जीण माता मंगल पाठ Jeen Mata Mangal Paath Complete Lyrics

जीण माता मंगल पाठ Jeen Mata Mangal Paath (Complete) Lyrics

जय जीर्ण भवानी, जीन माता का मंगल पाठ इस लेख में दिया गया है। आप इस मंगल पाठ को अपने मोबाइल फ़ोन में पीडीऍफ़ में डाउनलोड कर सकते हैं और पाठ का बिना किसी बाधा के वाचन कर सकते हैं। 


विध्न हरण मंगल करण, गौरी सुत गण राज,
कण्ठ बीराजो शारदा, आन बचाओ लाज।
मात पिता गुरुदेव के, धरू चरण में ध्यान,
कुलदेवी मां जीण भवानी, लाखोँ लाख प्रणाम।
 
जीण माता मंगल पाठ Jeen Mata Mangal Paath Complete Lyrics

जीन माता मंगल पाठ प्रथम अध्याय Jeen Mata Mangal Path Pratham Adhyay : Jeen Mata Mangal Paath Part First

 चौपाई Choupayi
जीण जीण भज बारम्बारां, हर संकट का हो निस्तारां,
नाम जपे माँ खुश हो जावै, संकट हर लेती है सारा।
आदि शक्ति माँ जीण भवानी, महिमा माँ की किसने जानी,
मंगल पाठ करूँ मैं तेरा, करो कृपा माँ जीण भवानी।
साँझ सवेरे तुझे मनाऊ, चरणों में मै शीश नवाऊँ,
तेरी दया से भँवरा वाली, मै अपना संसार चलाऊँ।
हर्ष नाथ की बहना प्यारी, जीवण बाई नाम तुम्हारा,
गोरियाँ गाँव से दक्षिण में है, सुन्दर प्यारा धाम तुम्हारा।
पुरब मुख मंदिर है प्यारा, भँवरा वाली मात तुम्हारा,
तीन ओर से पर्वत माला, साँचा है दरबार तुम्हारा।
अष्ट भुजाएँ मात तुम्हारी, मुखमंडल पर तेज निराला,
अखंड ज्योति बरसो से जलती, जीण भवानी हे प्रतिपाला।
एक धृत और दो हैं तेल के, तीन दीप हर पल है जलते,
मुगल काल के पहले से ही, ज्योति अखंड है तीनों जलते।
अष्टम् सदी में मात तुम्हारें, मन्दिर का निर्माण हुआ है,
भगतोँ की श्रदा और निष्ठा, का जीवन्त प्रमाण हुआ है।
देवालय की छते दीवारें, कारीगरी का है इक दर्पण,
तंत्र तपस्वी वाममार्गी, के चित्रोँ का अनुपम चित्रण।
शीतल जल के अमृत से दो, कलकल करते झरने बहते,
एक कुण्ड है इसी भूमि पर, जोगरवार ताल सब कहते।
देश निकाला मिला जो उनको, पाण्डु पुत्र यहां पर आएँ,
इसी धरा पर कुछ दिन रहकर, वो अपना बनवास बिताएँ।
बड़े बड़े बलशाली भी माँ, आकर दर पे शीश झुकाएँ,
गर्व करे जो तेरे आगे, पल भर में वो मुँह की खाएँ।
मुग़लों ने जब करी चढ़ाई, लाखों लाखों भँवरे छोड़े,
छिन्न विछिन्न किए सेना को, मुगलो के अभिमान को तौड़े।
नंगे पैरों तेरे दर पे, चल के ओरंगजेब था आया,
अखंड ज्योत की रीत चलाई, चरणों में मा शीश नवाया।
सूर्य उपासक जगदेव जी, राज नवलगढ में करते थे,
भँवरावाली माँ की पूजा, रोज नियम से वो करते थे।
अपनी दोनों रानी के संग, देश निकाला मिला था उनको,
पहुँच गये कन्नौज नगर में, जयचंद ने वहाँ शरण दी उनको।
कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले, काली ने हुंकार भरी थी,
 

