जहाँ देखा वहां तू का तू प्रह्लाद सिंह टिपानिया
कबीर के अनुसार कण कण में इश्वर है। वे एक संत कवि थे, जिन्होंने अपने समय में धर्म की कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने ईश्वर को एक व्यक्ति या किसी विशेष स्थान में नहीं देखा, बल्कि उन्होंने ईश्वर को सर्वव्यापी माना। कबीर के अनुसार, ईश्वर को पाने के लिए हमें अपने भीतर झांकना चाहिए। हमें अपने मन और आत्मा को शुद्ध करना चाहिए। जब हम अपने भीतर ईश्वर को देख लेंगे, तो हम उसे बाहर भी देख पाएंगे। कबीर के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। वे हमें यह बताते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए हमें किसी विशेष स्थान या किसी विशेष व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। हम सभी में ईश्वर का वास है।
इनका भेद बता मेरे अवधू,
अच्छी करनी कर ले तू,
डाली फूल जगत के माही,
जहाँ देखा वहां तू का तू।
हाथी में हाथी बन बैठो
चींटी में हैं छोटो तू
होय महावत ऊपर बैठे
हांकन वाला तू का तू
जहाँ देखा वहां तू का तू।
चोरों के संग चोरी करता
बदमाशों में भेड़ो तू
चोरी करके तू भग जावे
पकड़ने वाला तू का तू
जहाँ देखा वहां तू का तू।
दाता के संग दाता बन जावे
भिखारी में भेड़ों तू
मंग्तो होकर मांगन लागे
देने वाला तू का तू,
जहाँ देखा वहां तू का तू।
नर नारी में एक विराजे
दो दुनिया में दिसे क्यूँ
बालक होकर रोवन लागे
रखन वाला तू का तू
जहाँ देखा वहां तू का तू।
जल थल जीव में तू ही विराजे
जहाँ देखूं वहां तू का तू
कहें कबीर सुनो भाई साधो
गुरु मिला हैं ज्यों का त्यों
जहाँ देखा वहां तू का तू।
डाली फूल जगत के माही,
जहाँ देखा वहां तू का तू।
हाथी में हाथी बन बैठो
चींटी में हैं छोटो तू
होय महावत ऊपर बैठे
हांकन वाला तू का तू
जहाँ देखा वहां तू का तू।
चोरों के संग चोरी करता
बदमाशों में भेड़ो तू
चोरी करके तू भग जावे
पकड़ने वाला तू का तू
जहाँ देखा वहां तू का तू।
दाता के संग दाता बन जावे
भिखारी में भेड़ों तू
मंग्तो होकर मांगन लागे
देने वाला तू का तू,
जहाँ देखा वहां तू का तू।
नर नारी में एक विराजे
दो दुनिया में दिसे क्यूँ
बालक होकर रोवन लागे
रखन वाला तू का तू
जहाँ देखा वहां तू का तू।
जल थल जीव में तू ही विराजे
जहाँ देखूं वहां तू का तू
कहें कबीर सुनो भाई साधो
गुरु मिला हैं ज्यों का त्यों
जहाँ देखा वहां तू का तू।
इनका भेद बता मेरे अवधू,
अच्छी करनी कर ले तू,
डाली फूल जगत के माही,
जहाँ देखा वहां तू का तू।
जहाँ देखूँ वहाँ तू का तू || Jahan Dekhu Wahan Tu Ka Tu
Main Vocal : Padmashri Prahlad Singh Tipaniya
Choras & Manjira : Ashok Tipaniya
Violin : Devnarayan Saroliya
Dholak : Ajay Tipaniya
Harmonium : Dharmandra Tipaniya
Sound Mixing : Peter jamra
Video Editing : Mayank Tipaniya
Choras & Manjira : Ashok Tipaniya
Violin : Devnarayan Saroliya
Dholak : Ajay Tipaniya
Harmonium : Dharmandra Tipaniya
Sound Mixing : Peter jamra
Video Editing : Mayank Tipaniya
कबीरदासजी का ये भजन मन को उस सत्य की ओर ले जाता है, जो हर जगह बस्ता है। वो परमात्मा हर रूप में, हर जगह विराजमान है—हाथी में, चींटी में, चोर में, दाता में, भिखारी में, और नर-नारी में। जैसे कोई सागर हर बूंद में समाया हो, वैसे ही वो हर प्राणी में तू का तू है।
