कबीर यहु तन जात है सकै तो ठाहर मीनिंग

कबीर यहु तन जात है सकै तो ठाहर लाइ मीनिंग

कबीर यहु तन जात है, सकै तो ठाहर लाइ।
कै सेवा करि साध की, कै गुण गोविंद के गाइ॥

कबीर यहु तन जात है : मनुष्य जनम बीता जा रहा है.
तन : मानव जीवन/मानव देह, तन.
जात : जा रहा है, व्यतीत हो रहा है.
सकै तो ठाहर लाइ : यदि तुम कर सकते हो तो इसे ठहरा लो, इसका सदुपयोग करो.
सकै : यदि कर सकते हो तो.
ठाहर : ठहरा लेना, सदुपयोग करना.
कै सेवा करि साध की : या तो तुम साधू/संतों की सेवा करो.
कै गुण गोविंद के गाइ : या तो फिर हरी के गुण गाओ, हरी सुमिरण करो.
कै : या तो.

कबीर साहेब मनुष्य को आगाह करते हुए वाणी देते हैं की तुम किस भरम में पड़े हो ? यह मानव जीवन तो व्यर्थ ही नष्ट हुए जा रहा है. यह लगातार बीत रहा है. यदि तुम चाहो तो इसे ठहरा लो, रोक लो. या तो तुम साधू की सेवा करो या फिर तुम हरी के गुण गाओ, हरी सुमिरण करो. भाव है की यह जीवन सदा के लिए नहीं है, हम चाहे जैसे कार्य करें अच्छे या बुरे, यह बीतना तो अवश्य ही है. यह पल पल बीते जा रहा है. इसलिए समझदारी इसमें है की हम इसकी उपयोगिता को समझें. इसकी उपयोगिता को रोकने का तरीका एक ही है, हरी के नाम का सुमिरण. सद्कार्य करना, यथा साधू संत की सेवा करना. इसे ठहरा लेने से भाव है की हरी भक्त जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है, उसे पुनः यातना नहीं भोगनी पड़ती है. हरी भक्ति / भगवत प्रेम ही जीवन को ठहरा सकता है. 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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