भारत में इंटरनेट कब आया

भारत में इंटरनेट कब आया

मोदी जी के एक बयान में उन्होंने बताया की उन्होंने 1987 -88 में डिजिटल कैमरे का इस्तेमाल कर आडवाणी जी की कलर फोटो ली और उस फोटो को दिल्ली ट्रांसमिट कर दी। अगले रोज जब अख़बार में आडवाणी जी ने अपनी फोटो देखी तो वो बहुत आचार्यचकित हुए। मोदी जी ने इससे पूर्व कहा "शायद" लेकिन इस और लोगों का ध्यान कम गया और सोशल मीडिया पर मोदी जी का यह वीडियो वायरल हो गया है, इससे पहले मोदी जी के राडार वाले बयान को लोगों ने ट्रेंडिंग बना दिया था। 
 
 क्या मोदी जी को पता ही नहीं की भारत में इंटरनेट का प्रथम प्रयोग कब किया गया ? कब पहली बार ईमेल किया गया ? शायद इंटरव्यू के दौरान उनसे कुछ गलती हो गयी होगी। लेकिन बात का बवाल है की प्रधानमंत्री देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उन्हें ऐसी गलतियों से बचना चाहिए। इससे पूर्व भी सर्जिकल स्ट्राइक के विषय पर उनके रडार के बयान की चुटकियां ली गयी। दरअसल ईमेल और डिजिटल कैमरे का बयान उन्होंने अपने एक इंटरव्यू के दौरान दिए थे। 
 
राडार के विषय पर अनुसन्धान कहते हैं की किसी लड़ाकू विमान को पकड़ने के लिए राडार का इस्तेमाल होता है लेकिन इसका बादलों से कोई लेना देना नहीं है। बादलों से राडार के संकेतों पर कोई भरी असर नहीं दिखाई देता है। मोबाइल नेटवर्क और रेडियो सिग्नल भी बारिश और बादलों से कुछ प्रभावित होते हैं लेकिन ऐसा नहीं है की वो बिलकुल ही जाम हो जाय। इसके आलावा सरकारी और गैर सरकारी विमान कंपनियां भी राडार सिस्टम का प्रयोग करती हैं जिससे अन्य विमानों की वास्तविक लोकेशन का ज्ञान हो सके। बादलों की वजह से यदि विमान दिखे ही नहीं तो शायद विमान उड़ाना ही मुश्किल हो जाय। इस सिस्टम का नाम ट्रैफिक कोलिजन अवोइडेन्स सिस्टम के नाम से जाना जाता है। 
 
 मोदी जी के द्वारा इंटरव्यू में कहा गया जिसमे उन्होंने बताया की उनके द्वारा 1987-88 में ही डिजिटल कैमरा इस्तेमाल गया और आडवाणी जी की रंगीन फोटो को उन्होंने दिल्ली ट्रांसमिट कर दिया था जिसे अगले रोज अख़बार में छपा देख आडवाणी जी हैरत में पड़ गए थे। इस पर सामान्य गूगल करके यह ज्ञात किया जा सकता है की कब प्रथम बार डिजिटल केमेरे की ईजाद हुयी और कब भारत में इसका प्रयोग किया गया। फैक्टचेकर वेबसाइट के द्वारा यह बताया गया है की भारत में १९८७ तक बिक्री के लिए कोई डिजिटल केमेरा उपलब्ध नहीं था। इंटरनेट के विषय में जांच पड़ताल करें तो १५ अगुस्ट १९९५ में इंटरनेट की सेवाएं सार्वजानिक रूप से प्रारम्भ की गयी थी। इस विषय पर गूगल करें तो सुचना प्राप्त की जा सकती हैं।

विकिपीडिया पर सुचना प्राप्त होती है जिसमे बताया गया है की भारत में सर्वप्रथम विदेश संचार लिमिटेड के द्वारा १५ अगस्त १९९५ को सार्वजानिक इंटरनेट सेवाओं को शुरू किया गया। भारत में ERNET ( Educational Research Institute) के माध्यम से शुरू किया गया। शुरुआत में इन्टरनेट की स्पीड ९ से १० केबीपीएस के आस पास हुआ करती थी जो काफी कम थी। इन्टरनेट का प्रयोग रिसर्च इंस्टिट्यूट और चुनिन्दा विभागों के द्वारा ही किया जाता था। माना जाता है की शुरुआत में २० से ३० कंप्यूटर ही इन्टरनेट के माध्यम से जुड़े हुए थे। 
 
