मेरी सुरति सुहागन जाग री भजन Meri Surati Suhagan Kabir Bhajan

कबीरदास जी के भजन "मेरी सुरति सुहागन जाग री" का मूल सन्देश यह है कि हमें अपने आध्यात्मिक जीवन में जागृत होना चाहिए। जब हम जागृत हो जाते हैं, तो हम ईश्वर के प्रेम का अनुभव कर सकते हैं और अनंत सुख और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि हमारी आत्मा एक सुहागन है, जो ईश्वर के प्रेम में रहती है। लेकिन यह आत्मा मोहिनी नींद में सो रही है, यानी यह सांसारिक मोह और वासनाओं के कारण जागृत नहीं है। कबीरदास जी कहते हैं कि हमें इस मोहिनी नींद से जागना चाहिए और भजन में ध्यान लगाना चाहिए। भजन ईश्वर के प्रेम का प्रतीक है। जब हम भजन में ध्यान लगाते हैं, तो हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और ईश्वर के प्रेम का अनुभव कर सकते हैं।

मेरी सुरति सुहागन जाग री भजन Meri Surati Suhagan Kabir Bhajan

 
मेरी सुरति सुहागन जाग री लिरिक्स Meri Surati Suhagan Lyrics

 मेरी सुरति सुहागन जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री,
जागरी हो जाग री,
जाग री हो जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री।

क्या तू सोवे मोहिनी नींद में,
उठ के भजन विच लाग री,
जाग री, हाँ जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री।

अनहद शब्द सुनो चित देके,
उठत मधुर धुन राग री,
जाग री, हाँ जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री।

चरण शीश धार विनती करियो,
पाएगी अटल सुहाग री,
जाग री, हाँ जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री।

कहत कबीरा सुनो भाई साधो,
जगत-प्रीत दे भाग री,
जाग री, हाँ जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री।

 

मेरी सुरति सुहागन जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री,
जागरी हो जाग री,
जाग री हो जाग री,
मेरी सुरति सुहागन जाग री।


 
Meri Surati Suhagan Jaag Ri/Kabir Bhajan
 

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कबीरदास जी के भजन "मेरी सुरति सुहागन जाग री" में, वे अपने भक्तों को अपने आध्यात्मिक जीवन में जागृत होने के लिए कहते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने सांसारिक मोह और वासनाओं से ऊपर उठकर ईश्वर की भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए। भजन के पहले दो लाइन में, कबीरदास जी अपने भक्तों की आत्मा को "सुरति" कहते हैं। वे कहते हैं कि यह आत्मा एक सुहागन है, जो ईश्वर के प्रेम में रहती है। लेकिन यह आत्मा मोहिनी नींद में सो रही है, यानी यह सांसारिक मोह और वासनाओं के कारण जागृत नहीं है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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