काम क्रोध लोभ की कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kam Krodh Lobh Ki kabir Doha Hindi Meaning

काम क्रोध लोभ की कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kam Krodh Lobh Ki kabir Doha Hindi Meaning

काम क्रोध लोभ की, जब लग घट में खान
कबीर मूरख पंडिता दोनों एक समान.
Kam Krodh Lobh Ki, Jab Lag Ghat Me Khan,
Kabir murkh Pandita Dono Ek Saman
 

काम क्रोध लोभ की कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kam Krodh Lobh Ki kabir Doha Hindi Meaning

कबीर साहेब की वाणी है कि काम, क्रोध, लोभ, मद एवं मोह आदि दुर्गुणों से, जब तक हृदय भरा हुआ है, तब तक मूर्ख और पंडित दोनों एक समान हैं, अर्थात जिसने भक्ति - ज्ञान से इन दुर्गुणों को अपने हृदय से दूर कर दिया, वही पंडित है और जिसने इसका त्याग नहीं किया, वह मूर्ख है, कबीर साहेब पंडित और मूर्ख दोनों को एक ही समान बताते हैं।  कबीर साहेब की वाणी है की मुर्ख और पंडित (शास्त्र का ज्ञानी) दोनों ही एक समान ही होते हैं जब तक की काम क्रोध और लोभ से मुक्ति ना हो। 
 
यदि कोई पंडित है और वह काम, क्रोध और लोभ में पड़ा हुआ है तो उसमें और मूर्ख में कोई अंतर नहीं होता है, दोनों ही एक ही समान होते हैं। काम क्रोध और लोभ की जब तक घट (हृदय) में खान है तब तक वह व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर सकता है. भले ही वह मुर्ख हो या ज्ञानी, दोनों एक ही समान होते हैं. अतः व्यक्ति को भक्ति के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए सर्वप्रथम अपने हृदय से काम, क्रोध और लोभ जैसे विकारों को निकाल देना चाहिए .

काम क्रोध लोभ की कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kam Krodh Lobh Ki kabir Doha Hindi Meaning

Kaam Krodh Lobh Word Meaning in Hindi (Kabir Doha)

काम (वासना) - Lust / Desires
क्रोध (गुस्सा) - Anger / Wrath
लोभ (लालच) - Greed / Covetousness
जब लग (जब तक) - Until / As long as
घट में खान (हृदय में खान है, भण्डार है) - Reside in the heart, it is a treasure.
मूरख - Fool / Ignorant
पंडिता (ज्ञानी) - Scholar / Learned person
दोनों एक समान - Both are equal / Same in both cases.
 
कबीर साहेब इस दोहे के माध्यम से सन्देश दिया है कि काम, क्रोध और लोभ इंसान के शत्रु हैं और इनके चलते मूर्ख और पंडित, दोनों ही समान बन जाते हैं। यहां 'मूर्ख' वह व्यक्ति है जिसमें ज्ञान और विवेक की कमी होती है और वह अज्ञानी व्यक्ति होता है। 'पंडित' वह व्यक्ति है जिसे शास्त्रों का अध्ययन होता है और वह ज्ञानी व्यक्ति होता है।

काम, क्रोध और लोभ इंसान को अज्ञानता में डालकर उसे पंडित को भी मूर्ख बना देते हैं। जब एक व्यक्ति इन तीनों दुष्मनों से मुक्त होकर विवेकी बनता है, तो उसे 'पंडित' कहा जाता है। लेकिन, अगर कोई पंडित काम, क्रोध और लोभ में फंस जाता है, तो उसका ज्ञान व्यर्थ हो जाता है और वह भी मूर्ख के समान बन जाता है।

कबीरदास की रचनाएँ Kabir das ki Rachnaye in hindi

कबीरदास जी का प्रमुख ग्रंथ बीजक है, जो की तीन भागों में हैं.
  • साखी
  • सबद
  • रमैनी
  • अन्य कृतियों में
  • अनुराग सागर
  • साखी ग्रंथ
  • शब्दावली
  • कबीर ग्रंथावली