भँवरावाली बन कंकाली, दान लेने को निकल पड़ी थी।
सारी प्रजा के हित की ख़ातिर, जगदेव ने शीश दिया था,
शीश उतार के कंकाली के, श्री चरणों में चढ़ा दिया था।
भँवरावाली की कृपा से, जीवन उसने सफ़ल बनाया,
माता के चरणों में विराजै, शीश का दानी वो कहलाया।
सुन्दर नगरी जीण तुम्हारी, सुन्दर तेरा भवन निराला,
यहाँ बने विश्राम गृहों में, कुण्डी लगे, लगे ना ताला।
करुणामयी माँ जीण भवानी, जो भी तेरे धाम ना आया,
चाहे देखा हो ज़ग सारा, जीवन उसने व्यर्थ गँवाया।
आदिकाल से ही भक्तों ने,वैष्णों रूप में माँ को ध्याया,
वैष्णों देवी जीण भवानी, की है सारे जग में माया।
दुर्गा रूप में देवी माँ ने, महिषासुर का वध किया था,
काली रूप में सब देवों ने, जीण का फिर आह्ववान किया था।
सभी देवताओं ने मिलकर, काली रूप में माँ को ध्याया,
अपने हाथों से सुरगण ने, माँ को मदिरा पान कराया।
वर्तमान में वैष्णों रूप में, माँ को ध्याये ये जग सारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।

दोहा Doha
सिद्ध पीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।
चौपाई Choupayi
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो सङ्कट है जग माहीं, जो मेरी मैया मेट ना पाई। 
 

Jeen Mata Mangal Path Full Adhyay 1-2-3-4-5-6-7-8-9 By Saurabh Madhukar

जीण माता मंगल पाठ द्वितीय पाठ Jeen Mata Mangal Path Dvitiya Path Jeen Mata Mangal Path Part Two

यह भी देखें You May Also Like

चौपाई Choupayi 
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा,
नाम जपे माँ खुश हो जावे, सङ्कट हर लेती है सारा।

माला बाबा अर्चन पूजा, मात जयन्ति की करते थे,
पाराशर ब्राह्मण कुल वंशी, देवी की सेवा करते थे।
माला बाबा के सेवा काल में, वाममार्गी यहां पर आए,
अखण्ड धूणी सिद्धपीठ के, निकट में ही चालू करवाएं।
कई वर्षों तक वाममार्गी, जीण धाम में समय बिताएं,
पूरी सम्प्रदाय के महन्त जी, उन सब के सरदार कहाएँ।
जीण धाम से वाममार्गी, कालान्तर में कूच किए थे,
जाते हुये माला बाबा को, अखण्ड धूनी सौंप गए थे।
कपिल मुनि भी उसी काल में, जीण धाम में आन पधारें,
घोर तपस्यां करी वहाँ पर, पर्वत से निकले जल धारे।
कपल धार की वह जलधारा, कुण्ड रूप में आज विराजै,
उसी कुण्ड के जल से पुजारी, मैयां को स्नान कराते।
आदिकाल की सच्ची घटना, भक्तों तुमकों आज बताऊँ,
जीवण बाई हर्ष नाथ के, जीवन का वृत्तांत सुनाऊँ।
राजस्थान के जिला चुरू में, धांधू नामक एक ग्राम था,
चौहानो के ठाकुर राजा, गंगो सिंह का वहाँ राज था।
माला पुजारी को दर्शन दे, मात जयन्ति इक दिन बोली,
जीण रूप में मै प्रगटूँगी, उनसे सच्चा भेद ये खोली।
जीवण बाई नाम की कन्याँ, गंगो सिंह के घर जन्मेगीं,
मेरी शक्ति से कलयुग में, घर घर उसकी पूजा होगी।
एक दिन राजा गंगो सिंह जी, खेलन को शिकार गए थे,
वहाँ लौहागर जी के पास में, परी से नेना चार हुए थे,
 सुंदरता से मंत्र मुग्ध हों, गंगो सिंह जी परी से बौले,
शादी करना चाहूँ तुमसे, तू मेरी अर्धागिनी होले।
परी ये बोली सुनों हे राजा, मुझसे मेरा भेद ना लेना,
अगर भेद की बात करोगे, फिर पीछे तुम मत पछताना।
शर्त ये मेरी ध्यान से सुन लो, जब भी मेरे कक्ष में आओं,
अंदर आने से पहले ही, शयन कक्ष को तुम खटकाओं।
शर्त मान कर गंगो सिंह ने, परी के संग में ब्याह रचाया,
प्रेम और विश्वास के बल पे, अपना जीवन रथ चलाया।
परी की कोख से जीवण बाई, हर्ष नाथ दोनों थे जन्में,
बड़ा प्रेम आपस में रखते, भाई बहना अपने मन में।
मन की कोमल जीवण बाई, सच्ची सीधी भोली भाली,
हर्ष नाथ ने निज बहना की, कोई बात कभी ना टाली।
एक दिन राजा गंगो सिंह जी, परी से मिलने घर में आएँ,
सीधे शयन कक्ष जा पहुँचे, बिना दुवार को ही खटकाएँ।
शयन कक्ष के अंदर जाकर, देख नज़ारा वो चकराएँ,
परी बनी थी वहाँ सिंहनी, गंगो सिंह जी मन में घबराएँ।
परी यूँ बोली सुनों हे राजन, भेद मेरा तुम जान गये हो,
अब तुम मुझसे मिल ना सकोगे, वादा अपना भूल गए हो।
शर्त तोड़कर तुमने राजन, वादे का अपमान किया है,
इतना कहकर परी ने झटपट, इंद्रलोक प्रस्थान किया है।
कुछ दिन उनके साथ में रहकर, गंगो सिंह परलोक सिधारे,
बड़े हुये थे फिर वो दोनों, बनके इक दूजे के सहारे।
हर्ष नाथ ने ब्याह रचाया, सुन्दर भावज घर में आयी,
प्यारी भाभी को पाकर वो, मन में फूली नहीं समाई।
भाई बहन का प्यार अनोखा, भाभी को बिलकुल ना भाया,
फूट ड़ालने उनके मन में, भावज ने एक जाल बिछाया।
जीण भवानी के उदगम् का, सच्चा हाल कहूँ में सारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा।

