जिहि हरि की चोरी करि गये राम गुण भूलि
जिहि हरि की चोरी करि, गये राम गुण भूलि।
ते बिंधना बागुल रचे, रहे अरध मुखि झूलि॥
Jihi Hari Ki Chori Kari, Gaye Raam Gun Bhuli
Te Bindhna Baagul Rache, Rahe Aradh Mukhi Jhuli
जिहि : जिसने.
हरि की चोरी करि : हरी भक्ति से जी चुराया, हरी का नाम सुमिरण नहीं किया.
गये राम गुण भूलि : जो राम नाम को भूल गए, इश्वर के गुणों को जिन्होंने विस्मृत कर दिया है.
ते : वे.
बिंधना : विधाता, इश्वर.
बागुल रचे बगुला बनाती है.
रहे अरध मुखि झूलि : निचे की तरफ मुख करके झूलते हैं.
कबीर साहेब की वाणी है की जो मनुष्य, इश्वर भक्ति में अपने चित्त को नहीं लगाता है, चित्त को नाम सुमिरण से चोरी करता है, जी चुराता है ऐसे लोग राम (इश्वर) के गुणों को भूल गए हैं और उनको इश्वर अगले जन्म में बगुला बनाता है जो अपने मुंह को निचे करके झूलते रहते हैं, भाव है की लज्जित होते रहते हैं. प्रस्तुत साखी में फलोत्प्रेक्षा अलंकार की व्यंजना हुई है. कर्मों के मुताबिक़ हमें उसके परिणाम भोगने पड़ते हैं. इस साखी से ऐसा लगता है की कबीर साहेब का पुनर्जन्म में कुछ यकीन रहा है, तभी
तो वे यह कहते हैं की कर्मों के फल को भोगने के लिए व्यक्ति को अगले जन्म में उसी के मुताबिक़ जन्म मिलता है. जो इश्वर के गुणगान को भूल जाते हैं, इश्वर की महिमा को विस्मृत कर बैठते हैं ऐसे लोग अगले जन्म में अवश्य ही बगुले का रूप धारण करते हैं. यह मानव जीवन ही एक अवसर है, इस अवसर के चूकने के उपरांत अत्यंत ही कष्ट सहन करने होंगे.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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