हो दया का दान प्रभु विनती यही है आप

हो दया का दान प्रभु विनती यही है आप सेभजन

 
हो दया का दान प्रभु विनती यही है आप सेभजन

हो दया का दान प्रभु , विनती यही है आप से
हम बने इस योग्य प्रभु , बचते रहें हर पाप से।

जो मिला जीवन हमें ,प्रभु एक ही आधार हो
कर सकें नेकी बदी , ऐसा मेरा व्यवहार हो
हो बुराई दूर खुद , हे! प्रभु तेरे प्रताप से,
हो दया का दान प्रभु ,विनती यही है आप से।

हम रहें बढ़ते सदा, सृजन के उन्नति राह पे
लोकहित में कार्य को ,करते रहें उत्साह से
स्वार्थ से हों दूर हम , हों दूर दुर्जन ताप से,
हो दया का दान प्रभु ,विनती यही है आप से।

दीन हों या हीन हों , सबके लिए उपकार हो
प्रेम की गंगा बहे , कुछ ऐसा ही संसार हो
कर दिखाएं हम सभी निज कर्म के विश्वास से,
हो दया का दान प्रभु ,विनती यही है आप से।

काम आए देश के,कण कण लहू सम्मान में
भक्ति का हो भाव प्रभु,इस देश का ईमान में
हो सुबह का काम प्रभु, शुरुआत तेरे नाम से,
हो दया का दान प्रभु ,विनती यही है आप से।


 
हो दया का दान प्रभु!//प्रार्थना//Ho Daya Ka Daan Prabhu!//Prayer//Best Morning prayer//School Prayer
 
#Ho Daya Ka Daan Prabhu! 
#Mornning prayer
#Best morning prayer
Singer: Arti Yadav, Vinod Yadav, Ajamgarh 
#Music Director: Haushila Prasad, Ambedkar Nagar 
#Liric: Kavi Rambriksh Bahadurpuri, Ambedkar Nagar 
#Editer: M. J. Post production
 
दया मनुष्य के जीवन का ऐसा दिव्य गुण है जो उसे भीतर से शुद्ध और बाहर से महान बनाता है। जब भीतर दया का सिंचन होता है तो पाप और बुराइयाँ अपने आप नष्ट हो जाती हैं। यही शक्ति आत्मा को इतना दृढ़ बना देती है कि वह अच्छाई और बुराई में संतुलन सीखकर केवल सद्गुणों की ओर अग्रसर होती है। दया का प्रकाश मिलते ही हृदय में करुणा उमड़ पड़ती है और वह करुणा केवल अपने लिए नहीं, बल्कि हर जीव के लिए कल्याणकारी विचार उत्पन्न करती है। यही शक्ति मन को स्वार्थ से दूर ले जाकर परोपकार की राह पर चलते रहने की प्रेरणा देती है। जब दैवी अनुग्रह से यह दया स्थायी बनती है, तब जीवन स्वयं धर्ममय और पुण्यमय हो उठता है।
 
ऐसा जीवन ही समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए आदर्श बनता है। दया की छाया में जन्मा हर कर्म लोकहित की ओर प्रेरित करता है। यह गुण मनुष्य को केवल अपने परिवार तक नहीं बांधता, बल्कि पूरे जगत को अपना मानने की सामर्थ्य देता है। ऐसा व्यक्ति न केवल दूसरों के दुःख दूर करता है, बल्कि राष्ट्र की सेवा को भी अपनी तपस्या मानता है। उसकी हर साँस में भक्ति का रस और हर कण में त्याग की गंध होती है। जब प्रत्येक कर्म दया, प्रेम और सेवा के भाव से ओतप्रोत होकर किया जाता है, तभी समाज में सद्भावना और देश की संस्कृति में सत्य का ईमान मजबूती से स्थापित होता है। यही दैवी गुण जीवन को उन्नति की राह पर लेकर जाता है और प्रभु का नाम प्रत्येक कार्य का आधार बनकर दिव्यता का आलोक जगाता है। 
 
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