दोहा Doha
सिद्धपीठ काजळ शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।

चौपाई Choupai
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो सङ्कट  है जग माहीं, जो मेरी मैयां मेट ना पाई।

जीण माता मंगल पाठ तृतीय अध्याय Jeen Mata Mangal Path Tratiya Path : Jeen Mata Mangal Paath Part Three

चौपाई
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा,
नाम जपे माँ खुश हो जावै, संकट हर लेती है सारा।

राजपुतो में चुनड़ी का तब, ऐसा चलन हुआ था जारी,
तीज त्योंहारों के अवसर पर, चुनड़ी लाय उढ़ाये भाई।
हर्षनाथ की चुनड़ी देखकर, भावज बोली करके बहाना,
जीवण को यह बड़ी पसंद है, यही चुनड़ी मुझे उढ़ाना।
भोले भाले हर्षनाथ ने, पत्नी की बातों को माना,
निज पत्नी की चालाकी से, भाई था बिलकुल अनजाना।
जीवण के संग अगले ही दिन, भाभी पानी भरने आई,
बातों ही बातों में उसने, जीवण को यह बात बताई।
तुमसे ज्यादा तेरा भाई, मुझसे प्रेम करे है जीवण,
जीवण को विश्वास ना आया, शर्त लगी दोनों में उस क्षण।
भाभी बोली अमुक चुनड़ी, गर वो मुझको आज उढाये,
तब तुम नणदन जान ही लेना, तुमसे ज्यादा मुझको चाहे।
होनी तो होकर रहती हैं, दोनों पानी भर कर लाई,
घड़ा उतार के हर्षनाथ ने, पत्नी को चुनड़ी ओढ़ाई।
भारी ठेस लगी जीवण को, नैनों से बही अश्रु धारा,
घड़ा फोड़ दौड़ी घाटी में, छुट गया पीछे ज़ग सारा।
भाई पीछे दौड़ा आया, बहना को वो लाख मनाया,
लेकिन उसने एक ना मानी, होनी ने क्या जाल बिछाया।
अब भैया मै घर नहीं जाती, हर्ष नाथ को वो बतलाती,
मोह माया सब छोड़ चुकी हूँ, तज दी घर और सखा संघाती।
पर्वत के ऊपर जीवण ने, जाकर इतना नीर बहाया,
नैनों से जो काजळ निकला, काजळ शिखर वही कहलाया।
शक्ति की फिर घोर तपस्या, जीवण भाई करने लागी,
हर्षनाथ के मन में भक्तों शंकर जी की भक्ति जागी।
उलट दिशाओं में मुँह करके, धोर तपस्या दोनों ने की,
आदिशक्ति माँ भँवरा वाली, जीवण के सन्मुख आ प्रगटी।
प्रगट होयकर मात जयन्ति, जीवण भाई से यूँ बोली,
मेरी लौ तुझमे मिलने से, कहलाओगी जीण भवानी।
घर घर तेरी पूजां होगी, बोली माँ भँवरो की रानी,
कलयुग में पूजी जाओगी, तुम भी बन भँवरो की रानी ।
द्वापर युग में नन्द के घर में, इक कन्या ने जन्म लिया था,
वसुदेव ने उस कन्या को, कृष्ण के बदले बदल दिया था।
कन्या रूप में मात जयन्ति, आठवीं बन सन्तान थी आई,
कलयुग में माँ जीण भवानी, वहीँ जयन्ती बन कर आई।
हर्षनाथ ने शिव शंकर को, करके तपस्या खूब रिझाया,
भोले जी की कृपा से फिर, भैरों रूप उन्ही से पाया।
शंकर जी का भवन निराला, हर्ष नाम के पर्वत ऊपर,
भैरों हर्ष नाथ का मंदिर, बना हुआ है इस भूमि पर।
सच्ची घटना में बतलाऊ, सच्चा हाल सुनाऊँ सारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा।

