सांवरियां ने बनड़ो बना दियो भजन
यो कुन सिंणगारयो, यो कुन सिंणगारयो,
सांवरियां ने बनड़ो बना दियो,
यो कुन सिंणगारयो,
म्हारा बाबा ने बनड़ो बना दियो,
यो कुन सिंणगारयो,
कठे से फुलड़ा ल्याया,
कुण थारा हार बनाया,
कठे से फुलड़ा ल्याया,
कुण थारा हार बनाया,
कुण जचा जचा पहराया जी,
यापे लूण राइ वारो,
यो कुन सिंणगारयो, यो कुन सिंणगारयो,
सांवरियां ने बनड़ो बना दियो,
म्हारा बाबा ने बनड़ो बना दियो,
यो कुन सिंणगारयो,
आलूसिंहजी बाग लगाया,
ज्यामें फूलड़ा घणा उगाया,
आलूसिंहजी बाग लगाया,
ज्यामें फूलड़ा घणा उगाया,
वोही केसर तिलक लगाया जी,
श्रृंगार कीन्यो सारो,
यो कुन सिंणगारयो, यो कुन सिंणगारयो,
सांवरियां ने बनड़ो बना दियो,
म्हारा बाबा ने बनड़ो बना दियो,
यो कुन सिंणगारयो,
थारा किरीट मुकुट कुण लयाया,
ये कुण थारे छात्र चढ़ाया,
ज्याने देख गाम शर्माया जी,
जैसे चाँद को उजियारो,
यो कुन सिंणगारयो, यो कुन सिंणगारयो,
सांवरियां ने बनड़ो बना दियो,
म्हारा बाबा ने बनड़ो बना दियो,
यो कुन सिंणगारयो,
थारा सेवक मुकुट चढ़ाया,
थारा भक्ता,छात्र चढ़ाया,
म्हारी प्रशन्न हो गयी काया जी
म्हारे मन में आनंद छायो,
यो कुन सिंणगारयो, यो कुन सिंणगारयो,
सांवरियां ने बनड़ो बना दियो,
म्हारा बाबा ने बनड़ो बना दियो,
यो कुन सिंणगारयो,
श्रृंगार सजिलों प्यारो,
कहे सोहनलाल यो थारो,
म्हाने दर्शन देता रहीज्यो जी
थे सबका संकट टारो,
यो कुन सिंणगारयो, यो कुन सिंणगारयो,
सांवरियां ने बनड़ो बना दियो,
म्हारा बाबा ने बनड़ो बना दियो,
यो कुन सिंणगारयो,
यो कुण श्रृंगारो सांवरिया ने बनडो बना दियो || Dinbandhu Dinanath Bhajan || Papu Sharma
Title :- Kun Shringar Yo kun Shringaro
Artest :- Papu Sharma
Singer:-Papu Sharma
Lyrics :-Sohanji Lohakar
Tune :-Papu Sharma
Music Arranger :- Lovli Sharma
Audio Recording Studio :-Delhi
फूलों का हार, केसर का तिलक, मुकुट और अन्य श्रृंगार सामग्रियाँ बाबा की महिमा और भक्तों के प्रेमपूर्ण सेवा भाव को प्रकट करती हैं। यह भजन भक्तों के मन में यह भाव उत्पन्न करता है कि बाबा उनके दुख हरने वाले, संकट टालने वाले और आनंद बाँटने वाले हैं।
श्री खाटू श्याम बाबा अपने भक्तों के लिए दया, करुणा और शक्ति के स्रोत हैं। वे न केवल लोक देवता हैं, बल्कि उनके जीवन और लीलाएं धर्म, न्याय और प्रेम की गहरी शिक्षा देती हैं। संतख्यात्मक दृष्टिकोण से वे भक्त के मन की शुद्धि और ईश्वर के साथ आत्मीय संबंध के प्रतीक हैं। दर्शनशास्त्र में उनका स्वरूप धर्म और भक्ति के परस्पर मेल का उदहारण है, जिससे जीवन में आध्यात्मिक उत्थान संभव होता है।
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