इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले भजन Itna To Karna Swami Bhajan
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
गोविन्द नाम लेकर , तब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
श्री गंगाजी का तट हो, जमुना या वंशीवट हो,
मेरे सॉंवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
श्री वृन्दावन का स्थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो,
विष्णु चरण का जल हो , जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
सन्मुख सॉंवरा खड़ा हो, बंशी का स्वर भरा हो,
तिरछा चरण धरा हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
सिर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पे काली लट हो,
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
केसर तिलक हो आला, मुख चन्द्र सा उजाला,
डालूं गले में माला,जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
कानो जड़ाऊँ बाली, लटकी लटें हों काली,
देखूँ छठा निराली, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
पीताम्बरी कसी हो, होंठो पे कुछ हँसी हो,
छवि यह ही मन बसी हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
पचरंगी काछनी हो, पट पीट से तनी हो,
मेरी बात सब बनी हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
पग धो तृष्णा मिटाऊँ, तुलसी का पत्र पाऊँ,
सिर चरण रज लगाऊँ, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
जब प्राण कण्ठ आवे, कोई रोग ना सतावे,
नहीं त्रास यम दिखावे, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
मेरे प्राण निकले सुख से, तेरा नाम निकले मुख से,
बच जाऊँ घोर दुख से, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
सुधि होवे नाहीं तन की, तैयारी हो गमन की,
लकड़ी हो वृन्दावन की, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
निकले ये प्राण सुख से, प्रभु नाम निकले मुख से,
बच जाऊं घोर नरक से, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
गोविन्द नाम लेकर , तब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
श्री गंगाजी का तट हो, जमुना या वंशीवट हो,
मेरे सॉंवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
श्री वृन्दावन का स्थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो,
विष्णु चरण का जल हो , जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
सन्मुख सॉंवरा खड़ा हो, बंशी का स्वर भरा हो,
तिरछा चरण धरा हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
सिर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पे काली लट हो,
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
केसर तिलक हो आला, मुख चन्द्र सा उजाला,
डालूं गले में माला,जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
कानो जड़ाऊँ बाली, लटकी लटें हों काली,
देखूँ छठा निराली, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
पीताम्बरी कसी हो, होंठो पे कुछ हँसी हो,
छवि यह ही मन बसी हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
पचरंगी काछनी हो, पट पीट से तनी हो,
मेरी बात सब बनी हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
पग धो तृष्णा मिटाऊँ, तुलसी का पत्र पाऊँ,
सिर चरण रज लगाऊँ, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
जब प्राण कण्ठ आवे, कोई रोग ना सतावे,
नहीं त्रास यम दिखावे, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
मेरे प्राण निकले सुख से, तेरा नाम निकले मुख से,
बच जाऊँ घोर दुख से, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
सुधि होवे नाहीं तन की, तैयारी हो गमन की,
लकड़ी हो वृन्दावन की, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
निकले ये प्राण सुख से, प्रभु नाम निकले मुख से,
बच जाऊं घोर नरक से, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले,
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Author - Saroj Jangir
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