गुरू मम सूरत को गगन पर चढ़ाना।
दया करके सतधुन की धारा गाना ॥
अपनी किरण का सहारा गहाकर।
परम तेजोमय रूप अपना दिखाना ॥
साधना-भजन-हीन सम न कोऊ।
मेरी इस दुर्बलता को प्रभुजी हटाना ॥
पापों के संस्कार जन्मों के मेरे।।
हैं जो दया कर क्षमा कर मिटाना ॥
तुम्हरो विरद गुरु है पतितन को तारन।।
अपनो बिरद राखी ‘में ही निभाना ॥
गुरू मम सूरत को गगन पर चढ़ाना।
दया करके सतधुन की धारा गाना ॥
अपनी किरण का सहारा गहाकर।
परम तेजोमय रूप अपना दिखाना ॥
साधना-भजन-हीन सम न कोऊ।
मेरी इस दुर्बलता को प्रभुजी हटाना ॥
पापों के संस्कार जन्मों के मेरे।।
हैं जो दया कर क्षमा कर मिटाना ॥
तुम्हरो विरद गुरु है पतितन को तारन।।
अपनो बिरद राखी ‘में ही निभाना ॥
दया करके सतधुन की धारा गाना ॥
अपनी किरण का सहारा गहाकर।
परम तेजोमय रूप अपना दिखाना ॥
साधना-भजन-हीन सम न कोऊ।
मेरी इस दुर्बलता को प्रभुजी हटाना ॥
पापों के संस्कार जन्मों के मेरे।।
हैं जो दया कर क्षमा कर मिटाना ॥
तुम्हरो विरद गुरु है पतितन को तारन।।
अपनो बिरद राखी ‘में ही निभाना ॥
गुरू मम सूरत को गगन पर चढ़ाना।
दया करके सतधुन की धारा गाना ॥
अपनी किरण का सहारा गहाकर।
परम तेजोमय रूप अपना दिखाना ॥
साधना-भजन-हीन सम न कोऊ।
मेरी इस दुर्बलता को प्रभुजी हटाना ॥
पापों के संस्कार जन्मों के मेरे।।
हैं जो दया कर क्षमा कर मिटाना ॥
तुम्हरो विरद गुरु है पतितन को तारन।।
अपनो बिरद राखी ‘में ही निभाना ॥