थारो राम ह्रदय में बाहर क्यों भटके

कबीर के अनुसार इश्वर आत्मा में ही है। वे एक संत कवि थे, जिन्होंने अपने समय में धर्म की कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने ईश्वर को एक व्यक्ति या किसी विशेष स्थान में नहीं देखा, बल्कि उन्होंने ईश्वर को आत्मा में माना। कबीर के अनुसार, आत्मा ही ईश्वर का निवास स्थान है। आत्मा ही ईश्वर का रूप है। जब हम अपने भीतर की आत्मा को देखते हैं, तो हम ईश्वर को देखते हैं।

थारो राम ह्रदय में बाहर क्यों भटके लिरिक्स Tharo Ram Hridya Me Bahar Kyo Lyrics

थारो राम ह्रदय में बाहर क्यों भटके कबीर भजन

 
थारो राम ह्रदय में बाहर क्यों भटके,
ऐसा ऐसा हीरला घट मां कहीये,
जौहरी बिना हीरा कौन परखे ?
थारो राम ह्रदय में, बाहर क्यों भटके?

ऐसा ऐसा घृत दूध मां कहीये,
बिना झुगिये माखन कैसे निकले ?
थारो राम ह्रदय में, बाहर क्यों भटके?

ऐसा ऐसा आग लकड़ी मां कहीये,
बिना घिसिये आग कैसे निकले ?
थारो राम ह्रदय में, बाहर क्यों भटके?

ऐसा ऐसा किवाड़ हिवडे पर जड़िया,
गुरु बिना ताला कौन खोले ?
थारो राम ह्रदय में, बाहर क्यों भटके?

कहें कबीर साह सुनो भाई साधो,
राम मिले थाणे कौन हटके ?
थारो राम ह्रदय में बाहर क्यों भटके,
ऐसा ऐसा हीरला घट मां कहीये,
जौहरी बिना हीरा कौन परखे ?
थारो राम ह्रदय में, बाहर क्यों भटके?



'Baahar Kyon Bhatke' by Mahesha Ram and Bhage Khan

Vocals & Tambura: Mahesha Ram
Second Vocals & Tambura: Bhage Khan
Dholak: Anwar Khan
Manjiras: Amolak Ram & Mona Ram
Harmonium: Gillu Khan
 
महेशा राम जी ने यह गीत भागे खान और उनकी मंडली के साथ मोमासर गांव में राजस्थान कबीर यात्रा की पहली रात को गाया था। यह एक सप्ताह तक चलने वाला यात्रा उत्सव था, जिसमें फरवरी 2012 में भक्ति, सूफी और बाउल काव्य के 13 गायकों ने 7 गांवों का दौरा किया था। यह यात्रा बीकानेर में लोकायन द्वारा कबीर प्रोजेक्ट, बैंगलोर के साथ साझेदारी में आयोजित की गई थी।
 
कबीरदासजी का यह भजन आत्मा के उस सत्य को उजागर करता है, जो हर मनुष्य के हृदय में बस्ता है। वे कहते हैं, राम तुम्हारे हृदय में ही हैं, फिर बाहर क्यों भटकते हो? जैसे कोई अनमोल हीरा हृदय रूपी घट में छिपा हो, पर उसे परखने के लिए जौहरी चाहिए। बिना गुरु के ज्ञान के, उस हीरे की कीमत कैसे समझ आए? कबीर उदाहरण देते हैं—जैसे दूध में घी छिपा है, पर बिना मथे माखन नहीं निकलता; लकड़ी में आग है, पर बिना घर्षण के वो जागती नहीं। उसी तरह, हृदय के किवाड़ों पर ताला लगा है, जिसे गुरु ही खोल सकता है। गुरु के बिना सत्य का मार्ग नहीं मिलता, जैसे कोई अंधेरे में बिना दीये भटके। कबीर साधो को समझाते हैं कि जब राम हृदय में ही विराजमान हैं, तो कोई बाहरी ताकत उन्हें छीन नहीं सकती। बस सच्चे मन से आत्मा की खोज करो, गुरु की शरण लो, तो वो सत्य मिल जाता है। जैसे कोई प्यासा कुएं तक पहुंचकर तृप्त हो जाए, वैसे ही गुरु का ज्ञान मन को राम से जोड़ देता है।

जीवन का सच यही है कि बाहर की खोज छोड़कर, हृदय में झांकने से ही परमात्मा मिलता है। गुरु की कृपा से आत्मा का दीया जलता है, और सारा अंधेरा मिट जाता है, जैसे सूरज की किरणें रात को भगा दें।
 
कबीर साहब के दर्शन का एक मूल सिद्धांत यह है कि ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के भीतर, उसके "घट" (शरीर या हृदय) में ही निवास करता है। "घट में राम है" की यह अवधारणा हमें बाहरी आडंबरों और व्यर्थ की खोज से परे ले जाती है। "थारो राम हृदय में, बाहर क्यों भटके," कबीर भी यही सिखाते हैं कि हम ईश्वर को तीर्थस्थलों, मंदिरों या मस्जिदों में ढूंढते हैं, जबकि वह हमारी श्वास में, हमारे हर कण में मौजूद है। उनका मानना था कि बाहरी दिखावे और पूजा-पाठ में उलझकर हम उस परम सत्य से दूर हो जाते हैं जो हमारे भीतर ही बैठा है। सच्चा मार्ग तो अपनी अंतरात्मा में झाँककर उस 'राम' को पहचानना है। इस प्रकार, कबीर के अनुसार, मानव शरीर स्वयं एक पवित्र मंदिर है और ईश्वर की खोज कोई बाहरी यात्रा नहीं, बल्कि एक गहरी आंतरिक यात्रा है। 
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