निरमल बूँद अकास की पड़ि गइ मीनिंग

निरमल बूँद अकास की पड़ि गइ मीनिंग

निरमल बूँद अकास की, पड़ि गइ भोमि बिकार।
मूल विनंठा माँनबी, बिन संगति भठछार॥
Nirmal Bund Akash Ki Padi Gai Bhomi Bikar,
Mool Vinatha Manavi, Bin Sangati Bhathchhaar.
निरमल बूँद अकास की : आकाश की निर्मल की बूँद.
पड़ि गइ भोमि बिकार : भूमि पर पड़कर विकारग्रस्त हो जाती है.
मूल विनंठा माँनबी: मानव ने अपने मूल को ही नष्ट कर लिया है.
बिन संगति भठछार : सुसंगति के अभाव में वह भट्टे की छार बन जाती है.
निरमल : शुद्ध तम रूप से, जीवात्मा.
बूँद अकास की : आकाश से पानी की बूँद.
पड़ि गइ : पड़कर.
भोमि : भूमि.
बिकार : विकारग्रस्त हो गई है.
मूल : मानव जीवन ही मूल है.
विनंठा : विनष्ट कर दिया, समाप्त कर दिया.
माँनबी : मानव ने.
बिन संगति : संगती के बिना, सुसंगति के अभाव में.
भठछार : भट्टे की राख.
कबीर साहेब इस साखी में सन्देश देते हैं की, मानव जीवन आकाश से गिरी हुई निर्मल बूँद के समान है. जैसे बरसात का पानी अपने शुद्धतम रूप में होता है ऐसे ही मानव  जीवन भी शुरू में सबसे शुद्ध और पवित्र होता है. जैसे आकाश की बूंद धरती पर पड़कर विकृत हो जाती है, दूषित हो जाती है ऐसे ही मानव की आत्मा भी सत्संगत के  अभाव में भट्टे की राख के समान बेकार / दूषित हो जाता है. सतसंगत के अभाव में व्यक्ति इस जगत में आकर अपने मूल को भी नष्ट कर देता है. मूल से आशय मानव  जीवन से है. जैसे भट्टे की राख किसी काम की नहीं होती है ऐसे ही साधुजन की संगती के अभाव में मानव जीवन भी किसी काम का नहीं रहता है. मानव जीवन का  महत्त्व साध जन की संगती और इश्वर सुमिरन में ही है. प्रस्तुत साखी में उदाहरण अलंकार की व्यंजना हुई है. 
 
अतः स्पष्ट है की साहेब इस साखी में सद्पुरुषों की संगती के महत्त्व को स्थापित करते हैं. जीवन में संगती के मह्त्व को वे महत्वपूर्ण मानते हैं. साधक को अच्छे लोगों की संगती में रहना चाहिए जो इश्वर की भक्ति में अपना चित्त लगाते हैं.
 
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