कबीर दास जी की मुख्य रचनाएं : Kabir Poems in Hindi

  • कबीर दास जी की रचनाएं : भाग 1
  • साधो, देखो जग बौराना : कबीर
  • कथनी-करणी का अंग -कबीर
  • करम गति टारैनाहिंटरी : कबीर
  • चांणक का अंग : कबीर
  • नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार : कबीर
  • मोको कहां : कबीर
  • रहना नहिंदेसबिराना है : कबीर
  • दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ : कबीर
  • राम बिनु तन को ताप न जाई : कबीर
  • हाँ रे! नसरलहटिया उसरी गेलै रे दइवा : कबीर
  • हंसा चललससुररिया रे, नैहरवाडोलम डोल : कबीर
  • अबिनासीदुलहा कब मिलिहौ, भक्तन के रछपाल : कबीर
  • सहज मिले अविनासी : कबीर
  • कबीर दास जी की रचनाएं : भाग 2
  • मोको कहां ढूँढे रे बन्दे : कबीर
  • चितावणी का अंग : कबीर
  • कामी का अंग : कबीर
  • मन का अंग : कबीर
  • जर्णा का अंग : कबीर
  • निरंजन धन तुम्हरो दरबार : कबीर
  • सुगवापिंजरवाछोरि भागा : कबीर
  • ननदी गे तैं विषम सोहागिनि : कबीर
  • भेष का अंग : कबीर
  • सम्रथाई का अंग : कबीर
  • मधि का अंग : कबीर
  • सतगुर के सँग क्यों न गई री : कबीर
  • उपदेश का अंग : कबीर
  • करम गति टारैनाहिंटरी : कबीर
  • भ्रम-बिधोंसवा का अंग : कबीर
  • पतिव्रता का अंग : कबीर
  • कबीर दास जी की रचनाएं : भाग 3
  • समरथाई का अंग : कबीर
  • पाँच ही तत्त के लागलहटिया : कबीर
  • बड़ी रे विपतिया रे हंसा, नहिरागँवाइल रे : कबीर
  • अंखियां तो झाईं परी : कबीर
  • कबीर के पद : कबीर
  • जीवन-मृतक का अंग : कबीर
  • नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार : कबीर
  • धोबिया हो बैराग : कबीर
  • तोर हीरा हिराइल बा किचड़े में : कबीर
  • घर पिछुआरीलोहरवा भैया हो मितवा : कबीर
  • सोना ऐसनदेहिया हो संतो भइया : कबीर
  • बीत गये दिन भजन बिना रे : कबीर
  • चेत करु जोगी, बिलैयामारै मटकी : कबीर
  • अवधूतायुगनयुगन हम योगी : कबीर
  • रहली मैं कुबुद्ध संग रहली : कबीर
  • कबीर की साखियाँ : कबीर
  • बहुरिनहिंआवना या देस : कबीर
  • कबीर दास जी की रचनाएं : भाग 4
  • भजो रे भैया राम गोविंद हरी : कबीर
  • का लैजैबौ, ससुर घर ऐबौ : कबीर
  • सुपने में सांइ मिले : कबीर
  • मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै : कबीर
  • तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के : कबीर
  • मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै : कबीर
  • साध-असाध का अंग : कबीर
  • दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ : कबीर
  • माया महा ठगनी हम जानी : कबीर
  • माया का अंग : कबीर
  • काहे री नलिनी तू कुमिलानी : कबीर
  • गुरुदेव का अंग : कबीर
  • नीति के दोहे : कबीर
  • बेसास का अंग : कबीर
  • सुमिरण का अंग : कबीर
  • केहिसमुझावौ सब जग अन्धा : कबीर
  • मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा : कबीर
  • कबीर दास जी की रचनाएं : भाग 5
  • मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया : कबीर
  • कबीर की साखियाँ : कबीर
  • मुनियाँपिंजड़ेवाली ना, तेरो सतगुरु है बेपारी : कबीर
  • अँधियरवा में ठाढ़ गोरी का करलू : कबीर
  • अंखियां तो छाई परी : कबीर
  • ऋतु फागुन नियरानी हो : कबीर
  • घूँघट के पट : कबीर
  • साधु बाबा हो बिषयबिलरवा, दहियाखैलकै मोर : कबीर
  • घूँघट के पट : कबीर
  • हमन है इश्क मस्ताना : कबीर
  • सांच का अंग : कबीर
  • सूरातन का अंग : कबीर
  • हमन है इश्क मस्ताना : कबीर
  • रहना नहिंदेसबिराना है : कबीर
  • कबीर दास जी की रचनाएं : भाग 6
  • रे दिल गाफिल गफलत मत कर : कबीर
  • सुमिरण का अंग : कबीर
  • मन लाग्योमेरो यार फ़कीरी में : कबीर
  • राम बिनु तन को ताप न जाई : कबीर
  • तेरा मेरा मनुवां : कबीर
  • भ्रम-बिधोंसवा का अंग : कबीर
  • साध का अंग : कबीर
  • कौन ठगवा नगरियालूटल हो : कबीर
  • रस का अंग : कबीर
  • संगति का अंग : कबीर
  • झीनी झीनी बीनी चदरिया : कबीर
  • रहना नहिंदेसबिराना है : कबीर
  • साधो ये मुरदों का गांव : कबीर
  • विरह का अंग : कबीर

दुराचार करना कितना पाप है Kabir Ke Anusar Durachar Kitana Paap Hai ?

कबीरदास जी के वचन व्यक्ति को जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके वचनों में दुराचार करने का पाप और उसके परिणाम का वर्णन किया गया है। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति किसी परस्त्री के साथ दुष्कर्म करता है, उसे सत्तर जन्म अन्धे के जीवन का भोगना पड़ता है। इससे यह भावना प्रतिष्ठित होती है कि दुराचार करना अत्यंत पापयुक्त है और उसके परिणाम कायम रहते हैं।

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