कबीर हरि की भगति बिन हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

कबीर हरि की भगति बिन हिंदी मीनिंग Kabir Hari Ki Bhagati Bin Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Bhavarth)

कबीर हरि की भगति बिन, धिगि जीमण संसार।
धूँवाँ केरा धौलहर जात न लागै बार.
Kabir Hari Ki Bhagati Bin, Dhigi Jeeman Sansaar,
Dhuvaa Kera Dhoulhar Jaat Naa Laage Baar.

हरि की भगति बिन : बगैर इश्वर की भक्ति के, सुमिरण के अभाव में.
धिगि : धिक्कार है.
जीमण : जीवन, (जीवन व्यर्थ है)
धूँवाँ : धुँआ.
केरा : के समान,
धौलहर : सफ़ेद धुंए के महल के समान.
जात न लागै बार : नष्ट होते समय नहीं लगती है, क्षणिक होता है.

कबीर साहेब की वाणी है की जिसने इस जीवन के महत्त्व को नहीं समझा है, सुमिरण नहीं किया है उसका जीवन धिक्कार है. जीवन की नश्वरता को दर्शाते हुए कबीर साहेब की वाणी है की मानव जीवन तो धुवे के समान है, जो धुए के महल के समान है जो पल भर में ही समाप्त हो जाता है. प्रस्तुत साखी में साहेब ने मनुष्य को समझाया है की उसका जीवन बहुत ही अल्प है और अस्थिर भी. माया को जोड़ने से कुछ भी नहीं होने वाला है.  प्रस्तुत साखी में उपमा अलंकार की व्यंजना हुई है.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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