नमस्कार दोस्तों, आज हम जानेंगे महान संत कबीरदास जी की प्रेरणादायक जीवनी के बारे में। कबीरदास जी का जीवन, उनके विचार, और उनकी रचनाएँ आज भी सटीक और प्रेरणा देने वाली हैं। वह एक ऐसे संत और कवि थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन के समय समाज को नई दिशा दी और समाज में व्याप्त बाहरी आडंबरों का विरोध किया। उनकी शिक्षा और उनके अनमोल वचन आज भी हमारे जीवन को सही मार्गदर्शन देते हैं। तो आइए, संत कबीरदास जी के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से जानते हैं।
कबीरदास का प्रारंभिक जीवन
कबीरदास का जन्म 1398 ईस्वी के आसपास काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था, लेकिन इसके विषय में भी कोई एक मानी राय नहीं है। उनके जन्म को लेकर कई कथाएँ हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार, उनका पालन-पोषण एक जुलाहा परिवार में हुआ था, जिनका नाम नीरू और नीमा था। उनके माता-पिता गरीब थे जो जुलाहे का काम करते थे, लेकिन कबीर की धार्मिक प्रवृत्ति और भक्ति भावना ने उन्हें बाल्यावस्था से ही विशेष बना दिया। एक कथा के अनुसार, उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम जुलाहा परिवार, नीरू और नीमा ने किया था। बाल्यावस्था से ही वे ईश्वर भक्ति में रुचि रखने लगे और समाज में व्याप्त बुराइयों से परेशान रहते थे।कबीरदास की शिक्षा और भक्ति
कबीरदास औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की, फिर भी उनकी रचनाओं में गहरी विद्वत्ता और आध्यात्मिकता मिलती है, जो आज भी प्रासंगिक है। वे किसी विशेष धर्म से जुड़ने की बजाय सच्चे मार्ग की तलाश में थे, उन्होंने सभी धर्मों में फैली अज्ञानता और आडम्बर का विरोध किया। उन्होंने लोगों को मानवीय गुण धारण करने पर बल दिया.
कबीरदास की रचनाएँ और साहित्यिक योगदान
कबीरदास की रचनाएँ और साहित्यिक योगदान
कबीरदास जी ने कई दोहे, साखियाँ और पद लिखे, जो आज भी प्रचलित हैं। उनके दोहे सरल और सहज भाषा में होते थे, जिन्हें समझना आसान था लेकिन उनका अर्थ गहरा होता था। उनके दोहों में समाज सुधार, ईश्वर प्रेम, माया से मुक्ति और जीवन की सच्चाईयों का सार समाहित है। उन्होंने भक्ति और ज्ञान को जीवन का आधार माना और बाहरी आडंबरों का विरोध किया। कबीरदास जी ने समाज में फैले अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक पाखंड का सख्त विरोध किया। उनका मानना था कि ईश्वर को पाने के लिए किसी जाति, धर्म, या बाहरी आडंबर की आवश्यकता नहीं है। वे मानते थे कि हर व्यक्ति को अपने भीतर झाँकना चाहिए और सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए। कबीर के उपदेशों का सार यह है कि इंसान को मोह-माया त्याग कर, सच्चे प्रेम और भक्ति के साथ ईश्वर का साक्षात्कार करना चाहिए।
भाषा और शैली
कबीरदास जी ने सधुक्कड़ी और पंचमेल खिचड़ी भाषा का प्रयोग किया, जिसमें राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, ब्रज, और अवधी जैसी बोलियाँ सम्मिलित थीं। उनकी रचनाएँ सादगी और भावनाओं से ओतप्रोत थीं, जो जनसाधारण के समझ में आसानी से आ जाएं।
भाषा और शैली
कबीरदास जी ने सधुक्कड़ी और पंचमेल खिचड़ी भाषा का प्रयोग किया, जिसमें राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, ब्रज, और अवधी जैसी बोलियाँ सम्मिलित थीं। उनकी रचनाएँ सादगी और भावनाओं से ओतप्रोत थीं, जो जनसाधारण के समझ में आसानी से आ जाएं। कबीरदास के विचार और उपदेश