दोहा Doha
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।

चौपाई Choupayi
 मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई।

जीण माता मंगल पाठ चतुर्थ अध्याय Jeen Mata Mangal Paath Chaturtha Adhyay : Jeen Mata Mangal Path Part Four

चौपाई Choupayi

जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा,
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा।

वर्तमान में साक्षात् है, विधमान माँ आधी भवानी,
शक्ति की कृपा से जीवण, कहलाई माँ जीण भवानी।
शिव पार्वती रूप तुम्हारा, दाहिनी और मा लक्ष्मी साजै,
बाई तरफ में मात शारदा, वीणा वादिनी आप विराजै।
पाराशर के कुल वंशों को, माँ की पूजा का हक सारा,
जीण भवानी की कृपा से, उन सबका चलता है गुज़ारा।
सारे जग में एक अकेली, तन्त्र भेद की मात भवानी,
भक्तों का कल्याण करे हैं, अलबेली भँवरो की रानी।
चमत्कार है देवी तेरा, नमस्कार है मेरा तुझको,
दास जानकर अपना माता, चरणों में रख लेना मुझको।
ऊपर काजल शिखर विराजै, नीचे भँवरो वाली साजै,
बीच में मैयां जीण भवानी, ड्योढ़ी पे नोबत है बाजै।
आठों पहर चौबीसों घण्टें, खुला रहे ये माँ का द्वारा,
नंगे पैरों दौड़ी आई, जिसने मन से नाम पुकारा।
ऐसा है दरबार निराला, बिन बोले भक्तों की सुनती,
बिन माँगे माँ दे देती हैं, भक्तों के कष्टों को हरती।
निर्धन दर पे दौलत पावे, लँगड़ा झटपट दौड़ा आवै,
अन्धे को आँखे मिल जाती, बाँझन पल में बेटा पावै।
दीन दयालु भँवरा वाली, भक्तों की करती रखवाली,
ये ही दुर्गा ये ही लक्ष्मी, ये ही काली खप्पर वाली।
जग में गूंजे नाम तिहारो, भक्तों को लागे अति प्यारा,
सबसे प्यारा तेरा द्वारा, वैभव इस दुनियां से न्यारा।
मुख मण्डल की आभा भारी, अरज करे लाखों नर नारी,
भक्तों का कल्याण करें माँ, नित की परचा देवे भारी।
मनसे जो भी नाम पुकारे, कट जाती है विपदा सारी,
भक्तों के दुखड़े हर लेती, विध्न हरण माँ मंगलकारी।
सवामणी का भोग लगे है, सेवक जन गुणगान करे हैं,
शरणागत की लाज़ रखे माँ, भक्तो का उद्धार करे हैं।
खीर चूरमा और नारियल, हलवा पूड़ी भोग है प्यारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा।
दोहा Doha
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई Choupayi
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई।

