कबीर सुपनै रैनि कै ऊघड़ि आए नैन हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

कबीर सुपनै रैनि कै ऊघड़ि आए नैन हिंदी मीनिंग Kabir Supane Raini Ke Meaning Kabir Ke Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Kabir Ke Dohe Hindi Meaning/Hindi Bhavarth)

कबीर सुपनै रैनि कै, ऊघड़ि आए नैन।
जीव परा बहु लूट में, जागै लेन न देन।।
Kabir Supane Raini Ke, Ughadi Aae Nain,
Jeev Para Bahu Loot Me, Jaage Len Na Den.

सुपनै : सपने, स्वप्न.
रैनि कै : रात्रि के.
ऊघड़ि आए : खुल गए हैं.
नैन : आँखें, नयन.
जीव परा : जीव पड़ा है, जीव लिप्त है.
बहु लूट में : अधिकता के साथ लूट मार में लिप्त है.
जागै लेन न देन : जागने पर कोई लेना देना नहीं होता है, कुछ भी पल्ले नहीं लगता है.

कबीर साहेब की वाणी है की व्यक्ति अज्ञान में पड़ा हुआ मायाजनित व्यवहार में लिप्त रहता है, लेकिन जब वह अज्ञान की निंद्रा से जागता है, माया रूपी स्वप्न टूटता है तो वह पाता है की माया तो भ्रम था, यहाँ तो कुछ भी लेना देना नहीं है.  माया के भ्रम में जब जब तक जीवात्मा रहती है वह एक तरह से स्वप्न देख रही होती है, उसे लगता है की यह भी लूट लू, अधिक से अधिक संग्रह करने की लालसा रहती है. जब गुरु के ज्ञान की प्राप्ति होती है तो वह पाती है की यह तो महज एक छद्म व्यवहार था, व्यक्ति के साथ तो कुछ भी चलने वाला नहीं है. ऐसे में वह ज्ञान प्राप्त करता है की राम का सुमिरण ही मुक्ति का आधार है.  वर्तमान सन्दर्भ में आप इसे देखेंगे तो पायेंगे की जीवात्मा माया को जोड़ने में अधिक लिप्त है. अधिक से अधिक माया को संग्रह करने की लालसा ही उसके दुखों का कारण बनती है.  गुरु के ज्ञान के उपरान्त ही उसे यह स्पष्ट हो पाता है की वह माया को जोड़ने के चक्कर में कितना मानसिक रूप से अशांत रहता है और मालिक को भूल जाता है. ऐसे में सही मायनों में तो वह अपने जीवन का भी आनंद नहीं ले पाता है. अंत में सभी यहीं पर रह जाना है, कुछ भी साथ नहीं चलता है.  अतः इस साखी का मूल उद्देश्य/भाव है की माया के व्यवहार को समझो और यह स्पष्ट रूप से जान लो की माया एक छद्मावरण है, इसके पीछे भागने के बजाय हरी के नाम का सुमिरण करना ही मुक्ति का आधार है.
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