कबीरदास का मुख्य उद्देश्य समाज में फैले पाखंड और धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करना था। वे जाति-पाति, ऊँच-नीच के घोर विरोधी थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है, और हर इंसान को सच्चे मन से उसकी पूजा करनी चाहिए। कबीर के उपदेशों का सार यह है कि व्यक्ति को अपने भीतर झाँकना चाहिए और सच्चाई, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलना चाहिए।धार्मिक प्रवृत्ति और भक्ति आंदोलन में योगदान
कबीरदास जी बचपन से ही धर्म और आध्यात्म के प्रति रुचि रखते थे। उन्होंने गुरु रामानंद जी से दीक्षा ली और उनसे शिक्षा प्राप्त की। कबीरदास जी निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख संतों में से एक थे और उन्होंने भक्ति आंदोलन को अपने विचारों और शिक्षाओं से गहराई प्रदान की। उनके उपदेशों ने समाज में व्याप्त आडंबरों और पाखंडों का विरोध किया और सरल जीवन जीने का मार्ग सुझाया।कबीरदास की रचनाएँ और उनके विचार
कबीरदास जी ने अपने जीवन में कई अमूल्य रचनाएँ की हैं जिनमें उनके दोहे और पद प्रमुख हैं। उनकी रचनाओं में मानव जीवन का उद्देश्य, सत्य, ईश्वर भक्ति, और समाज में भाईचारे का संदेश निहित है। उनके दोहे आज भी हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं और जीवन को सरल एवं सार्थक बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं। कबीरदास जी का मानना था कि सच्ची भक्ति के लिए किसी बाहरी दिखावे की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अंतरमन की शुद्धि और प्रभु के प्रति सच्ची आस्था ही मुख्य है। कबीरदास के साहित्य का सबसे प्रसिद्ध संग्रह "बीजक" है। बीजक में उनके तीन प्रमुख रचनात्मक खंड शामिल हैं:
रमैनी: यह खंड उनके आध्यात्मिक विचारों को प्रस्तुत करता है। इसमें वेदांत के तत्व, संसार की क्षणभंगुरता, मन की शुद्धि और प्रेम की साधना के महत्व पर जोर दिया गया है। इसमें कबीर ने बताया कि माया (भौतिक इच्छाएं) व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग से विचलित करती हैं, इसलिए हृदय की पवित्रता पर ध्यान देना आवश्यक है।
सबद: कबीर के भक्ति गीतों का संग्रह है, जिसमें ईश्वर और भक्ति की महिमा का वर्णन मिलता है। उनके भजनों में उन्होंने आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध को बड़ी ही सरलता से व्यक्त किया है। ईश्वर की स्तुति और भक्ति के महत्व पर आधारित इन गीतों में गहरी आध्यात्मिकता है।
साखी: कबीरदास के उपदेशात्मक दोहे, जो सरलता और संजीवता से भरे हैं, इस खंड में संग्रहित हैं। इनमें धार्मिक, सामाजिक और दार्शनिक विचार व्यक्त किए गए हैं। साखियों के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया और लोगों को सच्चाई की राह दिखाने का प्रयास किया।
रमैनी: यह खंड उनके आध्यात्मिक विचारों को प्रस्तुत करता है। इसमें वेदांत के तत्व, संसार की क्षणभंगुरता, मन की शुद्धि और प्रेम की साधना के महत्व पर जोर दिया गया है। इसमें कबीर ने बताया कि माया (भौतिक इच्छाएं) व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग से विचलित करती हैं, इसलिए हृदय की पवित्रता पर ध्यान देना आवश्यक है।
सबद: कबीर के भक्ति गीतों का संग्रह है, जिसमें ईश्वर और भक्ति की महिमा का वर्णन मिलता है। उनके भजनों में उन्होंने आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध को बड़ी ही सरलता से व्यक्त किया है। ईश्वर की स्तुति और भक्ति के महत्व पर आधारित इन गीतों में गहरी आध्यात्मिकता है।
साखी: कबीरदास के उपदेशात्मक दोहे, जो सरलता और संजीवता से भरे हैं, इस खंड में संग्रहित हैं। इनमें धार्मिक, सामाजिक और दार्शनिक विचार व्यक्त किए गए हैं। साखियों के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया और लोगों को सच्चाई की राह दिखाने का प्रयास किया।
