राम नाम मेरे मन बसियो भजन

राम नाम मेरे मन बसियो भजन

ओ मीरा भाभी जी ऊँचो जी थारो बैसणो लिरिक्स O Meera Bhabhi Ji Bhajan Lyrics
 
राम नाम मेरे मन बसियो रसियो राम रिझाऊं ए माय।
मैं मंदभागण परम अभागण कीरत कैसे गाऊं ए माय।।
बिरह पिंजरकी बाड सखी रींउठकर जी हुलसाऊं ए माय।
मनकूं मार सजूं सतगुरसूं दुरमत दूर गमाऊं ए माय।।
डंको नाम सुरतकी डोरी कडियां प्रेम चढाऊं ए माय।
प्रेम को ढोल बन्यो अति भारी मगन होय गुण गाऊं ए माय।।
तन करूं ताल मन करूं ढफली सोती सुरति जगाऊं ए माय।
निरत करूं मैं प्रीतम आगे तो प्रीतम पद पाऊं ए माय।।
मो अबलापर किरपा कीज्यौ गुण गोविन्दका गाऊं ए माय।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर रज चरणनकी पाऊं ए माय।।

Raam Naam Mere Man Basiyo Rasiyo Raam Rijhaoon E Maay.
Main Mandabhaagan Param Abhaagan Keerat Kaise Gaoon E Maay..
Birah Pinjarakee Baad Sakhee Reenuthakar Jee Hulasaoon E Maay.
Manakoon Maar Sajoon Satagurasoon Duramat Door Gamaoon E Maay..
Danko Naam Suratakee Doree Kadiyaan Prem Chadhaoon E Maay.
Prem Ko Dhol Banyo Ati Bhaaree Magan Hoy Gun Gaoon E Maay..
Tan Karoon Taal Man Karoon Dhaphalee Sotee Surati Jagaoon E Maay.
Nirat Karoon Main Preetam Aage To Preetam Pad Paoon E Maay..
Mo Abalaapar Kirapa Keejyau Gun Govindaka Gaoon E Maay.
Meeraake Prabhu Giradhar Naagar Raj Charananakee Paoon E Maay..
 

Meera Krishna Bhajan Ram Naam Mere Man Basiyo


मीरा बाई की कविताएँ सरल, मधुर और गाने योग्य हैं। उनकी कृष्ण भक्ति में पूर्ण समर्पण और अनन्यता झलकती है। मीरा बाई भगवान कृष्ण की उपासक थीं, और उनके पदों में सगुण ईश्वर की उपासना प्रकट होती है। उनकी रचनाओं में राजस्थानी, ब्रज, पंजाबी और गुजराती भाषाओं के शब्दों का समावेश है। मीरा के काव्य में विद्वत्ता का प्रदर्शन नहीं है; उन्होंने अनावश्यक छंदों और अलंकारों का प्रयोग नहीं किया। उनकी कविताओं में मुख्य रूप से माधुर्य भाव प्रकट होता है। मीरा बाई की भक्ति में पूर्ण समर्पण, सगुण ईश्वर की उपासना और नवधा भक्ति के गुण दृष्टिगोचर होते हैं। उनके काव्य में शृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण मिलता है। मीरा का काव्य गीतिकाव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें उच्च आध्यात्मिक अनुभूति, भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति और प्रेम की ओजस्वी धारा का चित्रण मिलता है।

मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
छांड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोई। 
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