काटि कूटि मछली हिंदी मीनिंग Kaati Kuti Machhali Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Hindi Meaning) Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit.
काटि कूटि मछली, छींकै धरी चहोड़ि।कोइ एक अषिर मन बस्या, दह मैं पड़ी बहोड़ि॥
Kaati Kuti Machhali, Chheke Dhari Chahodi,
Koi Ek Akhir Man Basaya, Dah Me Padi Bahodi.
काटि कूटि मछली : मछली को काट पीट कर,
मछली : हृदय/मन.
छींकै : छत पर बंधी एक डलिया, ब्रह्मरंध्र
धरी : रखी.
चहोड़ि : चढ़ाकर, सहेज कर.
कोइ एक अषिर : कोई एक अक्षर, अषिर-अक्षर.
मन बस्या : मन में आते ही, कान में पड़ते ही.
दह मैं : तालाब, सरोवर में.
पड़ी : गिर गई.
बहोड़ि : पुनः, दुबारा.
मछली : हृदय/मन.
छींकै : छत पर बंधी एक डलिया, ब्रह्मरंध्र
धरी : रखी.
चहोड़ि : चढ़ाकर, सहेज कर.
कोइ एक अषिर : कोई एक अक्षर, अषिर-अक्षर.
मन बस्या : मन में आते ही, कान में पड़ते ही.
दह मैं : तालाब, सरोवर में.
पड़ी : गिर गई.
बहोड़ि : पुनः, दुबारा.
कबीर साहेब जीवात्मा को मछली रूप में बताकर वाणी देते हैं की जैसे मछली को पकाने के लिए उसे साफ़ सुथरा करके छींके पर रख दिया जाता है. ऐसे ही जीवात्मा उर्ध्वगामी हो जाती है भक्ति के माध्यम से. लेकिन जरा सी सांसारिकता, मायाजनित क्रियाओं की बाते होने पर, कान में ऐसी बातें पड़ने पर वह पुनः उसी तालाब में गिर जाती है. वासना का एक भी अक्षर यदि मन में घर कर जाता है तो जीवात्मा पुनः पतन की और अग्रसर हो उठती है.
उक्त साखी में कबीर साहेब ने भक्ति को छींका कहकर श्रेष्ठ बताया है (ब्रह्मरंध्र) औरसंसार रूपी विषय वासनाओं को तालाब कहकर उसे निम्न श्रेणी का बताया गया है. यदि जीवात्मा ध्यान नहीं रखे तो अवश्य ही वह विषय विकारों में पड़ जाती है. दुसरे शब्दों में जीवात्मा को आगाह किया है की उसे पुनः उसी स्थान पर नहीं जाना है जहाँ से वह श्रेष्ठ स्थान पर आई है. प्रस्तुत साखी में रुप्कातिश्योक्ति एंव सांगरूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
उक्त साखी में कबीर साहेब ने भक्ति को छींका कहकर श्रेष्ठ बताया है (ब्रह्मरंध्र) औरसंसार रूपी विषय वासनाओं को तालाब कहकर उसे निम्न श्रेणी का बताया गया है. यदि जीवात्मा ध्यान नहीं रखे तो अवश्य ही वह विषय विकारों में पड़ जाती है. दुसरे शब्दों में जीवात्मा को आगाह किया है की उसे पुनः उसी स्थान पर नहीं जाना है जहाँ से वह श्रेष्ठ स्थान पर आई है. प्रस्तुत साखी में रुप्कातिश्योक्ति एंव सांगरूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग