कबीर सुपनैं रैनि कै पारस जीय मीनिंग
कबीर सुपनैं रैनि कै पारस जीय मैं छेक मीनिंग
कबीर सुपनैं रैनि कै, पारस जीय मैं छेक।जे सोऊँ तौ दोइ जनाँ, जे जागूँ तौ एक।।
सुपनैं रैनि कै : रात्री के सपने, मिथ्या.
रैनि : रात्री.
पारस : पूर्ण परमात्मा, ब्रह्म.
जीय : जीवात्मा.
छेक : भेद, अंतर.
जे सोऊँ तौ : यदि निंद्रा में हो तो.
जे : जो / यदि.
दोइ जनाँ : द्वेत भाव, आत्मा और परमात्मा में भिन्नता.
जे जागूँ तौ एक : जागने पर एक ही होता है.
रैनि : रात्री.
पारस : पूर्ण परमात्मा, ब्रह्म.
जीय : जीवात्मा.
छेक : भेद, अंतर.
जे सोऊँ तौ : यदि निंद्रा में हो तो.
जे : जो / यदि.
दोइ जनाँ : द्वेत भाव, आत्मा और परमात्मा में भिन्नता.
जे जागूँ तौ एक : जागने पर एक ही होता है.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की अज्ञान की अवस्था में ही जीवात्मा और परमात्मा में भेद होता है. ज्ञान प्राप्त हो जाने पर, जाग्रत अवस्था में परमात्मा और आत्मा में कोई अंतर नहीं होता है. अज्ञान की निंद्रा में जीव और पारस रूपी पूर्ण परमात्मा में भेद दिखाई देता है. ऐसी अवस्था में जीवात्मा और परमात्मा दो दिखाई देती हैं, दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व प्रतीत होता है. लेकिन जागने पर यह बोध होता है की दोनों ही एक ही हैं, द्वेत भाव नष्ट हो जाता है.