त्वमेव माता च पिता त्वमेव Tvamev Mata Ch Pita Tvamev Meaning in Hindi Guru Mantra Hindi Lyrics
त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्व मम देवदेव।।
Guru Shloka (Tvameva Mata) Lyrics
Twameva Maata Cha Pita Twameva
Twameva Bandhushcha Sakha Twameva
Twameva Vidya Dravinam Twameva
Twameva Sarvam Mama Deva Deva
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्व मम देवदेव।।
Guru Shloka (Tvameva Mata) Lyrics
Twameva Maata Cha Pita Twameva
Twameva Bandhushcha Sakha Twameva
Twameva Vidya Dravinam Twameva
Twameva Sarvam Mama Deva Deva
त्वमेव माता च पिता त्वमेव हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Tvamev Mata Ch Pita Tavmev
हिंदी अर्थ : हे प्रभु, तुम ही माता हो, तुम ही मेरे पिता भी हो, बंधु भी तुम ही हो, सखा भी तुम ही हो। तुम ही मेरे विद्या, तुम ही देवता भी हो हे विष्णु भगवान्।यह एक उपेन्द्रवज्रा छंद में लिखित महान मन्त्र है जिसके प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं।
Tvamev Mata Ch Pita Tavmev Meaning in English :
You Truly are my Mother And You Truly are my Father, You Truly are my Relative And You Truly are my Friend, You Truly are my Knowledge and You Truly are my Wealth. ,You Truly are my All, My God of Gods.
Origin of mantraTvamev Mata Ch Pita Tavmev. This powerful mantra Twameva comes from the Pandava Gita, an anonymously compiled collection of verses from several ancient sacred Hindu texts (Mahabharata, Bhagavata, and Vishnu Purana). It is also called the song of surrender (Samarpan), as the overarching theme of this sacred hymn is complete surrender to the divine. Its verses are widely chanted by those seeking to experience the wisdom said to be contained therein.
The mantra Twameva is one of the most beloved Hindu mantras and comes from verses spoken by Queen Gandhari to Krishna.
The Pandava Gita, Verse 28, translated by Satya Chaitanya
Word to word meaning: tvam = you; eva = are only; maata = mother; pitaa = father; bandhu = relative/kin; sakha = friend; vidya = education/learning; dravinam = money; mama = my; deva = God; deva deva = God of gods/supreme lord. Meaning: O! Supreme Lord, only you are my mother, father, relative and friend. You are only my knowledge and wealth. You are my everything.
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देव-देव ॥ अन्वय – त्वम् एव माता त्वम् एव च पिता। त्वम् एव बन्धुः त्वम् एव च सखा। त्वम् एव विद्या, त्वम् एव द्रविण। त्वम् एव मम सर्वं देव-देव।
शब्दार्था – बन्धुः = भाई, सखा = मित्र, द्रविणं = सम्पत्ति, सर्वम् = सब कुछ, मम = मेरा, देव-देव = हे देवों के देव,
हिन्दी अनुवाद – हे ईश्वर तुम ही मेरी माता हो और तुम ही मेरे पिता हो, तुम ही मेरे भाई हो और तुम ही मेरे मित्र हो। तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो, हे देवों के देव! तुम ही, मेरे सब कुछ हो।
भावार्थ – हे ईश्वर ! त्वम एव माता असि, त्वम् एव पिता असि। त्वम् एव बन्धुः असि, त्वम् एव सखा असि। त्वम एव विद्या असि त्वम् एव धनम् असि। हे देवाधिदेव! त्वम् मम सर्वस्वम् असि।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्॥ अन्वय – सर्वे सुखिनः भवन्तु, सर्वे निरामयाः सन्तु। सर्वे ‘भद्राणि पश्यन्तु कश्चिद् मा दु:खभागे भवेत् ।
शब्दार्था – सर्वे = सभी भवन्तु = हो, सुखिनः = सुखी, निरामयाः = रोग रहित, भद्राणि = कल्याण, पश्यन्तु, = देखें। मा = नहीं। कश्चिद् = कोई, दुःखभाग् = दु:खी, भवेत् = होना चाहिए,
हिन्दी अनुवाद – सभी प्राणी सुखी हों, निरोगी हों, रोगों से मुक्त हों। सभी प्राणी कल्याण को देखें, यानी सभी का कल्याण हो और कोई भी प्राणी दु:खी ना रहे .
भावार्थ - सर्वे प्राणिनः सुखिन: भवन्तु, सर्वे नीरोगा: भवन्तु, सर्वे कल्याणं पश्यन्तु, कोऽपि प्राणि दु:खी न भवेत्।
***
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मंगलम भगवान् विष्णु मंगलम गरुड़ध्वजः | मंगलम पुन्डरी काक्षो मंगलायतनो हरि ||
सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके | शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात करोमि यध्य्त सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ||
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव |
जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव गोविन्द दामोदर माधवेती ||
*** सरस्वति !, नमस्तुभ्यम्, कामरूपिणि, विद्यारम्भम्, सिद्धिर्भवत. त्वमेव, बन्धुश्च, द्रविणम्, निरामयाः, भद्राणि, कश्चिद्, दु:खभाग
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कराग्रे वसते लक्ष्मीः, करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्दः, प्रभाते करदर्शनम् ॥
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समुद्रवसने! देवि! पर्वतस्तनमण्डले!
विष्णुपलि! नमस्तुभ्यं, पादस्पर्श क्षमस्व मे॥
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