हाथी में वो महावत है, चींटी में छोटा सा रूप, चोर के साथ चोरी करता, फिर भी पकड़ने वाला वही। दाता बनकर देता है, भिखारी बनकर मांगता है—हर खेल में वही खिलाड़ी है। ये उनकी लीला है, जो दुनिया के हर कोने में दिखती है, जैसे कोई सूरज हर जगह रोशनी बिखेरे।
नर-नारी में एक ही आत्मा बसती है, फिर भी दो दिखाई देते हैं। बालक बनकर रोता है, और रक्षक बनकर संभालता भी वही है। जल, थल, जीव—हर जगह वही विराजे हैं। कबीर कहते हैं, साधो, गुरु की शरण में जाओ, तो वो सत्य ‘ज्यों का त्यों’ समझ आता है। जीवन का सच यही है कि परमात्मा हर जगह, हर रूप में है। बस सच्चे मन से देखो, तो जहाँ देखो, वहाँ तू का तू ही दिखेगा। जैसे कोई दीया अंधेरे में भी रास्ता दिखाए, वैसे ही गुरु का ज्ञान और भक्ति मन को उस सत्य तक ले जाती है।
हाथी में वो महावत है, चींटी में छोटा सा रूप, चोर के साथ चोरी करता, फिर भी पकड़ने वाला वही। दाता बनकर देता है, भिखारी बनकर मांगता है—हर खेल में वही खिलाड़ी है। ये उनकी लीला है, जो दुनिया के हर कोने में दिखती है, जैसे कोई सूरज हर जगह रोशनी बिखेरे।
नर-नारी में एक ही आत्मा बसती है, फिर भी दो दिखाई देते हैं। बालक बनकर रोता है, और रक्षक बनकर संभालता भी वही है। जल, थल, जीव—हर जगह वही विराजे हैं। कबीर कहते हैं, साधो, गुरु की शरण में जाओ, तो वो सत्य ‘ज्यों का त्यों’ समझ आता है। जीवन का सच यही है कि परमात्मा हर जगह, हर रूप में है। बस सच्चे मन से देखो, तो जहाँ देखो, वहाँ तू का तू ही दिखेगा। जैसे कोई दीया अंधेरे में भी रास्ता दिखाए, वैसे ही गुरु का ज्ञान और भक्ति मन को उस सत्य तक ले जाती है।
कबीर दास जी, १५वीं सदी के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे, जिनकी शिक्षाएँ और दर्शन आज भी प्रासंगिक हैं। उनका जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था और उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम जुलाहा परिवार में हुआ। उन्होंने औपचारिक शिक्षा कभी नहीं ली, लेकिन अपने अनुभवों और गहन चिंतन से जो ज्ञान प्राप्त किया, उसे उन्होंने अपनी साखियों, सबदों और रमैनियों के माध्यम से व्यक्त किया। उनकी भाषा, जिसे 'सधुक्कड़ी' कहा जाता है, में कई बोलियों जैसे कि ब्रज, अवधी और राजस्थानी का मिश्रण है, जिससे उनके दोहे आम लोगों तक आसानी से पहुँच सके। कबीर ने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में व्याप्त आडंबरों, पाखंडों और जातिगत भेदभाव का कड़ा विरोध किया। उन्होंने एक ही निराकार ईश्वर की पूजा पर जोर दिया, जिसे वे 'राम', 'अल्लाह', या 'निरंकार' जैसे विभिन्न नामों से पुकारते थे। कबीर के विचार सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी संकलित हैं, जो उनके सार्वभौमिक संदेश की महत्ता को दर्शाता है। उनका जीवन और रचनाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्चा धर्म बाहरी कर्मकांडों में नहीं, बल्कि प्रेम, सद्भाव और मानवता में निहित है।
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Author - Saroj Jangir
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