एकला मत छोड़जो बंजारा रे लिरिक्स
एकला मत छोड़जो बंजारा रे कबीर भजन
दाता नदिया एक सम, सब काहू को देत,हाथ कुंभ जिसका जैसा, वैसा ही भर लेत ||
कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर,
जो पर पीर ना जानिए, सो काफिर बे पीर।|
एकला मत छोड़जो बंजारा रे,
परदेस का है मामला खोटा हो जाना रे,
दूर देस का है मामला टेढा हो जाना रे.
अपना साहब जी ने
बंगला बनायो बंजारा रे
ऊपर रखियो झरोखा
झान्क्या करो प्यारा रे
अपना साहब जी ने
बाग लगायो बंजारा रे
फूलां भरी है छाबड़ी
पाया करो प्यारा रे
अपना साहब जी ने
कुआँ खानायो बंजारा रे
गहरा भरया नीर वां
नहाया करो प्यारा रे
कहें कबीर धर्मदास से बंजारा रे
सत अमरापुर पावीया
सौदा करो प्यारा रे
भजन – एकला मत छोड़ जो बणजारा रे
एकला मत छोड़ जो बंजारा रे || Ekla Mat Chodjo Banjara Re || Kabir Bhajan
Violin and Vocal :- Devnarayan Saroliya
Dholak and vocal :- Ajay Tipaniya
Manjira :- Manglesh Mangroliya
Audio and Video editing :- Mayank Tipaniya
कबीरदासजी का ये भजन मन को उस सत्य की ओर ले जाता है, जो गुरु की संगत के बिना अधूरा है। जैसे कोई अंधेरे में बिना दीये के भटके, वैसे ही गुरु के बिना सत्य का मार्ग नहीं मिलता। कबीर कहते हैं कि गुरु वो दीपक है, जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का उजाला फैलाता है। सच्चे मन से गुरु की खोज करने वाला ही उनकी कृपा पाता है, जैसे कोई प्यासा कुएं तक पहुंचे।
भजन में कबीर बंजारे से कहते हैं, "एकला मत छोड़जो," यानी अकेले इस संसार के जंजाल में मत भटको। परदेस का रास्ता टेढ़ा और खोटा है, पर गुरु की शरण में सच्चा सौदा मिलता है। साहब ने बंगला बनाया, झरोखा रखा, बाग लगाया, और कुआं खोदा—ये सब उस परम सत्य की ओर इशारा है। भक्त को बस उस बंगले में झांकना है, फूलों को पाना है, और गहरे जल में नहाकर शुद्ध होना है।
कबीर कहते हैं, दाता की नदी सबके लिए समान बहती है, पर जिसके पास जैसा बर्तन, वो वैसा ही भर लेता है। सच्चा पीर वही है, जो दूसरों के दुख को समझे। जो ऐसा नहीं करता, वो बिना मार्गदर्शन का काफिर है। धर्मदास से कबीर यही कहते हैं कि सत अमरापुर का सौदा करो, यानी सत्य की खोज में गुरु के साथ चलो।
जीवन का सच यही है कि गुरु की संगत और सत्य की खोज ही मन को अमरापुर तक ले जाती है। जैसे कोई फूल सूरज की रोशनी में खिलता है, वैसे ही गुरु का ज्ञान मन को सदा के लिए रोशन कर देता है। बस सच्चे मन से उनकी शरण लो, और बंजारे का टेढ़ा रास्ता सीधा हो जाएगा।
कबीर साहब की दृष्टि में, सत्य कोई बाहरी वस्तु या सैद्धांतिक अवधारणा नहीं है, बल्कि वह एक आंतरिक अनुभूति है जिसे हर व्यक्ति अपने भीतर पा सकता है। उनके अनुसार, सत्य ईश्वर का ही दूसरा नाम है और यह किसी धर्म, जाति या कर्मकांड की सीमाओं में बंधा नहीं है। कबीर ने कहा है कि लोग सत्य को बाहर मंदिरों, मस्जिदों या तीर्थस्थलों में खोजते हैं, जबकि वह हमारे हृदय के भीतर ही निवास करता है। वे आडंबरों और दिखावे की पूजा का खंडन करते हुए कहते हैं कि सच्चा भक्त वह है जो अपने अंतरात्मा में झाँककर उस परम सत्य को पहचानता है। कबीर के लिए, सत्य का मार्ग प्रेम, सरलता और निस्वार्थ भाव से जीवन जीने में है, क्योंकि यही वह रास्ता है जो हमें ईश्वर से जोड़ता है। इस प्रकार, कबीर साहब के विचार में, सत्य की खोज बाहरी यात्रा नहीं, बल्कि एक गहरी आंतरिक यात्रा है।
