) – वे महान योद्धा हैं।
लक्ष्मणानुचरो बली: (लक्ष्मण के सेवक, बलवान) – श्रीराम, लक्ष्मण के परम भक्त और बलवान हैं।
काकुत्स्थ: (रघुकुल में श्रेष्ठ) – वे रघुकुल के श्रेष्ठतम सदस्य हैं, काकुत्स्थ उनका उपनाम है।
पुरुष: (महापुरुष) – वे अत्यंत महान पुरुष हैं।
पूर्ण: (पूर्णब्रह्म) – श्रीराम पूर्ण ब्रह्म (ईश्वर) हैं।
कौसल्येयो: (कौशल्या के पुत्र) – वे कौशल्या के पुत्र हैं।
रघुत्तम: (रघुकुल के श्रेष्ठतम) – श्रीराम रघुकुल के सर्वोत्तम पुत्र हैं।

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम:॥23॥

अर्थ: यह श्लोक भगवान श्रीराम के अद्वितीय गुणों का और उनके यज्ञों के प्रति प्रेम का वर्णन करता है:
वेदान्तवेद्यो: (वेदों के ज्ञाता) – भगवान श्रीराम वेदों के ज्ञाता हैं, वेदांत का आदान-प्रदान करते हैं।
यज्ञेश: (यज्ञों के स्वामी) – वे यज्ञों के स्वामी और संरक्षक हैं।
पुराणपुरुषोत्तम: (पुराणों में सर्वोत्तम पुरुष) – वे पुराणों में सर्वोत्तम पुरुष हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से इतिहास रचा।
जानकीवल्लभ: (सीता के प्रिय) – वे सीता जी के प्रिय हैं।
श्रीमान: (धन्य और समृद्ध) – भगवान श्रीराम अत्यधिक श्रीमान हैं।
प्रमेय पराक्रम: (अतुलनीय पराक्रम) – वे अतुलनीय वीरता और पराक्रम के मालिक हैं।

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय:॥24॥

अर्थ: इस श्लोक में बताया गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा के साथ इन भगवान श्रीराम के नामों का जाप करता है, उसे असाधारण पुण्य प्राप्त होता है:

इत्येतानि जपेन्नित्यं: (इन नामों का नियमित जप करें) – इन दिव्य नामों का हर दिन जाप करें।
मद्‌भक्त: (मेरे भक्त) – जो मेरे भक्त हैं।
श्रद्धयान्वित: (श्रद्धा के साथ) – श्रद्धा से भरे हुए।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं: (अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य) – ऐसे भक्त को अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है।
संप्राप्नोति न संशय: (कोई संदेह नहीं है) – इसमें कोई संदेह नहीं कि वह महान पुण्य प्राप्त करेगा। 

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर:॥25॥

अर्थ: रामं दूर्वादलश्यामं: (भगवान राम, जो दूर्वा (घास) के समान श्याम रंग के हैं) – भगवान श्रीराम का रंग दूर्वा के समान गहरा नीला है।
पद्‌माक्षं: (कमल-नयन) – उनके नेत्र कमल के फूल के समान सुंदर और मोहक हैं।
पीतवाससम्: (पीतांबर धारी) – भगवान राम ने पीला वस्त्र पहना हुआ है।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न: (दिव्य नामों से स्तुति करने वाले) – जो लोग भगवान राम के दिव्य नामों की स्तुति करते हैं।
ते संसारिणो नर: (वे संसार के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं) – जो भगवान राम के दिव्य नामों का जाप करते हैं, वे संसार के जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं।