जीण माता मंगल पाठ पंचम अध्याय Jeen Mata Mangal Path Pancham Adhyay : Jeen Mata Mangal Path Part Five

 
 Jeen Mata Mangal Path Full Adhyay 1-2-3-4-5-6-7-8-9 By Saurabh Madhukar  
चौपाई Chopayi
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा,
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा।

पाराशर सारे मिल करके, चैत के नवरात्रो के आगे,
जीण भवानी का न्योता ले, हर्षनाथ के पास में जाते।
दाल चरमा बाटी की वो, सवामणी जाकर करवाते,
न्यौता देकर हर्षनाथ को, सारे मिलकर रात जागते।
नवरात्रों में जीण धाम में, भारी भीड़ लगेगी भैरों,
आकर उसको आप संभालों, न्यौता तुम माँ का स्वीकारों। 
अशविन चैत के नोरातों में, लगता माँ का मेला भारी,
दर्शन माँ का करने आते, देश देशावर से नर नारी।
गठजोड़े से जात लगाएं, बच्चों माँ मुण्डन करवाएं,
तरह तरह की मनो कामना, चौख़ट पे पूरी हो जाएं।
नंगे पैरों चल कर आते, मन्दिर पे निशान चढ़ाते,
भँवरा वाली जीण भवानी, मैया की वो किरपा पाते।
जै जैकार लगाते सारे, बच्चे बूढ़े नर और नारी,
माता का गुणगान करे हैं, मिल कर के सब बारी बारी।
हरियाणा के नारनोल से, बत्तिसी का संध है आता,
षष्ठी शुक्ला चैत में भक्तों, लिए मशाल हाथ में आता।
बारह बजे अध्ररात्रि में, इक्कीस सेवक चलकर आते,
नंगी तलवारों को थामें सीधे माँ के मंड में जाते।
तीन पुजारी मंड में उस पल, माँ की सेवा में हैं रहते,
धोक लगा चरणों में सारे, जाकर अपना शीश झुकाते।
मंड के पीछे पुजारी मिल के, उनको बाना देकर आएं,
हारी बीमारी में वो बाना, पीछे उनकी लाज बचाएं।
महासष्टमी के दिन सेवक, माता की फिर रात जागते,
मीठे मीठे भाव भक्ति के, भजनों की बरसात कराते।
महा अष्टमी के दिन सारे, चरणों में जा धोक लगाते,
माता का वो कर भंडारा, खीर चूरमा भोग लगाते।
कलकत्ता से नवरात्रों में, कई समिति दर पर जाती,
गोरियाँ मोड़ से पैदल चल कर, माता का निशान चढ़ाती।
विप्रजनो और कन्याओं के, सारे मिलकर चरण धुलाएं,
बड़े प्रेम और श्रद्धा से फिर, उन सबको वो भोज कराते।
टोले के टोले दर आते, मीठे मीठे भजन सुनाते,
जय माँ जीण के जयकारों से, धरती अम्बर है गुँजाते।
कहते है माँ नवरात्रों में, सबकी इच्छा पूरण करती,
दर पे आये हर सेवक की, जीण भवानी झोली भरती।
खोल खजाना माल लुटाती, भक्तों के भण्डार हैं भरती,
सेवक इतना पाते उनकी, झोली भी छोटी पड़ जाती।
अपने भक्तों की रखवाली, करती है माँ भंवरा वाली,
दुष्टों को ये मार भगाये, भक्तो का हित करने वाली।
माँ का नाम बड़ा ही प्यारा, दुःखडो से मिलता छुटकारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा।

दोहा Doha
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।

चौपाई Choupayi
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई।

जीण माता मंगल पाठ षष्ठम् अध्याय Jeen Mata Mangal Paath Shashtham Adhyay : Jeen Mata Mangal Paath Part Six

चौपाई Choupayi
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा,
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा।