समाज सुधारक के रूप में योगदान
कबीरदास जी ने समाज में व्याप्त जात-पात, धर्म के नाम पर भेदभाव और पाखंड का खुलकर विरोध किया। उन्होंने हमेशा इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म बताया और समाज में समानता का संदेश फैलाया। उनके उपदेशों ने समाज को एक नई दिशा दी और धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार-प्रसार किया।गुरु रामानंद से शिक्षा प्राप्ति
कबीरदास जी ने महान संत रामानंद जी को अपना गुरु बनाया। कथा के अनुसार, कबीर ने रामानंद जी से दीक्षा पाने के लिए एक रात घाट की सीढ़ियों पर लेट गए, जहां रामानंद जी का पैर लगने पर उन्होंने उन्हें "राम" नाम जपने की सलाह दी। इस प्रकार, कबीरदास जी को अपने जीवन का मार्गदर्शन मिला।कबीरदास का प्रभाव और उनकी मृत्यु
कबीरदास का प्रभाव उनकी मृत्यु के बाद भी बना रहा। उनके विचारों ने भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों में उनका अंतिम संस्कार करने को लेकर मतभेद हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कबीर का शरीर फूलों में बदल गया, जिसे दोनों धर्मों के अनुयायियों ने अपने-अपने तरीके से सम्मानित किया। कबीरदास ने अपने जीवन का अधिकांश समय काशी में बिताया, लेकिन अपने अंतिम समय में समाज में फैले अंधविश्वासों को तोड़ने के लिए मगहर चले गए। कहा जाता था कि मगहर में मरने से स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती। इस अंधविश्वास का खंडन करने के लिए कबीरदास जी ने 1518 में मगहर में ही देह त्याग दी। उनकी समाधि और मजार दोनों ही मगहर में स्थित हैं, जो उनके समन्वयवादी दृष्टिकोण को दर्शाता है।कबीर की भाषा शैली
कबीर की भाषा शैली विशेष रूप से उनके संदेशों को लोगों तक पहुँचाने का एक शक्तिशाली माध्यम रही है। उन्होंने बोलचाल की सहज भाषा का प्रयोग किया, जो लोगों के दिलों को छू जाती थी। कबीर की भाषा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उसकी सरलता और स्पष्टता थी। कठिन और गूढ़ विषयों को भी वे इतने सरल ढंग से कह देते थे कि आम जनता उसे समझ सके।
सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग
कबीर की भाषा बोलचाल की शैली पर आधारित थी। उन्होंने स्थानीय बोली का प्रयोग करते हुए अरबी, फारसी, पंजाबी, बुंदेलखंडी, ब्रजभाषा और खड़ी बोली के शब्दों को समेटा। उनकी भाषा को "सधुक्कड़ी" और "पंचमेल खिचड़ी" कहा जाता है। कबीर का मानना था कि भक्ति और सच्चाई को कठिन शब्दों की जरूरत नहीं होती।
कबीर की भाषा की एक और विशेषता उनकी शब्दों में गहराई थी। उनके शब्द इतने प्रभावशाली थे कि वह कठिन से कठिन बातों को भी सरल बना देते थे। उनकी कविता में विचारों की गहराई और सादगी का मेल देखने को मिलता है। उनके दोहे और कविताएँ लोगों को सीधे प्रभावित करती थीं और समाज को जागरूक बनाती थीं।
कबीर की भाषा में व्यंग्य का भी विशेष स्थान था। उन्होंने पंडितों, मौलवियों, और समाज के उन ढोंगी लोगों पर तीखे व्यंग्य किए, जो धार्मिकता का दिखावा करते थे। उनकी सरल और तीखी भाषा ऐसी होती थी कि लोग इसे सुनकर लज्जित हो जाते थे। कबीर के व्यंग्य में सीधापन था, जो लोगों के सामने सच्चाई उजागर कर देता था।
सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग
