राम नाम मेरे मन बसियो रसियो राम रिझाऊं ए माय।
मैं मंदभागण परम अभागण कीरत कैसे गाऊं ए माय।।
बिरह पिंजरकी बाड सखी रींउठकर जी हुलसाऊं ए माय।
मनकूं मार सजूं सतगुरसूं दुरमत दूर गमाऊं ए माय।।
डंको नाम सुरतकी डोरी कडियां प्रेम चढाऊं ए माय।
प्रेम को ढोल बन्यो अति भारी मगन होय गुण गाऊं ए माय।।
तन करूं ताल मन करूं ढफली सोती सुरति जगाऊं ए माय।
निरत करूं मैं प्रीतम आगे तो प्रीतम पद पाऊं ए माय।।
मो अबलापर किरपा कीज्यौ गुण गोविन्दका गाऊं ए माय।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर रज चरणनकी पाऊं ए माय।।
मैं मंदभागण परम अभागण कीरत कैसे गाऊं ए माय।।
बिरह पिंजरकी बाड सखी रींउठकर जी हुलसाऊं ए माय।
मनकूं मार सजूं सतगुरसूं दुरमत दूर गमाऊं ए माय।।
डंको नाम सुरतकी डोरी कडियां प्रेम चढाऊं ए माय।
प्रेम को ढोल बन्यो अति भारी मगन होय गुण गाऊं ए माय।।
तन करूं ताल मन करूं ढफली सोती सुरति जगाऊं ए माय।
निरत करूं मैं प्रीतम आगे तो प्रीतम पद पाऊं ए माय।।
मो अबलापर किरपा कीज्यौ गुण गोविन्दका गाऊं ए माय।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर रज चरणनकी पाऊं ए माय।।
Raam Naam Mere Man Basiyo Rasiyo Raam Rijhaoon E Maay.
Main Mandabhaagan Param Abhaagan Keerat Kaise Gaoon E Maay..
Birah Pinjarakee Baad Sakhee Reenuthakar Jee Hulasaoon E Maay.
Manakoon Maar Sajoon Satagurasoon Duramat Door Gamaoon E Maay..
Danko Naam Suratakee Doree Kadiyaan Prem Chadhaoon E Maay.
Prem Ko Dhol Banyo Ati Bhaaree Magan Hoy Gun Gaoon E Maay..
Tan Karoon Taal Man Karoon Dhaphalee Sotee Surati Jagaoon E Maay.
Nirat Karoon Main Preetam Aage To Preetam Pad Paoon E Maay..
Mo Abalaapar Kirapa Keejyau Gun Govindaka Gaoon E Maay.
Meeraake Prabhu Giradhar Naagar Raj Charananakee Paoon E Maay..
Meera Krishna Bhajan Ram Naam Mere Man Basiyo
मीरा का काव्य लयात्मक और गेय है अर्थात इसे गाया जा सकता है।
कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति अनन्य और पूर्ण समर्पण को दर्शाती है।
मीरा बाई भगवान् कृष्ण की उपासक हैं और उनके पदों में सगुन इश्वर का परिचय प्राप्त होता है।
मीरा के काव्य में राजस्थानी, ब्रज, पंजाबी और गुजराती भाषा के शब्दों का उपयोग किया गया है।
मीरा के काव्य में कहीं भी पांडित्य प्रदर्शन नहीं दिखाई देता है।
अनावश्यक छंद, अलंकारों का उपयोग नहीं किया गया है।
मीरा के काव्य में प्रधान रूप से माधुर्य भाव दिखाई देता है।
मीरा बाई की भक्ति में पूर्ण समर्पण, सगुन इश्वर, नवधा भक्ति के गुन दिखाई देती है।
मीरा बाई के काव्य में श्रींगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण प्राप्त होता है।
मीरा का काव्य गीति काव्य का उत्कर्ष उदाहरण है।
मीरा के काव्य में उच्च आध्यात्मिक अनुभूति प्रदर्शित होती है।
भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति, प्रेम की ओजस्वी धारा का चित्रण प्राप्त होता है।
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
छांड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
छांड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोई।
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