बिना भेद बहार मत भटको भजन प्रह्लाद सिंह टिपानिया
ईश्वर को खोजने के लिए हम बाहर भटक रहे हैं, वह तो हमारे भीतर ही है। हमारे शरीर में ही अड़सठ तीर्थ हैं, जहां हम ईश्वर के दर्शन कर सकते हैं। कबीर के अनुसार, ईश्वर एक व्यक्ति या किसी विशेष स्थान में नहीं है। वह सर्वव्यापी है। वह हर जगह है, हर चीज़ में है। इसलिए, उसे पाने के लिए हमें किसी विशेष स्थान या किसी विशेष व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। हमें बस अपने भीतर झांकना चाहिए। ईश्वर को बाहर खोजने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हम उसे नहीं पहचानते। हम उसे एक व्यक्ति के रूप में देखते हैं, जो किसी विशेष स्थान पर रहता है। लेकिन जब हम उसे अपने भीतर देखते हैं, तो हम समझते हैं कि वह एक व्यक्ति नहीं है, बल्कि वह एक शक्ति है, जो सब कुछ में है। ईश्वर को पाने के लिए हमें अपने भीतर झांकना चाहिए। हमें अपने मन और आत्मा को शुद्ध करना चाहिए। जब हम अपने भीतर ईश्वर को देख लेंगे, तो हम उसे बाहर भी देख पाएंगे।
बिना भेद बहार मत भटको Bina Bhed Bahar Mat Bhatko Kabir Bhajan
बाहर भटक्या है कांई,अडसठ तीरथ यहाँ बता दूं,
कर दर्शन थारा देह मांही।
पावों में तेरे पदम विराजे,
पिंडल में भागवत याहीं,
गोडे में गोरख का वासा,
हिल रहा दुनिया मांही।
जांगो में जगदीश विराजे,
कमर केदारनाथ हैं यांही,
देही में देवी का वासा,
अखंड ज्योत जलती वांही।
हाथ बने हस्तिनापुर नगरी,
ऊँगली बनी पाँचों पांडव,
सीने में हनुमान विराजे,
लड़ने से डरता नहीं।
सुख बना तेरा मक्का मदीना,
नासिक की है दरगाह यांही,
कान बने कनकापुर नगरी,
सत वचन सुन ले यांही।
नेत्र बने तेरे चंदा सूरज,
देख रहा दुनिया मांही,
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
लख्या लेख मिटता नहीं।
कर दर्शन थारा देह मांही।
पावों में तेरे पदम विराजे,
पिंडल में भागवत याहीं,
गोडे में गोरख का वासा,
हिल रहा दुनिया मांही।
जांगो में जगदीश विराजे,
कमर केदारनाथ हैं यांही,
देही में देवी का वासा,
अखंड ज्योत जलती वांही।
हाथ बने हस्तिनापुर नगरी,
ऊँगली बनी पाँचों पांडव,
सीने में हनुमान विराजे,
लड़ने से डरता नहीं।
सुख बना तेरा मक्का मदीना,
नासिक की है दरगाह यांही,
कान बने कनकापुर नगरी,
सत वचन सुन ले यांही।
नेत्र बने तेरे चंदा सूरज,
देख रहा दुनिया मांही,
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
लख्या लेख मिटता नहीं।
Bina Bhed Bahar Maat Bhatko - Sant Kabir
Singer : Padmashree Prahlad Singh Tipaniya
Translation of the Song in English :
Translation of the Song in English :
मनुष्य अक्सर ईश्वर की खोज में बाहर भटकता रहता है, मंदिरों, मस्जिदों और तीर्थस्थलों की यात्रा करता है, जबकि संत कबीर के अनुसार, ईश्वर हमारे भीतर ही निवास करते हैं। जैसा कि इस भजन में कहा गया है, "बाहर भटक्या है कांई, अडसठ तीरथ यहाँ बता दूं, कर दर्शन थारा देह मांही।" इसका अर्थ है कि हमें बाहर कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे शरीर में ही सभी 68 तीर्थों का वास है। कबीर के लिए, सच्चा तीर्थ हमारे भीतर की यात्रा है, जहां हमारी देह का हर अंग एक पवित्र स्थान है। हमारे पांव में कमल, जांघों में जगदीश, और हृदय में देवी का वास है। वे हमें सिखाते हैं कि सच्चा ईश्वर किसी विशेष स्थान या व्यक्ति में नहीं, बल्कि हर जगह, हर चीज़ में और सबसे महत्वपूर्ण, हमारे अपने अस्तित्व में है। जब हम अपने भीतर झाँककर उसे पहचानते हैं, तो हम यह महसूस करते हैं कि ईश्वर एक बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि एक सर्वव्यापी ऊर्जा है जो हमें हर पल चला रही है।
