इहि औसरि चेत्या नहीं मीनिंग Ehi Osari Chetya Nahi Lyrics Hindi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Bhavarth/Meaning)
इहि औसरि चेत्या नहीं, पसु ज्यूँ पाली देह।राम नाम जाण्या नहीं, अति पड़ी मुख खेह।
Ehi Osari Chetya Nahi, Pasu Jyu Paali Deh,
Raam Naam Janya ahi, Ati Padi Mukh Shehad.
इहि : यह/इस.
औसरि : अवसर,
चेत्या नहीं : सतर्क नहीं होते हो तो.
पसु ज्यूँ : पशु की भाँती, पशु की तरह खाया और पिया, देह को पाला.
पाली देह : खाया पिया और देह को पाला.
राम नाम जाण्या नहीं : राम के नाम को जाना नहीं.
अति पड़ी मुख षेह : मुख में धुल होगी.
औसरि : अवसर,
चेत्या नहीं : सतर्क नहीं होते हो तो.
पसु ज्यूँ : पशु की भाँती, पशु की तरह खाया और पिया, देह को पाला.
पाली देह : खाया पिया और देह को पाला.
राम नाम जाण्या नहीं : राम के नाम को जाना नहीं.
अति पड़ी मुख षेह : मुख में धुल होगी.
कबीर साहेब की वाणी है की इस अवसर (मानव जीवन) को प्राप्त करके जो व्यक्ति अभी भी सचेत नहीं हुआ है, ज्ञान को प्राप्त नहीं किया है वह तो ऐसे ही है जैसे पशु अपनी देह को पालता है. जो राम नाम के महत्त्व को नहीं जान पाता है उसके मुख में मिटटी ही पडनी है, उसे अवश्य ही नष्ट हो जाना है. पशु जैसे आहार, निंद्रा, मैथुन में व्यस्त रहता है क्योंकि उसके लिए यही जीवन है, उसके पास विचार की शक्ति नहीं है, इसलिए उससे किसी प्रकार की कोई उम्मीद करना भी व्यर्थ ही है.
लेकिन मनुष्य को इश्वर ने विवेक दिया है, सोचने समझने का सामर्थ्य प्रदान किया है. ऐसे में यदि व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को पहचाने की कोशिश नहीं करता है तो वह पशु के समान ही होता है. प्रस्तुत साखी में मूल उद्देश्य है की अपने जीवन का महत्त्व समझो और गुरु ज्ञान प्राप्त करो की इस जगत में कुछ भी स्थाई नहीं है. हरी का नाम ही मुक्ति का आधार है. इस साखी में उपमा अलंकार की व्यंजन हुई है.
लेकिन मनुष्य को इश्वर ने विवेक दिया है, सोचने समझने का सामर्थ्य प्रदान किया है. ऐसे में यदि व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को पहचाने की कोशिश नहीं करता है तो वह पशु के समान ही होता है. प्रस्तुत साखी में मूल उद्देश्य है की अपने जीवन का महत्त्व समझो और गुरु ज्ञान प्राप्त करो की इस जगत में कुछ भी स्थाई नहीं है. हरी का नाम ही मुक्ति का आधार है. इस साखी में उपमा अलंकार की व्यंजन हुई है.