दीन गँवाया दुनी सौं दुनी मीनिंग
दीन गँवाया दुनी सौं दुनी मीनिंग
दीन गँवाया दुनी सौं, दुनी न चाली साथि।पाइ कुहाड़ा मारिया, गाफिल अपणै हाथि॥
दीन : धर्म (इश्वर की भक्ति)
गँवाया : खो दिया.
दुनी : दुनियादारी से, जगत के कार्यों में लिप्त होकर.
सौं : से, में लिप्त होकर.
दुनी : दुनिया, दुनियादारी.
न चाली : नहीं चली (दुनियादारी साथ में नहीं चली)
साथि : साथ नहीं निभाया, साथ में नहीं चली.
पाइ : पाँव.
कुहाड़ा : कुल्हाड़ी.
मारिया : मारना (अपने पाँव पर स्वंय ही कुल्हाड़ी मारना, स्वंय का नुकसान करना)
गाफिल : मस्त होकर, मतान्ध होकर, असावधान होकर.
अपणै हाथि : अपने ही हाथों से.
गँवाया : खो दिया.
दुनी : दुनियादारी से, जगत के कार्यों में लिप्त होकर.
सौं : से, में लिप्त होकर.
दुनी : दुनिया, दुनियादारी.
न चाली : नहीं चली (दुनियादारी साथ में नहीं चली)
साथि : साथ नहीं निभाया, साथ में नहीं चली.
पाइ : पाँव.
कुहाड़ा : कुल्हाड़ी.
मारिया : मारना (अपने पाँव पर स्वंय ही कुल्हाड़ी मारना, स्वंय का नुकसान करना)
गाफिल : मस्त होकर, मतान्ध होकर, असावधान होकर.
अपणै हाथि : अपने ही हाथों से.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब सन्देश देते हैं की जीव इस जगत के मोह में पड़कर स्वंय का ही नुकसान कर बैठता है. वह दुनियाँ के साथ रहता है, इस जगत और उससे जुडी हुई क्रियाओं, व्यापार (व्यवहार) को सच्चा समझ कर दुनिदारी में पड जाता है. लेकिन वह यह भूल जाता है की अंत समय में दुनियादारी उसके साथ में नहीं जाने वाली है. आखिर में होता भी यही है की कोई उसके साथ नहीं हो पाता है.
उसके रिश्तेदार, उसके द्वारा अर्जित धन दौलत सब यहीं पर रह जाती है, कुछ भी उसके साथ नहीं जाता है. केवल एक राम का नाम ही उसके साथ जाता है. इसलिए माया में गाफिल होकर साधक स्वंय के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार लेता है.
भाव है की हमें जरूरत है की हम बारीकी से समझें की माया का भ्रम क्या है. माया ही जीवन को नष्ट करती है. अनेको जन्म के उपरान्त यह अमूल्य मानव जीवन मिला है. इसलिए इसका सदुपयोग हरी के सुमिरण में करना चाहिए. इसे व्यर्थ के कार्यों में नष्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बार बार मिलने वाला नहीं है.
उसके रिश्तेदार, उसके द्वारा अर्जित धन दौलत सब यहीं पर रह जाती है, कुछ भी उसके साथ नहीं जाता है. केवल एक राम का नाम ही उसके साथ जाता है. इसलिए माया में गाफिल होकर साधक स्वंय के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार लेता है.
भाव है की हमें जरूरत है की हम बारीकी से समझें की माया का भ्रम क्या है. माया ही जीवन को नष्ट करती है. अनेको जन्म के उपरान्त यह अमूल्य मानव जीवन मिला है. इसलिए इसका सदुपयोग हरी के सुमिरण में करना चाहिए. इसे व्यर्थ के कार्यों में नष्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बार बार मिलने वाला नहीं है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |