मन कै मते न चालिये छाड़ि जीव की बाँणि मीनिंग
मन कै मते न चालिये, छाड़ि जीव की बाँणि।
ताकू केरे सूत ज्यूँ, उलटि अपूठा आँणि॥
Man Ke Mate Na Chaliye Chhadi Jeev Ki Baani,
Taaku Kere Soot Jyu, Ulati Aputha Aani.
मन कै मते न चालिये : मन के मुताबिक, मन के अनुसार मत चलो.
छाड़ि जीव की : जीव रूप की आदत को छोड़ दो.
बाँणि : आदत.
ताकू : तकली. (सूत काटने का एक तरह का ओजार.)
केरे : की तरह से.
कबीर साहेब की वाणी है की जीव को अपने मन के मुताबिक नहीं चलना चाहिए और विवेक का उपयोग करके सामान्य जीव की आदतों को छोड़ देना चाहिए जो की पूर्ण रूप से सांसारिक होती हैं. जैसे तकली के सूत को उल्टा करके पुनः सूत कातने की नली पर चढ़ा दिया जाता है वैसे ही हमें अपने मन को सांसारिक क्रियाओं से उलटकर, विमुख करके इश्वर के प्रति लगाना चाहिए.
भाव है की व्यक्ति का मन तो सांसारिक क्रियाओं में लिप्त रहता है और वह इश्वर की भक्ति के प्रति विमुख होता है, अतः मन का अनुसरण नहीं करना चाहिए. जीवात्मा को समस्त सांसारिक क्रियाओं और व्यवहार का विश्लेषण करके स्वंय के लिए उचित हरी भक्ति का मार्ग चुनना चाहिए. प्रस्तुत साखी में उपमा अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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