कबीर की भाषा बोलचाल की शैली पर आधारित थी। उन्होंने स्थानीय बोली का प्रयोग करते हुए अरबी, फारसी, पंजाबी, बुंदेलखंडी, ब्रजभाषा और खड़ी बोली के शब्दों को समेटा। उनकी भाषा को "सधुक्कड़ी" और "पंचमेल खिचड़ी" कहा जाता है। कबीर का मानना था कि भक्ति और सच्चाई को कठिन शब्दों की जरूरत नहीं होती।कबीर की भाषा की एक और विशेषता उनकी शब्दों में गहराई थी। उनके शब्द इतने प्रभावशाली थे कि वह कठिन से कठिन बातों को भी सरल बना देते थे। उनकी कविता में विचारों की गहराई और सादगी का मेल देखने को मिलता है। उनके दोहे और कविताएँ लोगों को सीधे प्रभावित करती थीं और समाज को जागरूक बनाती थीं।
कबीर की भाषा में व्यंग्य का भी विशेष स्थान था। उन्होंने पंडितों, मौलवियों, और समाज के उन ढोंगी लोगों पर तीखे व्यंग्य किए, जो धार्मिकता का दिखावा करते थे। उनकी सरल और तीखी भाषा ऐसी होती थी कि लोग इसे सुनकर लज्जित हो जाते थे। कबीर के व्यंग्य में सीधापन था, जो लोगों के सामने सच्चाई उजागर कर देता था।
कबीरदास के जीवन से सीख
कबीरदास का जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और भक्ति का सही अर्थ आडंबरों से दूर रहकर, सच्चे दिल से ईश्वर को पाने में है। उनका जीवन समाज में सुधार और मानवता के कल्याण के लिए प्रेरणादायक है।कबीरदास ने दोहों और साखियों के माध्यम से समाज में फैले अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया। उनके अनुसार, सच्चे ईश्वर की प्राप्ति बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि अपने भीतर झाँकने से होती है। उनके प्रसिद्ध दोहे जैसे "साईं इतना दीजिए" और "बुरा जो देखन मैं चला" आज भी हमारे जीवन में गहरे अर्थ रखते हैं। कबीरदास का जीवन हमें सत्य, प्रेम और समानता का मार्ग दिखाता है। उनकी रचनाओं ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कबीर साहेब के जीवन से जुड़े प्रमुख 50 बिंदु
- कबीरदास 15वीं सदी के महान रहस्यवादी कवि और संत माने जाते थे।
- उनका जन्म भारत के काशी में लहरतारा तालाब में 1398 ई. में हुआ था।
- कबीर साहेब जी का जन्म ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममुहूर्त में हुआ।
- उनके पालक माता-पिता का नाम नीरू और नीमा था।
- कबीर जी का पालन-पोषण जुलाहों के परिवार में हुआ।
- उन्होंने जीवनयापन के लिए जुलाहे का काम किया।
- कबीर साहेब जी ने 52 बार मौत का सामना किया, परंतु वे असफल रहे।
- उनके अनुयायी हर साल कबीर साहेब प्रकट दिवस मनाते हैं।
- कबीर जी ने अपने समय के पाखंड, अंधविश्वास और जाति भेद का विरोध किया।
- उन्होंने व्यक्ति पूजा का विरोध किया और एक सर्वोच्च ईश्वर पर विश्वास रखा।
- कबीर ने हिन्दू और मुसलमान दोनों को समान भाव से समझाया।
- वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे।
- कबीर साहेब ने गुरु रामानंद जी से दीक्षा प्राप्त की।
- कबीर जी के गुरु बनने की कहानी काफी रोचक है।
- कबीर जी की प्रसिद्धि ने उनके अनुयायी समाज को "कबीर पंथ" का नाम दिया।
- उनके शिष्य धर्मदास ने उनकी वाणी का संग्रह "बीजक" नाम से किया।
- कबीर की वाणी को सिख धर्म के ग्रंथ "श्री गुरु ग्रंथ साहिब" में शामिल किया गया।
- गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 226 दोहे सम्मिलित हैं।
- कबीर के छंदों को रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अंग्रेजी में अनुवाद किया।
- उनके दो प्रमुख शिष्य धर्मदास और भागोदास ने उनकी रचनाओं को संजोया।
- कबीर जी की भाषा सधुक्कड़ी और पंचमेल खिचड़ी थी।
- उनके साहित्य में हिंदी भाषा की विभिन्न बोलियों का मिश्रण पाया जाता है।
- उनकी रचनाएँ भक्ति आंदोलन पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
- कबीर ने अपनी बात को सरल और सुबोध भाषा में व्यक्त किया।
