राम गुन बेलड़ी रे अवधू लिरिक्स Raam Gun Beladi Re Avadhu Lyrics with Hindi Meaning

राम गुन बेलड़ी रे अवधू लिरिक्स Raam Gun Beladi Re Avadhu Lyrics with Hindi Meaning

 
राम गुन बेलड़ी रे अवधू लिरिक्स Raam Gun Beladi Re Avadhu Lyrics with Hindi Meaning

राम गुन बेलड़ी रे अवधू गोरषनाथि जाँणी।
नाति सरूप न छाया जाके बिरध करैं बिन पाँणी॥
बेलड़िया द्वे अणीं पहूँती गगन पहूँती सैली।
सहज बेलि जल फूलण लागी डाली कूपल मेल्ही॥
मन कुंजर जाइ बाड़ा बिलब्या सतगुर बाही बेली।
पंच सखी मिसि पवन पयप्या बाड़ी पाणी मेल्ही॥
काटत बेली कूपले मेल्हीं सींचताड़ी कुमिलाँणों।
कहै कबीर ते बिरला जोगी सहज निरंतर जाँणी। 

Ram gun be ladi re avadhu - Madhup Mudgal - Kabir Bhajan

Raam Gun Beladee Re Avadhoo Gorashanaathi Jaannee.
Naati Saroop Na Chhaaya Jaake Biradh Karain Bin Paannee.
Beladiya Dve Aneen Pahoontee Gagan Pahoontee Sailee.
Sahaj Beli Jal Phoolan Laagee Daalee Koopal Melhee.
Man Kunjar Jai Baada Bilabya Satagur Baahee Belee.
Panch Sakhee Misi Pavan Payapya Baadee Paanee Melhee.
Kaatat Belee Koopale Melheen Seenchataadee Kumilaannon.
Kahai Kabeer Te Birala Jogee Sahaj Nirantar Jaannee.

राम गुन बेलड़ी रे अवधू लिरिक्स Raam Gun Beladi Re Avadhu Lyrics with Hindi Meaning

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।
Raam Gun Belaree Re,
Avadhoo Gorashanaathi Jaanneen.

गुरु गोरख नाथ जी को कबीर साहेब ने अवधू कहकर राम नाम रूपी बेल का ज्ञाता बताया है। गोरखनाथ राम गुण रूपी बेल के ज्ञाता है। राम नाम की बेल गुणों से भरपूर है अवधू (ज्ञानी जन ). इसे गोरखनाथ ने जाना है। vine (creeper) made of qualities of Ram  is known to Avdhoo (saint) Goraknath (Gorakh Nath)

नाति सरूप न छाया जाके,
बिरध करैं बिन पाँणी॥
Naati Saroop Na Chaaya Jaake ,
Biradh Karain Bin Paannee.

ना तो इसका कोई रूप और आकार है और नाहीं इसकी कोई छांया है। यह बगैर पानी के ही विस्तारित होती है, बढ़ती है। भाव है की यह राम रूपी लता It neither has form nor shadow, it grows without water(Maya) 
राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।
Raam Gun Belaree Re,
Avadhoo Gorashanaathi Jaanneen.
राम गुण रूपी बेलड़ी के ज्ञाता अवधू गोरखनाथ हैं। vine(creeper) made of qualities of Ram  is known to Avdhoo(saint) Goraknath  
नाति सरूप न छाया जाके,
बिरध करैं बिन पाँणी॥
Naati Saroop Na Chaaya Jaake ,
Biradh Karain Bin Paannee.
इस लता का कोई आकार नहीं है और ब्रह्म की भाँती ही यह अवर्णनीय है। यह केवल अनुभूति और अनुभव का ही विषय है। इसका कोई रूप रंग कर आकार नहीं है और नाहीं इसकी कोई छांया है। यह बिना पानी के बढ़ती है। भाव है की इसे विषय वासनाओं की सिंचाई की आवश्यकता नहीं है यह बिना सींचे ही आकाश की और बढ़ती है। It neither has form nor shadow,  it grows without water(Maya) 
राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।

Raam Gun Belaree Re,
Avadhoo Gorashanaathi Jaanneen.
vine(creeper) made of qualities of Ram  is known to Avdhoo(saint) Goraknath

बेलड़िया द्वे अणीं
पहूँती गगन पहूँती सैली।
Belariya Dve Aneen Pahoontee
Gagan Pahoontee Sailee।

इस बेल के दो छोर हैं। एक इंगला और दूसरा पिंगला। एक अवनी में और दूसरी गगन में फैली हुई है। यह आकाश तक पहुंची हुई है। The vine has two ends(Ida and pingala ),  it has reached by itself to the sky

सहज बेलि जल फूलण लागी,
डाली कूपल मेल्ही॥
Sahaj Beli Jal Phoolan Laagee ,
Daalee Koopal Melhee॥

सहजता से यह बेल फलने और फूलने लगी है और इसकी डाली और कौंपल बढ़ने लगी हैं। When this vine by its own nature (unforced,effortless smadhi) blossomed,  then new braches and shoots come out
राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।
Raam Gun Belaree Re,
Avadhoo Gorashanaathi Jaanneen.
vine(creeper) made of qualities of Ram  is known to Avdhoo(saint) Goraknath  
मन कुंजर जाइ बाड़ा बिलब्या,
सतगुर बाही बेली।
Man Kunjar Jai Baara Bilabya ,
 Satagur Baahee Belee

यह बेल जब फूलने और फलने लगी तब मन के मदमस्त होथी ने इसके बाड़े / थाले को बर्बाद करना शुरू कर दिया। ऐसे में सतगुरु ने इसे सहारा दिया और बढ़ने के लिए सहारा दिया। जब हाथी की भाँती मद मस्त चित्त स्थिर होता है तो सतगुरु इस बेल को उगाते हैं, स्थापित करते हैं। When elephant nature mind rests  in this garden of this vine, Satguru helps this vine grow further 
पंच सखी मिसि पवन पयप्या,
बाड़ी पाणी मेल्ही॥
panc sakhee misi pavan payapya ,
 baaree paanee melhee॥

पाँच प्रकार की ज्ञानेन्द्रियाँ मिलकर इसे हवा और पानी देती हैं। इसे बढ़ने में मदद करती हैं। पांच प्रकार की इन्द्रियाँ इसे बढ़ने में मदद करती हैं। Now five senses help life force  further to remove water(Maya)

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।
Raam Gun Belaree Re,
Avadhoo Gorashanaathi Jaanneen.
vine(creeper) made of qualities of Ram is known to Avdhoo(saint) Goraknath
काटत बेली कूपले मेल्हीं,
सींचताड़ी कुमिलाँणों।
kaatat belee koopale melheen ,
seencataaree kumilaannon।

आश्चर्य की बात है की जब इस बेल को सींचा जाता है तो यह कुम्हला जाती है और काटने पर इसके नयी कौंपले आने लगती हैं। यहाँ बेल को सींचने से आशय विषय वासनाओं से है। This vine grows further when one cuts oneself further from worldliness, if one enjoys worldly cravings
 the this vine become lifeless 
कहै कबीर ते बिरला जोगी,
सहज निरंतर जाँणीं॥
kahai kabeer te birala jogee ,
 sahaj nirantar jaanneen॥

कबीर साहेब की वाणी है की कोई दुर्लभ योगी/ज्ञाता इसे समझ सकता है। Sayes Kabir he is a rare yogi,  who can understand this effortless eternal yoga

राम गुन बेलड़ी रे,
 अवधू गोरषनाथि जाँणीं।
Raam Gun Belaree Re,
Avadhoo Gorashanaathi Jaanneen.
vine(creeper) made of qualities of Ram  is known to Avdhoo(saint) Goraknath  
नाति सरूप न छाया जाके,
बिरध करैं बिन पाँणी॥
naati saroop na chaaya jaake ,
biradh karain bin paannee॥

It neither has form nor shadow,it grows without water(Maya)

राम गुन बेलड़ी रे,
 अवधू गोरषनाथि जाँणीं।
Raam Gun Belaree Re,
Avadhoo Gorashanaathi Jaanneen.
vine(creeper) made of qualities of Ram  is known to Avdhoo(saint) Goraknath
 
Kabir Vaani कबीर वाणी
अवधू जागत नींद न कीजै।
काल न खाइ कलप नहीं ब्यापै देही जुरा न छीजै॥टेक॥
उलटी गंग समुद्रहि सोखै ससिहर सूर गरासै।
नव ग्रिह मारि रोगिया बैठे जल में ब्यंब प्रकासै॥
डाल गह्या थैं मूल न सूझै मूल गह्याँ फल पावा।
बंबई उलटि शरप कौं लागी धरणि महा रस खावा॥
बैठ गुफा मैं सब जग देख्या बाहरि कछू न सूझै।
उलटैं धनकि पारधी मार्यौ यहु अचिरज कोई बूझै॥
औंधा घड़ा न जल में डूबे सूधा सूभर भरिया।
जाकौं यहु जुग घिण करि चालैं ता पसादि निस्तरिया॥
अंबर बरसै धरती भीजै बूझै जाँणौं सब कोई।
धरती बरसै अंबर भीजै बूझै बिरला कोई॥
गाँवणहारा कदे न गावै अणबोल्या नित गावै।
नटवर पेषि पेषनाँ पेषै अनहद बेन बजावै॥
कहणीं रहणीं निज तत जाँणैं यहु सब अकथ कहाणीं।
धरती उलटि अकासहिं ग्रसै यहु पुरिसाँ की बाँणी॥
बाझ पिय लैं अमृत सोख्या नदी नीर भरि राष्या।
कहै कबीर ते बिरला जोगी धरणि महारस चाष्या॥ 

मीरा बाई की कृष्ण भक्ति उनकी जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा थी, जो उन्हें सांसारिक बंधनों और कठिनाइयों से ऊपर उठाकर ईश्वर की अनन्य आराधना में ले आई। उनके लिए श्रीकृष्ण केवल भगवान नहीं, बल्कि सखा, स्वामी और प्रेमी थे। मीरा की भक्ति निराकार और निस्वार्थ थी, जिसे किसी भी सामाजिक बंधन या पारिवारिक कर्तव्यों ने कभी नहीं रोक पाया। अपने भजनों के माध्यम से मीरा ने कृष्ण से जुड़ाव और आत्मिक प्रेम को व्यक्त किया। वे कृष्ण के संग प्रेम में इतना लीन हो गईं कि जीवन के सारे दुख-सुख, मान-अपमान उनके लिए गौण हो गए। उनकी भक्ति में अद्वितीय आत्मसमर्पण था, जो आज भी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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