सहज सहज सबकौ कहै सहज न चीन्है कोइ हिंदी मीनिंग Sahaj Sahaj Sabko Kahe Hindi Meaning

सहज सहज सबकौ कहै सहज न चीन्है कोइ हिंदी मीनिंग Sahaj Sahaj Sabko Kahe Hindi Meaning

सहज सहज सबकौ कहै, सहज न चीन्है कोइ।
जिन्ह सहजै विषिया तजी, सहज कही जै सोइ॥
 
Sahaja Sahaja Sabakau Kahai, Sahaja Na Cīnhai Koi,
Jinha Sahajai Viṣiyā Taji, Sahaja Kahī Jai Soyi.
 
 
सहज सहज सबकौ कहै सहज न चीन्है कोइ हिंदी मीनिंग Sahaj Sahaj Sabko Kahe Hindi Meaning

सहज के विषय में सभी कोई बात करता है लेकिन सहज क्या है ? सहज किसे कहते हैं यह किसी ने चिन्हित नहीं किया है, जाना नहीं है। सहज वही है जिसने विषय विकारों का त्याग कर दिया हो, विषय वासनाओं के त्याग करने वाले को ही सहज कहा जा सकता है। विषय वासनाओं में लिप्त व्यक्ति को सहज नहीं कहा जा सकता है। 

सहज सहज सबको कहै, सहज न चीन्हें कोइ।
पाँचू राखै परसती, सहज कही जै सोइ॥
Sahaj Sahaj Sabako Kahai, Sahaj Na Cheenhen Koi.
Paanchoo Raakhai Parasatee, Sahaj Kahee Jai Soi. 
 
हर कोई सहज के विषय में बताता है, सरल ब्रह्म के विषय में बताता है लेकिन कोई भी सहज को नहीं जान पाया है, सहज क्या है। सहज को वही जान सकता है जो पाँचों इन्द्रयों को अपने वश में रखे और विषय विकारों से दूर रहे। सहज को जानने के लिए स्वंय पर नियंत्रण परम आवश्यक है।

कहाँ से आया कहाँ जाओगे खबर करो अपने तन की।
कोई सदगुरु मिले तो भेद बतावें
खुल जावे अंतर खिड़की।
कहाँ से आया कहाँ जाओगे,

हिन्दू मुस्लिम दोनों भुलाने
खटपट मांय रिया अटकी।
जोगी जंगम शेख सवेरा
लालच मांय रिया भटकी।
कहाँ से आया कहाँ जाओगे,

काज़ी बैठा कुरान बांचे
ज़मीन जोर वो करी चटकी।
हर दम साहेब नहीं पहचाना
पकड़ा मुर्गी ले पटकी।
कहाँ से आया कहाँ जाओगे,

बाहर बैठा ध्यान लगावे
भीतर सुरता रही अटकी।
बाहर बंदा, भीतर गन्दा
मन मैल मछली गटकी।
कहाँ से आया कहाँ जाओगे,

माला मुद्रा तिलक छापा
तीरथ बरत में रिया भटकी।
गावे बजावे लोक रिझावे
खबर नहीं अपने तन की।
कहाँ से आया कहाँ जाओगे,

बिना विवेक से गीता बांचे
चेतन को लगी नहीं चटकी।
कहें कबीर सुनो भाई साधो
आवागमन में रिया भटकी।
कहाँ से आया कहाँ जाओगे..
Where do you come from,
Where are you going?
Seek the answer from your body.

If you find a Sadhguru,
He will tell you the difference,
And the window within will open.

Hindus and Muslims both deluded,
Caught up in fighting.
Yogis, jangamas, sheikhs and wanderers,
Lost in greed.

Outwardly, he appears to meditate,
Within, his thoughts are in a rut.
Saintly on the outside, filthy within,
Mind tainted, he swallows a fish.

Without perceiving, reading the Gita,
The consciousness is not shaken.
Going to villages, entertaining the world,
Lost in the act of coming and going.


सहजै सहजै सब गए, सुत बित कांमणि कांम।
एकमेक ह्नै मिलि रह्या, दास, कबीरा रांम॥
Sahajai Sahajai Saba Ga'ē, Suta Bita Kāmmaṇi Kāmma.
Ēkamēka Hnai Mili Rahyā, Dāsa, Kabīrā Rāmma. 
 
संसार में प्रत्येक वस्तु नश्वर है, एक रोज उसे समाप्त हो ही जाना है। पुत्र की कामना, धन स्त्री ये सभी कामनाएं धीरे धीरे सभी समाप्त हो जाती हैं और के रोज कुछ नहीं बचता है तो वैराग्य उत्पन्न हो जाता है और भक्त अपने परमात्मा से मिलकर एकाकार हो जाता है।

सहज सहज सबको कहै, सहज न चीन्हैं कोइ।
जिन्ह सहजै हरिजी मिलै, सहज कहीजै सोइ॥
Sahaja Sahaja Sabakō Kahai, Sahaja Na Cīnhaiṁ Koi
Jinha Sahajai Harijī Milai, Sahaja Kahījai Soi 
 
सभी लोग सहज सहज कहते हैं, ईश्वर प्राप्ति को सहज कहते हैं, भक्ति को सहज कहते हैं लेकिन सहज को चिन्हित किसी ने किया नहीं है। सहज वही है जिसमे सहज माध्यम से हरी से मिलन हो सके, अन्यथा वह सहज नहीं है।

कबीर पूँजी साह की, तूँ जिनि खोवै ष्वार।
खरी बिगूचनि होइगी, लेखा देती बार॥
Kabeer Poonjee Saah Kee, Toon Jini Khovai Shvaar.
Kharee Bigoochani Hoigee, Lekha Detee Baar. 
 
जीव को संबोधित करते हुए साहेब की वाणी है की तुम क्यों मालिक की पूंजी को व्यर्थ में ही गँवा रहे हो ? जब परमात्मा को तुम अपने कर्मों का हिसाब दोगे तो तुम्हें बहुत ही कठिनाई होने वाली है। भाव है की यह मानव जीवन बहुत ही अमूल्य है यह परमात्मा की पूंजी है जिसे हमें व्यर्थ में नहीं गवां देना चाहिए क्योंकि इसका लेखा जोखा एक रोज तो ईश्वर लेंगे तब बहुत ही कठिनाई होगी इसलिए हरी सुमिरण ही इस जीवन का आधार है।

लेखा देणाँ सोहरा, जे दिल साँचा होइ।
उस चंगे दीवाँन मैं, पला न पकड़े कोइ॥
Lekha Denaan Sohara, Je Dil Saancha Hoi.
Us Change Deevaann Main, Pala Na Pakade Koi. 
 
सत्य को आधार मान कर चलने वाला व्यक्ति ही खरा उतरता है। सांच को आधार मानने वाला व्यक्ति, दिल का सच्चा आदमी, इसके कर्मों का जब हिसाब होगा तो कोई उसका पल्ला नहीं पकड़ेगा, कोई उसे मुक्ति से नहीं रोकेगा। भाव है की सच्चे व्यक्ति की मुक्ति संभव है और सत्य के विरक्त व्यक्ति को अवश्य ही दण्डित होना पड़ेगा।

कबीर चित्त चमंकिया, किया पयाना दूरि।
काइथि कागद काढ़िया, तब दरिगह लेखा पूरि॥
Kabeer Chitt Chamankiya, Kiya Payaana Doori.
Kaithi Kaagad Kaadhiya, Tab Darigah Lekha Poori. 
 
जब आत्मा दूर देश के लिया प्रयाण करती है तो चित्त खुश हो जाता है, जब चित्रगुप्त मेरे कर्मों के हिसाब का कागज निकालता है तो वह पूर्ण निकलता है तो चित्त प्रशन्न हो उठता है। भाव है की व्यक्ति सद्कर्मों के द्वारा अपने जीवन को सार्थक बना सकता है और मुक्ति को प्राप्त करता है। एक रोज सभी के कर्मों का हिसाब होना है इसलिए अपने कर्मों को व्यक्ति को श्रेष्ठ ही रखने चाहिए।

काइथि कागद काढ़ियां, तब लेखैं वार न पार।
जब लग साँस सरीर मैं, तब लग राम सँभार॥
Kaithi Kaagad Kaadhiyaan, Tab Lekhain Vaar Na Paar.
Jab Lag Saans Sareer Main, Tab Lag Raam Sanbhaar. 
 
इस जीवन के रहते हुए राम नाम का सुमिरण कर लेना चाहिए। जब चित्रगुप्त के द्वारा तुम्हारे कर्मों का हिसाब होगा तब तुम्हारे कर्मों का कोई आर और पार नहीं होगा। इसलिए जब तक शरीर में सांस हैं तब तक तुम राम के नाम का सुमिरण कर लो। सद्मार्ग पर चलते हुए पापों के नाश के लिए राम के नाम का सुमिरण ही इस जीवन का आधार है।

यहु सब झूठी बंदिगी, बरियाँ पंच निवाज।
साचै मारै झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज॥
Yahu Sab Jhoothee Bandigee, Bariyaan Panch Nivaaj.
Saachai Maarai Jhooth Padhi, Kaajee Karai Akaaj. 
 
ऐसे व्यक्ति जो सत्य की राह पर नहीं चलते हैं और भक्ति का मात्र दिखावा करते हैं ऐसे लोग भले ही दिन में पाँच बार नमाज पढ़ लें, परमात्मा की प्रार्थना कर लें, सत्य की हत्या करके झूठी नमाज पढने से कोई लाभ नहीं है। ऐसी लोग अकाज करते हैं, यह अनर्थ ही है। भाव है की हरी का सुमिरण यदि करना है तो सच्चे हृदय से करना चाहिए, यदि बाह्याचार और आत्मा दोनों में समानता नहीं है तो कुछ भी लाभ नहीं होगा। इसलिए दिखावा मत करो सच्चे हृदय से भक्ति करो।

कबीर काजी स्वादि बसि, ब्रह्म हतै तब दोइ।
चढ़ि मसीति एकै कहै, दरि क्यूँ साचा होइ॥
Kabira Kaji swadi Basi, Brahma Hatai Taba Doi.
Caṛhi Masīti Ēkai Kahai, Dari Kyūm̐ sacha Hoi. 
 
काजी मांसाहार करता है और जब बकरे को मारता है तो वह समझता है की ब्रह्म और जीव दोनों अलग अलग हैं लेकिन मस्जिद में खड़ा होकर वह कहता है की अल्लाह एक है तो उसे कैसे सच्चा मान लिया जाए। भाव है की धर्म के नाम पर जीव हत्या करना उचित नहीं है, जीव और ब्रह्म एक ही हैं इसलिए हमें जीव हत्या नहीं करनी चाहिए।

काजी मुलाँ भ्रमियाँ, चल्या दुनीं कै साथि।
दिल थैं दीन बिसारिया, करद लई जब हाथि॥
Kaji Mulaa Bhramiyaan, Chalya Duneen Kai Saathi.
Dil Thain Deen Bisaariya, Karad Laee Jab Haathi. 
 
काजी और मुल्ला दोनों ही भ्रम के शिकार हो गए हैं, वे दुनिया की देखा देखी ही चलने वाले हैं। इन्होने अपने दिल से मालिक को भुला दिया है जब ये अपने हाथों में पशु की बलि चढाने के लिए करद/कुठार हाथ में उठा लेते हैं। भाव है की जीव् हिंशा करना वह भी धर्म के नाम पर यह कोई धर्म नहीं सीखाता है। धर्म के नाम पर जीवों को मारने वाला हरी का भक्त कैसे हो सकता है। सभी जीवों को उनके जीवित रहने के अधिकार से हमें हमारे स्वार्थ के लिए वंचित नहीं करना चाहिए।

जोरी कलिर जिहै करै, कहते हैं ज हलाल।
जब दफतर देखंगा दई, तब हैगा कौंण हवाल॥
Joree Kalir Jihai Karai, Kahate Hain Ja Halaal.
Jab Daphatar Dekhanga Daee, Tab Haiga Kaunn Havaal. 
 
मुस्लिम धर्म के अनुयाई धर्म के नाम पर पशुओं की हत्या करते हैं लेकिन उस समय क्या होगा जब इनके कर्मों का हिसाब होगा। भाव है की धर्म के नाम पर जीव हिंशा को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

जोरी कीयाँ जुलम है, माँगे न्याव खुदाइ।
खालिक दरि खूनी खड़ा, मार मुहे मुहि खाइ॥
Jori Kiya Julam Hai, Maange Nyaav Khudai.
Khaalik Dari Khoonee Khada, Maar Muhe Muhi Khai. 
 
धरम के नाम पर हिंशा ठीक नहीं है, खुदा इसका न्याय अवश्य ही करेगा। जब खुदा के दरबार में व्यक्ति के कर्मों का हिसाब किया जाएगा तब उसे मुंह की खानी पड़ेगी। भाव है की जितना कष्ट वह दुसरे जीवों को दे चूका है उतने ही कष्ट उसे भी सहन करने पड़ेंगे, इसलिए धर्म के नाम पर हिंशा नहीं करनी चाहिए।

साँई सेती चोरियाँ, चोराँ सेती गुझ।
जाँणैगा रे जीवड़ा, मर पड़ैगी तुझ॥
Saanee Setee Choriyaan, Choraan Setee Gujh.
Jaannaiga Re Jeevada, Mar Padaigee Tujh. 
 