संत कबीर का यह भजन हमें यह सिखाता है कि ईश्वर की खोज में बाहरी भटकन व्यर्थ है। वे कहते हैं, "बिना भेद बाहर मत भटको," क्योंकि सच्चा तीर्थ और ईश्वर स्वयं हमारे भीतर ही निवास करते हैं। कबीर इस बात को विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से समझाते हैं: हमारे शरीर के भीतर ही 68 तीर्थों का वास है, जहाँ हम ईश्वर के दर्शन कर सकते हैं। वे बताते हैं कि हमारे पांवों में पद्म (कमल) हैं, जांघों में भगवान जगदीश और कमर में केदारनाथ का वास है।
हमारे हाथ हस्तिनापुर नगरी हैं और पाँचों उँगलियाँ पाँच पांडवों का प्रतीक हैं। हमारे सीने में हनुमान जी बसते हैं, जो हमें साहस और निडरता प्रदान करते हैं। यह भजन इस विचार पर जोर देता है कि हमारा शरीर ही सबसे पवित्र मंदिर है। हमारी आँखें सूर्य और चंद्रमा की तरह हैं, जो हमें आंतरिक और बाहरी दुनिया को देखने की क्षमता देती हैं। कबीर का सार यही है कि सच्चा ज्ञान और ईश्वर की अनुभूति बाहरी तीर्थयात्राओं में नहीं, बल्कि स्वयं के भीतर की यात्रा में है।
हमारे हाथ हस्तिनापुर नगरी हैं और पाँचों उँगलियाँ पाँच पांडवों का प्रतीक हैं। हमारे सीने में हनुमान जी बसते हैं, जो हमें साहस और निडरता प्रदान करते हैं। यह भजन इस विचार पर जोर देता है कि हमारा शरीर ही सबसे पवित्र मंदिर है। हमारी आँखें सूर्य और चंद्रमा की तरह हैं, जो हमें आंतरिक और बाहरी दुनिया को देखने की क्षमता देती हैं। कबीर का सार यही है कि सच्चा ज्ञान और ईश्वर की अनुभूति बाहरी तीर्थयात्राओं में नहीं, बल्कि स्वयं के भीतर की यात्रा में है।
कबीर कहते हैं, तुम्हारे पांव में कमल (पद्म) बस्ते हैं, पिंड में भागवत का वास है, घुटनों में गोरखनाथ, और कमर में केदारनाथ। देह में देवी की अखंड ज्योत जलती है। हाथ हस्तिनापुर बने हैं, उंगलियां पांडव, और सीने में हनुमान विराजते हैं, जो कभी डरते नहीं। नासिका में मक्का-मदीना, कान में कनकापुर, और आंखों में चंद्र-सूरज—सब कुछ तुम्हारे भीतर ही है।
ये सारा संसार तुम्हारी देह में समाया है, फिर बाहर क्यों भटकते हो? कबीर साधो को समझाते हैं कि सत्य का लेख कभी मिटता नहीं। बस अपने मन को शुद्ध करो, और भीतर झांककर उस अखंड ज्योत को देखो। जैसे कोई सूरज की किरणें अंधेरे को मिटा देती हैं, वैसे ही आत्मा में ईश्वर का दर्शन हर भ्रम को मिटा देता है। जीवन का सच यही है कि ईश्वर हर जगह, हर प्राणी में बस्ता है। सतगुरु की कृपा से अपने भीतर की खोज करो, तो वो सत्य मिल जाता है, जो सदा से तुम्हारे हृदय में है। जैसे कोई दीया रात-भर जलकर उजाला दे, वैसे ही ईश्वर का नाम मन को सदा रोशन रखता है।
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Author - Saroj Jangir
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