कबीर साहेब के इस भजन में जागने से आशय माया के भ्रम को समझ कर जीवन के उद्देश्य को समझने से है। एक तो साधक जाग्रत अवस्था में है और सतगुरु जाग्रत हैं, बाकी सभी लोग (आलम ) सोने में व्यस्त है। जागने के भी अपने कष्ट हैं। जो जाग्रत हैं वे अपने मालिक से मिलने के लिए व्याकुल हैं, बाकी सभी निष्फिक्र होकर सो रहे हैं। अज्ञान में हैं इसलिए कोई कष्ट उनको नहीं सता रहा है। जंगल का मृग जाग्रत है क्योंकि वह भी खोज में है। बालक की माँ अपने पुत्र में मोह डालकर जाग्रत है। जंगल के राजा शेर को अपने इलाके (राज पाट ) की चिंता है इसलिए वह जाग रहा है। वहीं जंगल में साधू जाग्रत है जो सुरति में व्यस्त है।
भाव है की जिसने माया को समझा है वह जाग्रत है।
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे, आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे, मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे, आलम सारी सोवै, सोवे, सोवै।
एक तो जागे है जंगल का मिरगवा, भटक भटक निंदरा खोवे, खोवे, खोवे, मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे, आलम सारी सोवै, सोवे, सोवै।
एक तो जागे है बालक की माता, अपनी सूरत बालक में लावे, लावे, लावे, मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे, आलम सारी सोवै, सोवे, सोवै।
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एक तो जागे है जंगल का राजा, अपनी सूरत राज में लावे, लावे, लावे, मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे, आलम सारी सोवै, सोवे, सोवै।
एक तो जागे है जंगल का साधू, अपनी सूरत आप में लावे, लावे, लावे, मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे, आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे, मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
Main Jaagoon Mhaaraan Sataguru Jaage, Aalam Saaree Sove, Sove, Sove, Main Jaagoon Mhaaraan Sataguru Jaage, Aalam Saaree Sovai, Sove, Sovai.
Jashn-e-Rekhta is a three-day festival celebrating Urdu and our composite culture. It is held every year in Delhi under the aegis of the Rekhta Foundation, a not-for-profit organization devoted to the preservation and promotion of the languages and literature of the Indian sub-continent .