सर्वसुहागण तुझे मनाती, हाथों से माँ तुझे सजाती,
लाल चुनड़ी चूड़ा मेहँदी, रोली मोली भेंट चढ़ाती।
लाल फ़ूल के गजरे सोहै, सोणा सा सिणगार भवानी,
साँची है सकलाई तेरी, साँचा है दरबार भवानी।
जीण जीण जो नाम पुकारे, उसको तू सङ्कट से उबारे,
ह्रदय बीच बसाकर देखों हो जायेंगे वारे न्यारें।
सभा मंड में मात विराजै, सिर सोने का छत्र साजै,
लाल ध्वजा तेरे मंड पे फहरें सात कलश तेरे शिखर पे साजै।
कानों में तेरे कुण्डल साजै, शीश बोरला सजे सुहाना,
हाथों में त्रिशूल भवानी, गल मोतियन का हार सुहाना।
हाथोँ मेंहन्दी रची सुरंगी, माँ का मुखड़ा दम दम दमके,
लाल चुनरियाँ चमचम चमके, नथली में माँ हिरा चमके।
सिन्दूरी माँ तिलक लगा है, छप्पन भोग का थाल सजा हैं,
महक रहा दरबार तुम्हारा, इत्र का अंबार लगा है।
सिंहासन पर आप विराजो, सेवक चँवर ढुलाएँ माता,
देख देख श्रंगार तुम्हारा, सेवक लेत बुलाये माता।
लाल जवा की माला सोहे, हीरा पन्ना दम दम दमके,
हार बासीकों  गले में सोहे, माथे पे तेरे बिन्दिया चमके।
ढोल नगाड़े दर पे बाजै, भक्तों की माँ भीड़ बड़ी है,
दोनों हाथ पसारे मैयां दुनियाँ तेरे द्वारा खड़ी है।
मुखड़े पे है तेज निराला, सिंह पीठ पर आप विराजै,
नैनों से तेरे ममता बरसे, दर्शन से माँ संकट भाजै।
अदभुत है सिणगार भवानी, प्यारा सा है निख़ार भवानी,
पल भर भी आँखे ना हटती, सेवक रहे निहार भवानी।
सज के मैयां यूँ बैठी है, मानो जैसे कोई शक्ति,
भक्त करे अरदास आपसे, दे दो माँ हम सबको भक्ति।
तेरी ममता हम बच्चों को, यूँ ही हर दम मिलती जाएं,
जन्म जन्म तक जीण भवानी, तेरी कृपा हम सब पाएं,
सुन्दर ये श्रृंगार तुम्हारा, हम सबको लगता माँ प्यारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा।

दोहा Doha
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।

चौपाई Choupayi
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई।

जीण माता मंगल पाठ सप्तम् अध्याय Jeen Mata Mangal Paath Saptam Adhyaay : Jeen Mata Mangal Path Part Seven

चौपाई Choupayi

जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा,
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा।

पूजन थाल सजा कर माता, आज आरती तेरी उतारूँ,
द्वार खड़ा माँ तेरा बालक, सोणी मूरत तेरी निहारूँ।
मैयां तुझकों तिलक लगा कर, हाथो में चूड़ा पहनाऊँ,
लाल सुरंगी मेंहन्दी तेरे, हाथो में माँ आज रचाऊँ।
जवा कुसूम के फूलों से माँ, प्यारा सा इक हार बनाऊँ,
लाल चुनरियाँ तारों वाली, माता तुझको आज उढ़ाऊँ।
भाव भरी ये लाल चुनरिया, अम्बर से सजकर है आई,
सूरज चाँद सितारों की माँ, किरणें इसमें आन समाई।
ब्रम्हा जी ने बड़े चाव से, बुनकर के इक पोत बनाया,
विष्णु जी ने बड़े प्रेम से, निज हाथो से इसे सजाया।
श्री गणेश को लिए साथ में, भोले पार्वती भी आये,
आज जरा इसे मान से ओढ़ो, इन्दर देव गण सभी मनाएँ,
लम्पी लूमा लगी सुरंगी, भाव भरी ये चुनड़ ओढ़ो,
मुझको अपना जान भवानी, माँ बेटे का रिश्ता जोड़ों।
इन्द्र धनुष के साथ रंगों से, रंगी चुनरियाँ लाएं माता,
बड़े प्रेम से सारे सेवक, तुझको आज उड़ाएं माता।
सबका तूने मान बढ़ाया, मुझको ना बिसराना माता,
सरण तुम्हारी आन पड़ा हू, यू ही ना ठुकराना माता।
तेरी कृपा जिस पर होवे, चमके है किस्मत का तारा,
जब जब तेरा नाम पुकारां, तूने आकर दिया सहारा।
ममता की माँ शीतल छाया, आज मुझे भी दे देना तुम,
चरणों में दे मुझे ठिकाना, सरण तुम्हारी ले लेना तुम।
खाली झोली लेकर माता, द्वार तुम्हारें बेटा आया,
पलक झपकते भर जाएगी जान गया में तेरी माया।
भाव भरे ना भक्ति आई, मेरे पापी मन के अन्दर,
दया करो बन जाएँ इसमें, तेरा प्यारा सा इक मंदिर।
पुन्य आत्माओं के घर में, रहती हो तुम सदा भवानी,
तेरी कृपा से ही जग सारा, रहता है खुशहाल भवानी।
मंगल करणी हे दुःख हरणी, हम को है आधार तुम्हारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा।

दोहा Doha
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।

चौपाई Choupayi
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई।

जीण माता मंगल पाठ अष्टम् अध्याय Jeen Mata Mangal Paath Ashtham Adhyaay : Jeen Mata Mangal Paath Part Eight.


चौपाई Choupayi
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारां,
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा।

नमो नमो हे जीण भवानी, नमो नमो हे अम्बे रानी,
तीनो लोकों में ना दूजा, मैयां तेरा कोई सानी।
मन मोहक है रूप तुम्हारा, साँचा है माँ नाम तुम्हारा,
जीण धाम की हे महारानी, सिद्धपीठ है धाम तुम्हारा।
अन्नपूर्णा अन्न की दाता, धन वैभव की लक्ष्मी माता,
ज्ञान बुद्धि का रूप शारदे, चण्डी रूप में दुर्गा माता।
हिंगलाज में आप भवानी, महिमा तेरी किसने जानी,
सिंह सवारी करती माता, तुमसा दूजा कोई ना दानी।
नमन है तुमको माँ बाह्यणी, नमन है तुमको है रुद्राणी,
शत् शत् नमन हमारा तुमको, नमन है तुमकों जग कल्याणी।
सुख सम्पति की तुम हो दाता, नमस्कार हे भाग्य विधाता,
बल बुद्धि विद्या की देवी, मातृ रूप में तुझें मनाता।
कृपा करो हे मात भवानी, खोल मेरी तकदीर का ताला,
शरणागत् को तूने माता, सारी विपदाओं से टाला।
ऐसा दो वरदान भवानी, जन्म जन्म में तुझको पाऊँ,
जब तक सांस चले ये मेरी, मैयां तेरी महिमा गाऊँ।
जग की माया मुझे सताये, रह रह करके मुझे डराएं,
तेरा ध्यान धरूँ जब माता, आकर ये बाधा पहुँचाये।
मुझको माँ दुखड़ों ने घेरा, तुम बिन कौन यहाँ पर मेरा,
तुम ही आकर राह दिखाओं छाया है घनघोर अँधेरा।
मैयां मैयां आज पुकारूँ, सुनले करुण पुकार भवानी,
आजा मुझको गले लगा ले, थोड़ा सा दे प्यार भवानी।
माना बिल्कुल नालायक हूँ, फिर भी में हूँ लाल तुम्हारा,
बिन तेरे अब कौन सुने माँ, आजा सुनले हाल हमारा।
सेवा पूजा कुछ ना जाने, छोटा सा ये दास भवानी,
भूल चूक की माफी देना, तुमसे है अरदास भवानी।
धन दौलत ना पास में मेरे, दो आँसू में भेंट में लाया,
मन मंदिर में मूरत तेरी, आज बसा कर दौड़ा आया।
चरणों में बस बैठा रहूँ में,मन में मेरे आस यही है,
निर्मोही दुनियाँ की मुझको, अब कुछ परवाह नही है।
अपनों ने ही मुझे सताया, गैरो ने माँ खूब रुलाया,
आख़िर थक कर जीण भवानी, शरण तिहारी लेने आया।
पाप की गठरी सिर पर लादे, भटक रहा हूँ जग जगंल में,
जूझ रहा पतवार लिये माँ, मोह माया के इस दंगल में ।
जितने तारे नील गगन में, चाहे उतने शत्रु होवै,
तेरी दया हो जिस पर माता, उसका बाल ने बाँका होवे।
बावन भैरों चौसठ योगिनी, आगे भैरुँ नृत्य करत हैं,
बह्मा, विष्णु, शिव शंकर माँ, हर पल तेरा ध्यान धरत हैं।
तू ही काली तू जगदम्बा, ये सृष्टि है खेल तुम्हारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।

दोहा Doha
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।

चौपाई Choupayi
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई।

जीण माता मंगल पाठ नवम अध्याय Jeen Mata Mangal Paath Navam Adhyay Jeen Maata Mangal Path Part Nine.

