चादर हो गई बहुत पुरानी, अब तो सोच समझ अभिमानी ।टेक।
अजब जुलाहा चादर बीनी ,सूत करम की तानी ।
सुरत निरति का भरना दीनीे, तब सबके मन मानी ।।1
मैले दाग पड़े पापन के ,विषयन में लपटानी ।
ज्ञान का साबुन लाय न धोया, सत्संगति का पानी ।।2।।
भई खराब गई अब सारी, लोभ मोह में सानी ।
सारी उमर ओढ़ते बीती , भली बुरी नहीं जानी ।।3।।
शंका मानी जान जिय अपने , है यह वस्तु बिरानी ।
कहैं कबीर यहि राखू यतन से , ये फिर हाथ ना आनी।।4।।
अजब जुलाहा चादर बीनी ,सूत करम की तानी ।
सुरत निरति का भरना दीनीे, तब सबके मन मानी ।।1
मैले दाग पड़े पापन के ,विषयन में लपटानी ।
ज्ञान का साबुन लाय न धोया, सत्संगति का पानी ।।2।।
भई खराब गई अब सारी, लोभ मोह में सानी ।
सारी उमर ओढ़ते बीती , भली बुरी नहीं जानी ।।3।।
शंका मानी जान जिय अपने , है यह वस्तु बिरानी ।
कहैं कबीर यहि राखू यतन से , ये फिर हाथ ना आनी।।4।।
शब्दार्थ :- चादर = शरीर तन। जुलाहा-मन सुरती= मनोवृति । निरति = लिनता ।शंका = संदेह, संशय।
कबीर भजन का भावार्थ : जीवात्मा इस जगत में आकर अभिमानी, अहंकारी बन जाती है। माया के भरम का शिकार होकर वह अपने पथ से भटक जाती है। जीवन के आवागमन के चक्र के कारण यह चादर बहुत पुरानी हो चुकी है। विषय वासना, पाप आदि कर्मों से यह मैली है। ईश्वर ने बहुत ही अद्भुद यह चादर बनाई है जिसमे कर्मों का सूत (धागा) ही मूल है। इस चादर में सुरति और निरति का भरना दिया है जैसे सूत भरने के उपरान्त आरी तारी से भरना दिया जाता है। तन रूपी इस चादर में विषय वासना के पाप लग जाते हैं। विषय भोग में हम इसको अज्ञानता में ही मैला कर लेते हैं, लिपटा लेते हैं। अज्ञानता के कारण ही हम सत्संग रूपी पानी से ज्ञान की साबुन से इसको साफ़ नहीं कर पाते हैं। लोभ के कारण हम इसे पूरा खराब कर देते हैं। सारी उमर इस तन रूपी चादर को ओढ़ा लेकिन भली बुरी का ज्ञान नहीं किया। कैसे हम इसको संभालें, कैसे सत्संग में जाकर इसके मैल को उतारें कभी ध्यान ही नहीं दिया।
यह शंका दूर कर लेनी चाहिए की यह चादर हमारी नहीं है। यह पराई है, जिसने दी है वह वापस ले ही लेगा। कबीर साहेब की वाणी है की इसको बड़े ही जतन से रखना चाहिए, क्योंकि यह बार बार हाथ नहीं आनी है। भाव है की यह मानव जीवन बार बार नहीं मिलने वाला है, इसलिए चादर को बड़े ही जतन से संभाल कर रखना चाहिए।
lyrics- चादर हो गयी बहुत पूरानी,
अब तो सोच समझ अभिमानी ॥
अजब जुलाहा चादर बिनी,
सूत करम की तानी ।
सुरत निरत का भरना दिना,
तब सबके मन मानी ॥
मैले दाग पडे पापन के,
विषयन में लिपतानी ।
ज्ञान का साबुन लायिके धोयी,
सतसंगत के पानी ॥
शंका मानो मत दिल अपने,
है यह वस्तु विरानी ।
कहे कबीर यहि राखो यतन से,
नही फिर हाथ में आनी ॥
अब तो सोच समझ अभिमानी ॥
अजब जुलाहा चादर बिनी,
सूत करम की तानी ।
सुरत निरत का भरना दिना,
तब सबके मन मानी ॥
मैले दाग पडे पापन के,
विषयन में लिपतानी ।
ज्ञान का साबुन लायिके धोयी,
सतसंगत के पानी ॥
शंका मानो मत दिल अपने,
है यह वस्तु विरानी ।
कहे कबीर यहि राखो यतन से,
नही फिर हाथ में आनी ॥
Chadar Ho Gayi Bahut Purani | Kabir Bhajan | Vidushi Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Lyrics-Chaadar Ho Gayee Bahut Pooraanee,Ab To Soch Samajh Ke Abhimaanee Maanee
Ajab Julaaha Chaadar Binee,
Soot Karam Kee Taanee.
Surat Nirat Ka Bharana,
Tab Sabake Man Maanee Aanee
Mailebarn Pade Panes Ke,
Vishaayan Mein Lipataanee.
Gyaan Ka Saabun Laayike Dhoyee,
Satahee Paanee
Shanka Maano Mat Apane Aap Ko,
Yah Vastu Hai.
Kahe Kabeer Yahi Raakho Yatan Se,
Nahin Phir Haath Mein Aanee Nee
Ajab Julaaha Chaadar Binee,
Soot Karam Kee Taanee.
Surat Nirat Ka Bharana,
Tab Sabake Man Maanee Aanee
Mailebarn Pade Panes Ke,
Vishaayan Mein Lipataanee.
Gyaan Ka Saabun Laayike Dhoyee,
Satahee Paanee
Shanka Maano Mat Apane Aap Ko,
Yah Vastu Hai.
Kahe Kabeer Yahi Raakho Yatan Se,
Nahin Phir Haath Mein Aanee Nee
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
- मन लागो मेरो यार फकीरी में लिरिक्स हिंदी Man Lagyo Mero Yaar Fakiri Me Lyrics
- निरभय निरगुण गुण रे गाऊंगा लिरिक्स Nirbhay Nirgun Gun Re Gaunga Lyrics
- अवधूता गगन घटा गहरानी रे कबीर भजन लिरिक्स Avdhuta Gagan Ghata Gahrani Re Lyrics
- मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया लिरिक्स Meri Chunari Me Pargyo Daag Piya Lyrics
- ऋतु फागुन नियरानी हो कबीर भजन लिरिक्स Ritu Fagun Niyrani Ho Lyrics Kabir Bhajan Lyrics
- मन ना रँगाए रँगाए जोगी कपड़ा लिरिक्स Man Na Rangaaye Rangaaye Jogi Kapda Lyrics
Beautiful mixture of divine lyrics by Saint Kabir and divine voice.Heart touching Kabir Bhajan performed by Vidushi Dr. Ashwini Bhide Deshpande. Raga: Raga Bhairav Bhajan: Chadar Ho Gayi Bohot Purani Lyrics: Saint Kabir Das Composer: Dr. Ashwini Bhide Deshpande Vocalist: Vidushi Dr. Ashwini Bhide Deshpande Style: Jaipur-Atrauli Gharana Tanpura and Vocal Support: Smt. Shivani Haldipur Kallianpur Smt. Megha Bhatt Smt. Sveta Hattangdi Kilpady Tabla: Pt. Vinod Lele Harmonium: Siddhesh Bicholkar
Author - Saroj Jangir
इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें। |