
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
जी कबीरा रे
चालत चालत जुग भया
कौन बतावे धाम जी?
बिना भेदूं रे व्हाला कईं फिरे रे
पाँव कोस पर गाम जी
जी कबीरा रे
कुण मटकी कुण झेरना रे
कुण बिलोवनहार जी?
तन मटकी मन झेरना रे
सुरत बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
तुम चलते जा रहे हो, ऐसे ही यह अनंत यात्रा करते कई युग बीत गए हैं। तुम्हे कौन मंजिल (धाम) का पता बताएगा ? यह क्या अज्ञानता की यात्रा नहीं है, अवश्य ही तुम एक तरह के भरम का शिकार होकर चले जा रहे हो, कहाँ जा रहे हो, इसका बोध तुमको नहीं है। यदि तुम सहज होकर, सच्चे हृदय से पता लगाओ तो उस परम पुरुष का धाम, एक ही कदम की दूरी पर है, जैसे तिल के पीछे ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड छुपा हुआ है।
मटकी कौन है, कौन झेरणा (दूध दही निकालने की बड़ी मटकी में एक लकड़ी का यंत्र लगाया जाता है जिससे दही को मथा जाता है। इसे रस्सियों के सहारे से घुमाया जाता है/मधाणी ) और कौन है जो इस दूध/दही को बिलो रहा है। बिलोवणहार कौन है ? तन की मटकी है, और मन का झेरना है। तन पात्र का काम करता है और हृदय में सात्विक विचारों के प्रकट होने पर सुरता (आत्मा) इसे मंथने का कार्य करती है।
ज्ञान का बाण उड़ रहा है, यदि सामर्थ्य है तो इसे पकड़ लो। सूरवीर (संत) इससे आमने सामने की लड़ाई करता है, यह कायरों का खेल नहीं है। सूरवीर, संत और सती को साहेब ने एक ही दर्जे में रखा है जो कभी पीठ नहीं दिखाते हैं।
कबीर साहेब (आशय है की संत) घी का पान करते हैं और सम्पूर्ण जगत छाछ ही पीता है। अब यदि घृत समाप्त हो गया है तो क्या, मालिक के पास धन (गाय) तो है।
सुमिरण घृत है और बाकी सब मार्ग छाछ है, हमें किसका चयन करना है ? कबीर साहेब की वाणी है की मेरा घर तो नौंक (तीर या भाले की धार) पर है, लेकिन मैंने वहाँ पर विश्राम पाया है। कबीर तो आठों पहर उसी में रम रहे हैं।
Chaalat Chaalat Jug Bhaya says Kabir Kabir Bhajan Shabnam Veermani
![]() |
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |