शिव को त्रिपुरारी क्यों कहते हैं Shiv Ko Tripurari Kyo Kaha Jata Hai Hindi

शिव को त्रिपुरारी क्यों कहते हैं Shiv Ko Tripurari Kyo Kaha Jata Hai

भगवान भगवान शिव ने कार्तिक मास की पूर्णिमा को दैत्य तारकासुर के तीन पुत्रों, तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के त्रिपुरों (तीन नगरियों) का नाश किया था, इसलिए शिव को त्रिपुरारी कहलाए जाते हैं। 
 
त्रिपुरारी शब्द दो शब्दों के योग से बना है -
त्रिपुर- तीन नगर (पुर-शहर) (त्रि-तीन)
अरी-शत्रु (श्री शिव ने तीन नगरियों को नष्ट किया था )
 
शिव को त्रिपुरारी क्यों कहते हैं Shiv Ko Tripurari Kyo Kaha Jata Hai

इस प्रकार से तीनों दैत्यों की नगरी को समाप्त करने के कारण भगवान शिव त्रिपुरारी (Tripurantaka/ Tripurari) कहलाए. उल्लेखनीय है की त्रिपुर के नाश के समय समस्त देवताओं ने अपनी मदद शिव जी के लिए की थी, जिससे आशय यह नहीं है की शिव को उनकी सहायता की आवश्यकता थी।

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त्रिपुरारी /त्रिपुरान्तक : त्रिपुरारी के रूप में शिव जी को चार भुजाओं के साथ दिखाया गया है। इस रूप में शिव को धनुष और बाण के साथ चित्रित किया गया है। इस रूप में धनुष के अतिरिक्त श्री शिव अपने में कुल्हाड़ी लिए हुए हैं। त्रिपुरा का विध्वंश करने के उपरान्त श्री शिव ने अपने मस्तक पर तीन लकीरें खींच ली थी जिसे शिव भक्त (Shaivites) आज भी ललाट पर लगाते हैं।

भगवान शिव के त्रिपुरारी बनने की कथा : शिव के त्रिपुरारी बनने का प्रसंग विस्तार से यजुर्ववेद तैत्तिरीय संहिता ६.२.३ में बताया गया है। दैत्य दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे जिनका नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युंमाली था। शिव पुत्र कार्तिकेय के द्वारा तारकासुर के वध कर दिए जाने के कारण इसके तीनों पुत्र अत्यंत शोकग्रस्त थे तथा वे देवताओं से अपने पिता के वध का बदला लेना चाहते थे। 

तीनों असुरों से देवताओं से पिता के वध का बदला लेने के लिए ब्रह्मा की घोर तपस्या शुरू कर दी। ब्रह्मा जी से उन्होंने स्वंय के तीन नगरों का निर्माण करने की बात कहीं। उन तीनों ने आकाश में उड़ने वाले तीन नगरों की इच्छा जाहिर की और ब्रह्मा जी से वर माँगने लगे की की उन्हें ऐसा वर दे की उनका वध तभी सम्भव हो पाए जब तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं और कोई देवता तीनों नगरी को एक ही बाण से नष्ट कर दें। 

भगवान ब्रह्मा जी ने तीनों को सोने, चांदी और लोहे के नगर निर्मित करके दिए। तीनों असुरों के द्वारा चारों तरफ आतंक मचाया जाने लगा। इस पर भगवान शिव ने इन तीनों के वध करना तय कर लिया। समस्त दैवीय शक्तियां इनके वध के लिए एक साथ आई यथा शिव के द्वारा जो रथ काम में लिया गया उसमे सूर्य और चन्द्रमा पहिए बने और ब्रह्मा जी सारथी बने। पृथ्वी शिव जी के रथ का शरीर बनी और शेष नाग रथ की धुरी। शिव ने तीनों की नगरी (Tirpuram) को कुछ ही समय में नष्ट कर दिया और कई राक्षशों का भी वध किया। 
 
मान्यता है की शिव जी ने तीनों दैत्यों (तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली) को क्षमा कर दिया और तारकाक्ष तथा कमलाक्ष को अपना द्वारपाल बना लिया तथा विद्युन्माली को कुदामूजा (शिव जी का वाद्य यंत्र ) बजाने के लिए रख लिया। इस प्रकार से तीन नगरियों के ध्वंश के उपरान्त भगवान श्री शिव 'त्रिपुरारी' कहलाए।
त्रिपुरान्तक मंदिर जिसे त्रिपुरान्तकेश्वर भी कहते हैं, मंदिर शिवमोग्गा जिला, कर्नाटक राज्य में स्थापित है।
 

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