रामं लक्ष्मणं पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌॥26॥

अर्थ: यह श्लोक भगवान श्रीराम के विभिन्न गुणों का वर्णन करता है:
रामं लक्ष्मणं पूर्वजं: (राम, लक्ष्मण के बड़े भाई और पूर्वज) – श्रीराम, लक्ष्मण के बड़े भाई और रघुकुल के पूर्वज हैं।
रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्: (रघुकुल के श्रेष्ठ और सीता के पति, सुंदर) – वे रघुकुल के श्रेष्ठतम और सीता के सुंदर पति हैं।
काकुत्स्थं करुणार्णवं: (काकुत्स्थ और करुणा के सागर) – श्रीराम का एक उपनाम काकुत्स्थ है, और वे करुणा के सागर हैं।
गुणनिधिं विप्रप्रियं: (सभी गुणों के मालिक और ब्राह्मणों के प्रिय) – श्रीराम में सभी सद्गुण समाहित हैं और वे ब्राह्मणों के प्रिय हैं।
धार्मिकम्: (धार्मिकता में निष्ठावान) – वे पूरी तरह धार्मिक और सत्यनिष्ठ हैं।
राजेन्द्रं सत्यसंधं: (राजा और सत्यनिष्ठ) – श्रीराम राजाओं के राजा और सत्य के पक्के समर्थक हैं।
दशरथनयं श्यामलं: (दशरथ के पुत्र, श्यामल रंग वाले) – वे दशरथ के पुत्र हैं और उनका रूप श्यामल (गहरा नीला) है।
शान्तमूर्तिम्: (शांत और स्थिर रूप वाले) – उनका रूप शांत और स्थिर है, जो समस्त संसार को शांति प्रदान करता है।
वन्दे लोकभिरामं: (लोकों को आकर्षित करने वाले) – जो लोकों के लिए आकर्षण का स्रोत हैं, उनका मैं वंदन करता हूं।
रघुकुलतिलकं: (रघुकुल के तिलक, यानी गौरव) – श्रीराम रघुकुल के तिलक और गौरव हैं।
राघवं रावणारिम्: (राघव, रावण के शत्रु) – श्रीराम राघव हैं, जिन्होंने रावण का वध किया।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:॥27॥

अर्थ: यह श्लोक भगवान श्रीराम के विभिन्न नामों का जाप करते हुए उन्हें प्रणाम करने का है:
रामाय रामभद्राय: (राम, रामभद्र के रूप में) – भगवान श्रीराम को उनके सभी रूपों में प्रणाम करता हूं, विशेष रूप से रामभद्र रूप में।
रामचंद्राय वेधसे: (रामचंद्र, वेध के रूप में) – रामचंद्र को, जो ब्रह्मा के रूप में उपस्थित हैं, प्रणाम करता हूं।
रघुनाथाय नाथाय: (रघुनाथ, नाथ) – रघुकुल के नाथ, यानी श्रीराम को प्रणाम।
सीताया: पतये नम: (सीता के स्वामी को प्रणाम) – और सीता के पति, श्रीराम को प्रणाम करता हूं।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम॥28॥


अर्थ:
श्रीराम राम रघुनन्दन: (हे श्रीराम, रघुकुल के नंदन, अर्थात रघुकुल के पुत्र) – श्रीराम, जो रघुकुल के नायक हैं, उन्हें प्रणाम।
श्रीराम राम भरताग्रज: (हे श्रीराम, भरत के अग्रज, बड़े भाई) – श्रीराम, जो भरत के बड़े भाई हैं, उन्हें प्रणाम।
श्रीराम राम रणकर्कश: (हे श्रीराम, रणभूमि में शूरवीर और कर्कश) – श्रीराम, जो युद्ध में अत्यंत वीर और साहसी हैं, उन्हें प्रणाम।
श्रीराम राम शरणं भव: (हे श्रीराम, शरणागत वत्सल, मुझे शरण में ले लीजिए) – श्रीराम, आप मेरी शरण में आइए, मैं आपके पास शरणागत हूं।

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥29॥


अर्थ:
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि: (मैं मन से श्रीरामचंद्र जी के चरणों का स्मरण करता हूं) – मैं अपने मन से हमेशा श्रीराम के चरणों का ध्यान करता हूं।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि: (मैं वाणी से श्रीराम के चरणों का गुणगान करता हूं) – मेरी वाणी से श्रीराम के चरणों की स्तुति होती है।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि: (मैं सिर झुकाकर श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं) – मैं श्रद्धा भाव से अपने सिर को झुकाकर श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये: (मैं श्रीराम के चरणों में शरण लेता हूं) – और मैं अपनी सारी श्रद्धा के साथ श्रीराम के चरणों में शरणागत हूं।

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने॥30॥


अर्थ:
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: (श्रीराम मेरे माता और पिता हैं) – श्रीराम मेरे माता और पिता दोनों हैं।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: (श्रीराम मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं) – श्रीराम मेरे स्वामी और मेरे सखा दोनों हैं।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु: (श्रीराम, जो दयालु हैं, वे मेरे सर्वस्व हैं) – श्रीराम, जो अत्यंत दयालु हैं, वे मेरे जीवन का सर्वस्व हैं।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने: (मैं किसी और को नहीं जानता) – श्रीराम के सिवा मैं किसी और को नहीं जानता, वे ही मेरे एकमात्र भगवान हैं।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌॥31॥
अर्थ:
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य: (जिनके दाएं ओर लक्ष्मण जी विराजते हैं) – श्रीराम के दाएं ओर लक्ष्मण जी विराजमान हैं।
वामे तु जनकात्मजा: (जिनकी बाईं ओर जनक कन्या सीता जी बैठी हैं) – और जिनकी बाईं ओर सीता जी बैठी हैं, जो जनक के पुत्री हैं।
पुरतो मारुतिर्यस्य: (जिनके सामने हनुमान जी विराजते हैं) – और जिनके सामने हनुमान जी खड़े हैं।
तं वन्दे रघुनंदनम्: (मैं रघुकुल के नंदन श्रीराम को वंदन करता हूं) – मैं रघुकुल के नायक, श्रीराम का वंदन करता हूं।