चौपाई Choupayi
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा,
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा।

कुल की देवी जीण भवानी, मन इच्छा माँ पूरी करना,
दास खड़ा अरदास गुज़ारें, मान हमारा तुम रख लेना।
ऊँचे आसन आप बिराजो, गंगा जल से चरण धुलाऊँ,
रुखा सुखा पास जो मेरे, भोग लगा कर भोग में पाऊँ।
धन दौलत ना पास में मेरे, श्रद्धा चाहे जितनी लेना,
मन में मेरे भाव भरे हैं, आकर माता तुम पढ़ लेना।
डूब न जाये नैयाँ मेरी, आकर तुम पतवार संभालों,
बीच भँवर में नाँव हमारी, आकर के माँ इसे निकालों।
माना मैया में पापी हूँ, फिर भी मेरी विनती सुनना,
भूल चूक जो होवे मुझ से, उसकी लाज़ सदा तुम रखना।
अपनी शरण में लेना मैयां, मुझको ना बिसराना मैयां,
तेरे बिना है जीण भवानी, नहीं ठिकाना दूजा मैयां।
आदिशक्ति हे जीण भवानी, सारा जग माँ तुझको ध्याये,
शिव शंकर भी आदि देव की, तुझसे ही माँ पदवी पाएं।
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिव शंकर तेरा ध्यान धरे हैं।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती,चँवर कुबेर ढुलाय रहे हैं।
तुम ही हो सर्वस्व हे जननी, सारी दुनियाँ तेरी माया,
चारों धाम तेरे चरणों में, तुझमे ह बह्ममंड समाया।
माना मै नालायक हूँ माँ, त्याग ना देना मुझको माता,
पूत कपूत तो हो सकता है, माता हुई ना कभी कुमाता।
तेरे जैसी मैया पाकर, बालक तेरी शरण में आया,
आँचल में माँ आज छिपाले, सारी दौलत आज मैं पाया।
जिस घर में हो कृपा तुम्हारी, उस घर कोई कमी ना आवे,
युगों युगों तक जीण भवानी, वो प्राणी जग से तर जावे।
जीण नाम का जाप करू तो, जीवन में मधुपाक बनाऊँ,
ऐसा दो वरदान भवानी, हर पल तेरा ही गुण गाऊँ।
सुदी अष्टमी नवमी को माँ, जो कोई लेता ज्योत तुम्हारी,
प्रगट होय कर मात भवानी, मन इच्छा फल तू दे जाती हैं।
रोज नियम से पाठ करे जो, उसका पल में कष्ट टलेगा,
ग्यारह पाठ करे जो कोई, मन इच्छा फल उसे मिलेगा।
यह शत पाठ करे जो प्राणी, भव सागर से तर जायेगा,
जीण भवानी मेहर करेगी, दामन उसका भर जायेगा।
स्नान ध्यान कर धुप दीप धर, जो ये मंगल पाठ करेगा,
हर्ष कहे माँ तेरी दया से, उस नर का भण्डार भरेगा।
दुख दारिद्र पास नहीं आते, शक्ति पाठ जहाँ हो तेरा,
जिस घर में माँ आप विराजो, करती लक्ष्मी वहाँ बसेरा।
कलम विराजी मात शारदा, मन बुद्धि को चिन्तन दीन्हा,
मंगल पाठ भवानी तेरे, हर्ष भक्त ने पूरा कीन्हा ।
मंगल पाठ करे जो कोई, निषचय हो जावे भव पारा,
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा।
 
दोहा Doha
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम,
नित की परचा देत है, पूरण करती काम।

चौपाई Choupayi
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी,
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई।

दोहा Doha
मैया जीण की ज्योत ले, करेगा जो ये पाठ,
भंवरा वाली की कृपा से, सदा रहेंगे ठाठ।
इति श्री जीण शक्ति मंगलपाठ
(जय मातेश्वरी )
Related Post
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url