कबीर हरि की भगति करि हिंदी मीनिंग Kabir Hari Ki Bhagati Kari Meaning Kabir Dohe

कबीर हरि की भगति करि हिंदी मीनिंग Kabir Hari Ki Bhagati Kari Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Meaning/Bhavarth)

कबीर हरि की भगति करि, तजि बिषिया रस चोज।
बारबार नहीं पाइए, मनिषा जन्म की मौज॥
Kabir Hari Ki Bhagati Kari, Taj Bisiya Ras Choj.
Baarbaar Nahi Paaiye, Manikha Janam Ki Mouje

कबीर हरि की भगति करि : हरी की भक्ति करो, हरी के नाम का सुमिरण करो.
तजि : त्याग करके, छोड़ करके.
बिषिया : विषय विकार.
रस : विषय रस.
चोज : हँसी मजाक, ठट्ठा, उल्लास, हास्य.
बार बार नहीं पाइए : पुनः, बारम्बार प्राप्त नहीं होगी।
मनिषा जन्म की : मनुष्य देह पाने के उपरान्त की।

मौज : आनंद.

प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की तुम (साधक) हरी की भक्ति करो, सच्चे मन से इश्वर का सुमिरण करो. विषय विकार रूपी रसों का भोग तुम पूर्ण रूप से त्याग कर दो. यह मानव जीवन अत्यंत ही मूल्यवान है जिसे तुम बार बार (बारम्बार) प्राप्त नहीं कर सकोगे. अनेकों रूपों में जीवन की विभिन्न यातनाओं को भोगने के उपरान्त यह मानव की देह प्राप्त होती है. यह तो हीरे के समान अमूल्य है जिसे यूँही व्यर्थ में गँवा देना समझदारी नहीं है. भले ही विषय विकारों में, माया जनित कार्यों में व्यक्ति उल्लासित होता है लेकिन यह क्षणिक है, इससे तो बेहतर भक्ति की विरह अग्नि है, जिसमे हरी मिलन की आस होती है. तुच्छ सांसारिक कार्यों में इसको गँवा देना उचित नहीं है. हरी के रस का पान करके देखो, समस्त सांसारिक रसों का उसके आगे कोई महत्त्व नहीं है.
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