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये॥32॥
अर्थ:
लोकाभिरामं: (जो लोकों के लिए अत्यंत प्रिय और आकर्षक हैं) – श्रीराम जो समस्त लोकों में प्रिय हैं।
रनरङ्‌गधीरं: (जो रणभूमि में धीर और साहसी हैं) – श्रीराम जो युद्धभूमि में वीरता का प्रतीक हैं।
राजीवनेत्रं: (कमल के जैसे सुंदर नेत्र वाले) – श्रीराम के नेत्र कमल के समान सुंदर हैं।
रघुवंशनाथम्‌: (रघुकुल के नायक) – वे रघुकुल के नायक हैं।
कारुण्यरूपं: (जो करुणा की मूर्ति हैं) – श्रीराम करुणा के रूप हैं।
करुणाकरंतं: (जो दूसरों पर करुणा बरसाने वाले हैं) – जो सदैव दूसरों पर अपनी करुणा बरसाते हैं।
श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये: (मैं श्रीरामचंद्र जी की शरण में हूं) – मैं श्रीरामचंद्र जी की शरण में हूं और उन्हें अपना उद्धारक मानता हूं।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥33॥


अर्थ:
मनोजवं: (जिनकी गति मन के समान है) – श्रीराम के दूत हनुमान जी की गति अत्यंत तेज और चपल है, जैसे मन।
मारुततुल्यवेगं: (जिनका वेग वायु के समान है) – हनुमान जी का वेग वायु के समान है, अर्थात वे अत्यंत तेज और शक्तिशाली हैं।
जितेन्द्रियं: (जो अपने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त हैं) – हनुमान जी पूरी तरह से अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण रखते हैं।
बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌: (जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं) – हनुमान जी अपनी महान बुद्धि के लिए प्रसिद्ध हैं।
वातात्मजं: (जो पवन के पुत्र हैं) – हनुमान जी पवन देवता के पुत्र हैं।
वानरयूथमुख्यं: (जो वानर सेना के प्रमुख हैं) – हनुमान जी वानर सेना के नायक हैं।
श्रीरामदूतं: (जो श्रीराम के दूत हैं) – हनुमान जी श्रीराम के संदेशवाहक और दूत हैं।
शरणं प्रपद्ये: (मैं हनुमान जी की शरण में जाता हूं) – मैं हनुमान जी के चरणों में शरणागत हूं, जो भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हैं।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌॥34॥


अर्थ:
कूजन्तं रामरामेति: (जो 'राम-राम' का मधुर गान करते हैं) – वाल्मीकि जी की वाणी में राम के मधुर नाम का उच्चारण है।
मधुरं मधुराक्षरम्‌: (जो नाम अत्यंत मधुर है) – 'राम-राम' के अक्षर अत्यंत मधुर और आकर्षक हैं।
आरुह्य कविताशाखां: (जो कविताओं के शाखा पर बैठते हैं) – मैं वाल्मीकि जी की तरह कवि के रूप में राम के नाम का गायन करता हूं।
वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌: (मैं वाल्मीकि जी कोयल को वंदन करता हूं) – जैसे कोयल अपने मधुर स्वर में गीत गाती है, वैसे ही वाल्मीकि जी ने राम का महिमा गायन किया।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌॥35॥


अर्थ:
आपदामपहर्तारं: (जो सभी कष्टों को दूर करने वाले हैं) – श्रीराम सभी संकटों और आपदाओं को नष्ट करने वाले हैं।
दातारं सर्वसंपदाम्‌: (जो सभी सुख और संपत्ति देने वाले हैं) – श्रीराम समस्त सुख-संपत्ति देने वाले हैं।
लोकाभिरामं श्रीरामं: (जो लोकों में अत्यंत प्रिय और रमणीय हैं) – श्रीराम समस्त लोकों में प्रिय और आनंद देने वाले हैं।
भूयो भूयो नमाम्यहम्‌: (मैं बार-बार श्रीराम को नमन करता हूं) – मैं बार-बार श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सबके लिए कल्याणकारी हैं।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌॥36॥

अर्थ:
भर्जनं भवबीजानाम्‌: (जो भवसागर के बीजों को नष्ट करने वाले हैं) – श्रीराम के नाम के जप से संसार के बंधनों का नाश होता है।
अर्जनं सुखसंपदाम्‌: (जो सुख और संपत्ति अर्जित करने वाले हैं) – श्रीराम के नाम के जप से व्यक्ति सभी सुख और संपत्ति प्राप्त करता है।
तर्जनं यमदूतानां: (जो यमदूतों को भयभीत करने वाले हैं) – श्रीराम के नाम की ध्वनि से यमदूत भी डरते हैं।
रामरामेति गर्जनम्‌: (जो राम-राम के शब्दों से गर्जना करते हैं) – ‘राम-राम’ का उच्चारण करने से सभी भय और संकट समाप्त हो जाते हैं।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर॥37॥

अर्थ:
रामो राजमणि: सदा विजयते: (राजाओं के मणि श्रीराम सदा विजय प्राप्त करते हैं) – श्रीराम सदा विजय के प्रतीक हैं, वे राजाओं में श्रेष्ठ हैं।
रामं रमेशं भजे: (मैं लक्ष्मीपति श्रीराम का भजन करता हूं) – मैं श्रीराम का भजन करता हूं, जो लक्ष्मीपति (सीतापति) हैं।
रामेणाभिहता निशाचरचमू: (जो श्रीराम के हाथों राक्षसों की सेना को नष्ट करते हैं) – श्रीराम ने राक्षसों की पूरी सेना का संहार किया।
रामाय तस्मै नम: (मैं श्रीराम को नमन करता हूं) – मैं श्रीराम को नमन करता हूं, जिन्होंने राक्षसों का वध किया।
रामान्नास्ति परायणं परतरं: (राम के सिवा कोई भी शरण नहीं है) – श्रीराम के अलावा कोई दूसरा परम आधार नहीं है।
रामस्य दासोSस्म्यहम्‌: (मैं श्रीराम का दास हूं) – मैं श्रीराम का अनुयायी और उनका परम भक्त हूं।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे: (मेरा चित्त हमेशा श्रीराम में लीन हो) – मेरा मन हमेशा श्रीराम में समाहित रहे।
भो राम मामुद्धर: (हे राम, मुझे उद्धारित करें) – श्रीराम, कृपया मुझे अपने चरणों की शरण में लें और मुझे मुक्ति दें।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥38॥


अर्थ: यहां भगवान शिव माता पार्वती से कह रहे हैं कि -
"हे सुमुखि! राम का नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ (विष्णु के हजार नामों) के समान है। मैं हमेशा राम का स्तवन (प्रशंसा) करता हूं और राम के नाम में ही आनंदित रहता हूं।"

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌।

अर्थ: यह श्रीरामरक्षास्तोत्र बुध कौशिक नामक ऋषि द्वारा रचित है और इसका पाठ पूरा हुआ।

श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु।

अर्थ: यह स्तोत्र श्री सीता और राम के चरणों में समर्पित है।

संक्षेप में, श्रीराम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के सभी कार्य स्वतः सिद्ध हो जाते हैं और उसके द्वारा किए गए पाप समाप्त हो जाते हैं। इस स्तोत्र के उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि भगवान शंकर ने सबसे पहले इसे पढ़ा था। भगवान शिव ने ऋषि बुध कौशिक के स्वप्न में आकर इसे सुनाया, जिसके बाद ऋषि ने इसे प्रातःकाल उठकर लिख लिया।

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् क्या है ?

पौराणिक मान्यता है की स्वयं भगवान शिव ने ऋषि बुधकौशिक को सपने में दर्शन दिए और राम रक्षा स्त्रोत का पाठ उनको सुनाया। श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के नित्य पाठ से समस्त कष्ट दूर होते हैं। जो जातक इसका पाठ करता है वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी तथा विनयसंपन्न बनता है। श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के पाठ से मंगल का कुप्रभाव भी दूर होता है औरइसके प्रभाव से व्यक्ति के चारों और सुरक्षा कवच का निर्माण होता है जो उसे समस्त सांसारिक और दैहिक कष्टों से दूर रखता है।

राम रक्षा स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए?

वसंत नवरात्रि के नौ दिनों में इस स्तोत्र का पाठ प्रातः स्नान के बाद करना अधिक श्रेष्ठ और मंगलकारी होता है। भगवान राम के परोपकारी रूप का ध्यान करते हुए, प्रतिदिन 7 या 11 बार इस स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी होता है।

 


Ram Raksha Stotra (श्री राम रक्षा स्तोत्र) with lyrics by Rajendra Vaishampayan | Ram Raksha Full
 
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

+

एक टिप्पणी भेजें