दुनिया में सर्वप्रथम ईमेल १९७१ में अमेरिका के केम्ब्रिज स्थान पर किया गया। यहाँ टॉमलिंसन नामक इंजीनियर ने एक ही कमरे में रखे दो कम्प्युटरों के बीच भेजा था।

वर्तमान में भारत में जिओ के आने के बाद इन्टरनेट का विकास काफी तेजी से हुआ है। ४ जी की स्पीड से दैनिक सीमा १.५ जीबी हाई स्पीड इन्टरनेट सुविधा उपलब्ध है। वर्तमान में उपलब्ध सेप्क्ट्रम का अधिक से अधिक उपयोंग लेकर इन्टरनेट की स्पीड को बढ़ाने का कार्य निरंतर जारी है। इस क्षेत्र में निरंतर शोध किये जा रहे हैं की उपलब्ध बेंडविड्थ में ज्यादा स्पीड कैसे हासिल की जाए क्यों की वर्तमान में थ्री जी और फोर जी के सभी मोबाइल एक ही स्पेक्ट्रम पर कार्य कर रहे हैं। डाउनलोडिंग के समय बेंडविड्थ कम हो जाती है और कभी कभी १०० केबीपीएस की स्पीड भी हासिल नहीं हो पाती है। मोबाइल काम करता है रेडियोफ्रीक्वेंसी पर जिसे स्पेक्ट्रम भी कहते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी इन्टरनेट की कनेक्टिविटी बढ़ रही है। जिओ ने इस क्षेत्र में अच्छा काम किया है। मार्केट रिसर्च कंपनी कानतार आईएमआरबी द्वारा जारी रिपोर्ट आईसीयूबीईटीएम 2018 के अनुसार, जहां शहरों में इंटरनेट यूजर्स की संख्या सात प्रतिशत बढ़कर 2018 में 31.5 करोड़ हो गई थी, वहीं ग्रामीण भारत में 35 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। रिलायंस जिओ टियर १ कंपनी है (जो समुद्र में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का कार्य करती है ) जिसने स्वंय की केबल बिछाने का कार्य और सारे बड़े सर्वर को जोड़ने का कार्य किया है। इस कारन जिओ का मोबाइल डाटा सस्ता है क्यों की उसे अन्य कंपनियों को कम पैसे चुकाने पड़ते हैं और स्वंय के रिसोर्स का लाभ उसे मिलता है। ज्यादा ग्राहकों और लॉन्ग टर्म प्लान से जिओ को काफी लाभ हुआ है।

सर्वर किसे कहते हैं : किसी भी वेब साईट / निजी साईट/गवर्नमेंट की साईट /यूट्यूब /फेसबुक/ब्लॉगर आदि का डाटा जहाँ पर स्टोर रहता है, उस स्टोर से जुड़े प्रधान कंप्यूटर को सर्वर कहा जाता है। सर्वर ही किसी यूजर को डाटा उपलब्ध करवाता है। 
इसे कुछ यूँ समझे की आप ने ब्राउज़र में अपने बैंक की ऑनलाइन बैंकिंग सेवा के लिए लॉग इन किया, तो सबसे पहले ईमेल एड्रेस और पासवर्ड पूछता है। ये ईमेल और पासवर्ड कोई और नहीं बल्कि बैंक का सर्वर(मुख्य कंप्यूटर) ही आपसे पूछता है। सही जानकारी देने पर ये आपको लोग इन करवा देता है। आपके बैंक अकाउंट से जुडी अन्य सभी जानकारियों सर्वर पर ही सेव रहती है। 

सर्वर से जुड़े हुए सभी कंप्यूटर काफी महंगे होते हैं और इनमे हाई स्पीड प्रोसेसर / रेम और स्टोरेज डिवाइस लगे होते हैं तथा इन्टरनेट के माध्यम से दुसरे कंप्यूटर से कनेक्ट रहते हैं। यदि सर्वर में लगे कंप्यूटर में प्रोसेसर और रेम हाई स्पीड की नहीं हों तो अक्सर सर्वर   जाम और सर्वर फ़ैल की समस्या आती है। एक साथ ज्यादा लोगों के द्वारा सर्वर को काम में लिए जाने पर भी सर्वर जाम हो जाता है।
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