- कबीर साहेब की रचनाएँ रमैनी, सबद, और साखी रूप में हैं।
- कबीर साहेब ने अपने जीवनकाल में दिव्य धर्मयज्ञ का आयोजन किया।
- उनके भंडारे में 18 लाख लोग शामिल हुए थे।
- कबीर साहेब ने मूर्तिपूजा का विरोध किया।
- कबीर के अनुसार, भगवान की प्राप्ति के लिए कर्मकांड की आवश्यकता नहीं है।
- कबीर ने कहा कि सच्ची भक्ति दिल से होती है, न कि बाहरी आडंबर से।
- वे मानव जाति में भेदभाव नहीं मानते थे।
- कबीर जी के प्रमुख ग्रंथों में "कबीर साखी" और "कबीर बीजक" हैं।
- उन्होंने जीवन में सत्य, अहिंसा और सदाचार का प्रचार किया।
- कबीर साहेब के प्रमुख दोहे "माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर" जैसे हैं।
- कबीर साहेब जी ने कर्मकांड के बजाय आत्मज्ञान पर जोर दिया।
- कबीर का उद्देश्य लोगों को एक ईश्वर की महिमा समझाना था।
- कबीर साहेब ने जात-पात का विरोध किया।
- उनके दोहे आज भी मानव जीवन का मार्गदर्शन करते हैं।
- कबीर साहेब के अनुयायी उन्हें अविनाशी परमात्मा मानते हैं।
- कबीर साहेब के प्रमुख दोहे गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं।
- उन्होंने अपनी भाषा में ब्रजभाषा और अवधी का अधिक प्रयोग किया।
- कबीर जी ने परमात्मा को "राम" नाम से संबोधित किया।
- उनके अनुसार, मनुष्य जन्म दुर्लभ है और इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।
- कबीर साहेब के अनुसार, माया का जाल इंसान को भटका देता है।
- उनका मानना था कि आत्मा का उद्धार सद्गुरु की कृपा से ही संभव है।
- कबीर जी ने कहा कि "पाहन पूजे हरि मिलें तो मैं पूजूं पहार।"
- कबीर साहेब का निधन मगहर में हुआ था।
- कबीर जी की शिक्षाएँ आज भी समाज को मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
कबीर साहेब के विषय में विशेष बिंदु
- उनका जन्म रहस्यमय और विवादित किंवदंतियों से घिरा हुआ है, स्पष्ट जानकारी नहीं है.
- कबीर साहेब की आयु 120 वर्ष मानी जाती है।
- कबीर साहेब की माता एक ब्राह्मण महिला थीं, जिन्होंने अविवाहित होने के कारण कबीर को छोड़ दिया था।
- कबीर साहेब को एक मुस्लिम बुनकर ने गोद लिया और उनका पालन-पोषण मुस्लिम संस्कृति में हुआ।
- कबीर ने हिंदू संत रामानंद से गहरा प्रभाव लिया, जिससे उनका दृष्टिकोण व्यापक हुआ।
- वे धार्मिक कट्टरता और पाखंड के सख्त आलोचक थे।
- कबीर के अनुसार, धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या और रीति-रिवाज दोनों धर्मों में समान रूप से विद्यमान थे।
- वे पवित्र ग्रंथों को समझने के बजाय, जीवन के अमर सत्य की निष्ठा को अधिक महत्व देते थे।
- उनके संदेश का मुख्य माध्यम उनके पद और तुकांत दोहे थे।
- उनके दोहे आज भी उत्तर भारतीय भाषाओं में प्रचलित हैं।
- सिख धर्म में उन्हें गुरु नानक का अग्रदूत माना जाता है।
- मुसलमान उन्हें सूफी संत मानते हैं, जबकि हिंदू उन्हें वैष्णव संत के रूप में देखते हैं।
- कबीर ने अपना अधिकांश जीवन बनारस में एक बुनकर के रूप में बिताया।
- उनका संबंध जुलाहा जाति से था, जिसे समाज में निम्न स्थान प्राप्त था।
- उनके आक्रामक स्वभाव और सामाजिक कट्टरता का विरोध करने से वे जनप्रिय बन गए।
- कबीर पंथ, जो मुख्य रूप से दलितों में प्रचलित है, उन्हें मुख्य गुरु और सत्य का अवतार मानता है।
- उनके विचारों ने कई धार्मिक और सामाजिक आंदोलनों को प्रभावित किया।
- कबीर का भक्ति कविताओं के संग्रहों में प्रमुख स्थान है।
- उनके दोहे, साखी और भजन, उलटबासिया सामाजिक पाखंडों का पर्दाफाश करती हैं और जीवन के मूल सत्य को समझने पर जोर देती हैं।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |