हम सब मांही सकल हम मांही भजन
हम सब मांही सकल हम मांही
हम ते और दूसरा नांही
तीन लोक में हमारा पसारा
आवा गमन सब खेल हमारा
हम सब मांही..
षट दर्शन कहियत भेष
हम ही अतीत रूप नहीं रेखा
हम सब मांही..
हम ही आप कबीर कहावा
हम हीं अपना आप लखावा
हम सब मांही..
Ham sab maanhi sakal ham maanhi
Ham te aur doosra naahin
Teen lok mein hamaara pasaara
Aava gaman sab khel hamaara
Ham sab maanhi
Shat darshan kahiyat bhesh
Ham hi ateet roop nahin rekha
Ham sab maanhi
Ham hi aap Kabir kahaava
Ham hi apna aap lakhaava
Ham sab maanhiयह रचना संत कबीर के अद्वितीय दर्शन और उनकी गहरी आध्यात्मिकता का सुंदर चित्रं है। कबीर साहेब के इस पद में आत्मा, ब्रह्मांड, और परमात्मा की अद्वितीयता के बारे में बताया गया है।
कबीर दास कहते हैं कि हर जीव और वस्तु में परमात्मा का वास है। सब कुछ उसी से उत्पन्न हुआ है, और वही सबकुछ है। तीनों लोकों (पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल) में उन्हीं का विस्तार है, और जन्म और मृत्यु का खेल भी उनकी माया का ही हिस्सा है।
"षट दर्शन" अर्थात छह दर्शनों में जो भिन्न-भिन्न भेष या विचारधाराएं मानी जाती हैं, वे भी उसी के रूप हैं। कबीर कहते हैं कि हम न तो भूतकाल में सीमित हैं, न ही कोई आकार है जो हमें बांध सके।
कबीर स्वयं को "आप" कहते हुए बताते हैं कि वे अपने भीतर परमात्मा को पहचान चुके हैं। यह आत्मबोध की पराकाष्ठा है, जहां व्यक्ति अपने अस्तित्व को ब्रह्म के साथ एकाकार मान लेता है।
यह पद मानवता, एकता और अद्वैत (सभी में एक ही ईश्वर का वास) के गहन विचार को उजागर करता है। कबीर का यह संदेश हमें अपनी आत्मा और बाहरी संसार के बीच के गहरे संबंध को पहचानने की प्रेरणा देता है।
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Author - Saroj Jangir
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