जीव तुम हरी के समक्ष चोरी करते हो, हरी के रहते चोरी करते हो और चोरों से दोस्ती रखते हो, यहाँ इन्द्रियों को चोर बताया गया है। जीव तुझे उस रोज समझ में आएगी, जान पड़ेगी जब तुमको हरी के हाथों मार पड़ेगी। भाव है की हमें इन्द्रियों से सतर्क रहने की जरुरत है और हरी का सुमिरण करते रहना चाहिए।

सेष सबूरी बाहिरा, क्या हज काबैं जाइ।
जिनकी दिल स्याबति नहीं, तिनकौं कहाँ खुदाइ॥
Sesh Sabooree Baahira, Kya Haj Kaabain Jai.
Jinakee Dil Syaabati Nahin, Tinakaun Kahaan Khudai. 
 
सेख जब तुम्हारे हृदय में, दिल में स्थायित्व नहीं है, सबर नहीं है तो हज का क्या फायदा है ? क्या ऐसे में तुमको खुदा की प्राप्ति होगी ? भाव है की हमें अपने दिल को सच्चा रखना चाहिए ऐसा नहीं की दिल में कुछ तथा आचरण में कुछ और ही। सच्चे हृदय से हरी का सुमिरण करते हुए नेक राह पर चलना ही मुक्ति का मार्ग है, बाकि सभी बाह्याचार और दिखावा हमें भक्ति की और नहीं लेकर जाता है।

खूब खाँड है खोपड़ी, माँहि पड़ै दुक लूँण।
पेड़ा रोटी खाइ करि, गला कटावै कौंण॥
Khoob Khaand Hai Khopadee, Maanhi Padai Duk Loonn.
Peda Rotee Khai Kari, Gala Kataavai Kaunn. 
 
यदि खिचड़ी में थोडा सा नमक मिला दे तो वह और अधिक स्वादिष्ट हो जाती है ऐसे में पेडा और रोटी खाकर कौन गला कटावे ? भाव है की हमें सादा जीवन गुजर बसर करना चाहिए।

पापी पूजा बैसि करि, भषै माँस मद दोइ।
तिनकी दष्या मुकति नहीं, कोटि नरक फल होइ॥
Paapee Pooja Baisi Kari, Bhashai Maans Mad Doi.
Tinakee Dashya Mukati Nahin, Koti Narak Phal Hoi. 
 
पापी लोग पूजा के नाम पर मांस और मदिरा का सेवन करते हैं और इनके इस आचरण पर उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है तथा करोड़ों नरक की यातनाएं भी सहन करनी पड़ती हैं। भाव है की हमें धरम के नाम पर किसी भी प्रकार की हिंशा नहीं करनी चाहिए और हरी के नाम का सुमिरण करना चाहिए।

सकल बरण इकत्रा है, सकति पूजि मिलि खाँहिं।
हरि दासनि की भ्रांति करि, केवल जमपुरि जाँहिं॥
Sakal Baran Ikatra Hai, Sakati Pooji Mili Khaanhin. 
 
Hari Daasani Kee Bhraanti Kari, Keval Jamapuri Jaanhin. शाक्य लोग इकठ्ठा होकर शक्ति पूजा करते हैं और पशु की बलि देकर उसका मांस खाते हैं, यह उनका भ्रम है की वे ईश्वर के भक्त हैं जाना उनको नरक में ही है।

कबीर लज्या लोक की, सुमिरै नाँही साच।
जानि बूझि कंचन तजै, काठा पकड़े काच॥
Kabeer Lajya Lok Kee, Sumirai Naanhee Saach.
Jaani Boojhi Kanchan Tajai, Kaatha Pakade Kaach. 
 
