राणाजी म्हांरी प्रीति पुरबली मैं कांई करूं
राणाजी म्हांरी प्रीति पुरबली मैं कांई करूं।।
राम नाम बिन नहीं आवडे हिबडो झोला खाय।
भोजनिया नहीं भावे म्हांने नींदडलीं नहिं आय।।
विष को प्यालो भेजियो जी जा मीरा पास
कर चरणामृत पी ग म्हारे गोविन्द रे बिसवास।।
बिषको प्यालो पीं ग जींभजन करो राठौर
थांरी मीरा ना मरूं म्हारो राखणवालो और।।
छापा तिलक लगाया जीं मन में निश्चै धार
रामजी काज संवारियाजी म्हांने भावै गरदन मार।।
पेट्यां बासक भेजियो जी यो छै मोतींडारो हार
नाग गले में पहिरियो म्हारे महलां भयो उजियार।।
राठोडांरीं धीयडी दी सींसाद्यो रे साथ।
ले जाती बैकुंठकूं म्हांरा नेक न मानी बात।।
मीरा दासी श्याम की जी स्याम गरीबनिवाज।
जन मीरा की राखज्यो को बांह गहेकी लाज।। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं