मैंमंता मन मारि रे घटहीं माँहै घेरि मीनिंग Maimata Man Mari Re Ghatahi Meaning Kabir Dohe

मैंमंता मन मारि रे घटहीं माँहै घेरि मीनिंग Maimata Man Mari Re Ghatahi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)

मैंमंता मन मारि रे, घटहीं माँहै घेरि।
जबहीं चालै पीठि दै, अंकुस दे दे फेरि॥
Mamata Man Mari Re, Ghatahi Mahe Gheri,
Jabahi Chale Pithi De, Ankush De De Feri.

मैंमंता : मद मस्त होकर, गाफिल होकर.
मन : चित्त, हृदय.
मारि रे : मन को मारकर, स्वंय पर नियंत्रण करके.
घटहीं माँहै : चित्त में ही घेरकर.
घेरि : घेरकर.
जबहीं चालै : जब ही चले, जब अग्रसर हो.
पीठि दै : विमुख होकर, पीठ देकर.
अंकुस दे दे फेरि : उस पर अंकुश (नियंत्रण करो)

कबीर साहेब की वाणी है की यह मन जो विषय विकारों में पड़कर गाफिल हो गया है, यह चेतन अवस्था में नहीं है. इसे और इसकी वासनाओं को अन्दर ही घेरकर मार डालो, समाप्त कर दो. जब यह पुनः विषय वासनाओं, सांसारिक मायाजनित क्रियाओं की और चले और भक्ति से विमुख होने लगे तो इस पर भक्ति रूपी अंकुश को लगाओं और इसे नियंत्रित कर लो. जब भी यह इश्वर की तरफ पीठ करे, उनसे विमुख हो तो इस पर आत्मिक अनुशाशन करो. मन को नियंत्रित करने के लिए ज्ञान रूपी अंकुश को उपयोग में लेने की बात कही गई है. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
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