व्यक्ति लोक लाज के कारण सत्य की राह को छोडकर कुरीतियों का पालन करता है और जानबूझ कर सोने को छोडकर काठ को पकड़ लेता है। भाव है की हम स्वर्ण को छोडकर काठ के पीछे लगे रहते हैं। हरी नाम का सुमिरण ही स्वर्ण है बाकी सब व्यर्थ हैं।

कबीर जिनि जिनि जाँणियाँ, करत केवल सार।
सो प्राणी काहै चलै, झूठे जग की लार॥

जिन लोगों ने यह समझ लिया है की इस जगत का करता धर्ता केवल एक ब्रह्म ही है वे इस जगत का पीछा नहीं करते हैं और उनकी राह प्रथक होती है। भाव है की जिसको यह ज्ञान हो गया है की पूर्ण ब्रह्म ही इस जगत का करता धर्ता है वे कुरीतियों और पाखण्ड और कर्मकांड को नहीं करते हैं और सच्चे हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करते हैं जो एकमात्र मुक्ति का द्वार है।

झूठे को झूठा मिलै, दूणाँ बधै सनेह।
झूठे कूँ साचा मिलै, तब ही तूटै नेह॥
Jhoothe Ko Jhootha Milai, Doonaan Badhai Saneh.
Jhoothe Koon Saacha Milai, Tab Hee Tootai Neh. 
यदि झूठे को, किसी पाखंडी को ईश्वर के मार्ग से विमुख है उसे दूसरा उसके जैसा ही पाखंडी और झूठा मिलता है तो दोनों में अधिक स्नेह बढ़ जाता है। यदि इन झूठों को कोई सत्य के मार्ग पर चलने वाला मिल जाए तो इनका स्नेह टूटने लगता है।

Yugan Yugan Hum Yogi - Kabir song
युगन युगन हम योगी
For ages and ages, I've been a yogi
युगन युगन हम योगी
अवधूता, युगन युगन हम योगी
आवे ना जाये मिटे ना कबहुं
शब्द अनाहत भोगी
अवधूता, युगन युगन हम योगी

सब ठौर जमात हमारी
सब ठौर पर मेला
हम सब मांय, सब हैं हम मांय
हम है बहूरी अकेला
अवधूता, युगन युगन हम योगी

हम ही सिद्धि समाधी हम ही
हम मौनी हम बोले
रूप सरूप अरूप दिखा के
हम ही हम में हम तो खेले
अवधूता, युगन युगन हम योगी

कहें कबीरा सुनो भाई साधो
नाहीं न कोई इच्छा
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूँ
खेलूँ सहज स्वइच्छा अवधूता, युगन युगन हम योगी


For ages and ages, I've been a Yogi Oh wanderer, for ages and ages, I've been a Yogi I don't come or go, I never disappear I enjoy the endless sound Oh wanderer, for ages and ages, I've been a Yogi Everywhere I see my community Everywhere i meet with them I'm in all, all are in mine I am alone and together Oh wanderer, for ages and ages, I've been a Yogi I'm the realized one, I'm realization itself I'm silent, I speak I show outer form, inner form, no form I play within myself Oh wanderer, for ages and ages, I've been a Yogi, I have no desire I sway myself in my hut I play simply to please myself Oh wanderer, for ages and ages, I've been a Yogi - Kabir 
अवधूता युगन युगन हम योगी, हम योगी।
योगी योगी, युगन युगन हम योगी, हम योगी।
आवै ना जाय , आवै ना जाय ।
मिटै ना कबहूं कबहूं, सबद अनाहत भोगी।
अवधूता युगन युगन हम योगी, हम योगी।
योगी योगी, युगन युगन हम योगी, हम योगी।
सभी ठौर जमात हमरी जमात, हमरी ।
सब ही ठौर पर मेला, मेला। मेला।
हम सब माय, हम सब माय, सब है हम माय, ।
हम माय हम है बहुरी अकेला।
अवधूता युगन युगन हम योगी, हम योगी।
योगी योगी, युगन युगन हम योगी, हम योगी।
हम ही सिद्ध समाधि हम ही समाधि ,हम ही ।
हम मौनी हम बोले बोले, हम बोले।
रूप सरूप ,रूप सरूप, अरूप दिखा के, दिखा के।
हम ही हम तो खेलें।
अवधूता युगन युगन हम योगी, हम योगी।
योगी योगी, युगन युगन हम योगी, हम योगी।
कहे कबीर जो सुनो भाई साधो,सुनो भाई साधो।
ना हीं न कोई इच्छा ,इच्छा, इच्छा।
अपनी मढ़ी में, अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं, डोलूं ।
खेलूं सहज स्वइच्छा।
अवधूता युगन युगन हम योगी, हम योगी।
योगी योगी, युगन युगन हम योगी, हम योगी।

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