चिंता चिति निबारिए फिर बूझिए न कोइ मीनिंग Chinta Chiti Nibariye Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Arth Sahit)
चिंता चिति निबारिए, फिर बूझिए न कोइ।इंद्री पसर मिटाइए, सहजि मिलैगा सोइ॥
Chinta Chiti Nibariye, Phir Bujhiye Na Koi,
Indri Pasar Mitaaiye, Sahaji Milega Soi.
चिंता : किसी विषय को लेकर आशंकित रहना.
चिति : चित्त/हृदय.
निबारिए : दूर करिए, त्याग दीजिये.
फिर : इसके उपरान्त.
बूझिए न कोइ : किसी को पूछने की, कोई शंका नहीं रहेगी.
इंद्री : पाँचों इन्द्रिया
बूझिए : सलाह लेना, पूछना.
पसर : फैलाव को, विस्तार को.
मिटाइए : मिटा दीजिए, दूर कर दीजिये.
सहजि : सहज ही, आसानी से.
मिलैगा सोइ : वही (इश्वर/पूर्ण परमात्मा)
चिति : चित्त/हृदय.
निबारिए : दूर करिए, त्याग दीजिये.
फिर : इसके उपरान्त.
बूझिए न कोइ : किसी को पूछने की, कोई शंका नहीं रहेगी.
इंद्री : पाँचों इन्द्रिया
बूझिए : सलाह लेना, पूछना.
पसर : फैलाव को, विस्तार को.
मिटाइए : मिटा दीजिए, दूर कर दीजिये.
सहजि : सहज ही, आसानी से.
मिलैगा सोइ : वही (इश्वर/पूर्ण परमात्मा)
कबीर साहेब की वाणी है की अपने चित्त से चिंता को दूर कर दीजिए. यदि तुमने ऐसा कर लिया तो तुम बेफिक्र हो जाओगे और किसी से कुछ भी पूछने, सलाह की कोई आवश्यकता शेष नहीं रहेगी. पाँचों इन्द्रियों के प्रभाव को समझ कर इनसे दूर हो जाओ इसके बाद तुमको सहज ही इश्वर की प्राप्ति होगी.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब ने व्यक्ति के स्वभाव की दुर्बलता को दूर करने के लिए सन्देश दिया है. जीवात्मा इश्वर से दूर होकर माया में लिप्त रहने पर आशंकित रहती है और भविष्य की चिंता को लेकर आशंकित बनी रहती है. इस पर कबीर साहेब का निर्देश है की पहले तो तुम इन्द्रियों के प्रभाव को समझो की कैसे वे ही चिंता का मूल कारण बनती हैं. इसके उपरान्त तुम अपने हृदय से चिंता को दूर करो क्योंकि इश्वर की रजा के बगैर कुछ भी नहीं होने वाला है. तुम उसी का ध्यान, सुमिरण करो फिर सहज ही उससे मिल पाना संभव हो पायेगा.
वस्तुतः भक्ति मार्ग में मुख्य बाधा इन्द्रियाँ ही हैं, क्योंकि समस्त मायाजनित व्यवहार इन्ही के माध्यम से होता है. इसे समझने की आवश्यकता है और असल फकीरी को अपने स्वभाव में शामिल करने के उपरान्त भक्ति मार्ग "सहज" हो जाता है.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब ने व्यक्ति के स्वभाव की दुर्बलता को दूर करने के लिए सन्देश दिया है. जीवात्मा इश्वर से दूर होकर माया में लिप्त रहने पर आशंकित रहती है और भविष्य की चिंता को लेकर आशंकित बनी रहती है. इस पर कबीर साहेब का निर्देश है की पहले तो तुम इन्द्रियों के प्रभाव को समझो की कैसे वे ही चिंता का मूल कारण बनती हैं. इसके उपरान्त तुम अपने हृदय से चिंता को दूर करो क्योंकि इश्वर की रजा के बगैर कुछ भी नहीं होने वाला है. तुम उसी का ध्यान, सुमिरण करो फिर सहज ही उससे मिल पाना संभव हो पायेगा.
वस्तुतः भक्ति मार्ग में मुख्य बाधा इन्द्रियाँ ही हैं, क्योंकि समस्त मायाजनित व्यवहार इन्ही के माध्यम से होता है. इसे समझने की आवश्यकता है और असल फकीरी को अपने स्वभाव में शामिल करने के उपरान्त भक्ति मार्ग "सहज" हो जाता है.