कबीर मन पंषी भया बहुतक चढ़ा अकास मीनिंग Kabir Man Pakshi Bhaya Hindi Meaning Kabir Dohe

कबीर मन पंषी भया बहुतक चढ़ा अकास मीनिंग Kabir Man Pakshi Bhaya Hindi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Hindi Arth)

कबीर मन पंषी भया, बहुतक चढ़ा अकास।
उहाँ ही तैं गिरि पड़ा, मन माया के पास॥
Kabir Man Panchhi Bhaya, Bahutak Chadha Aakash,
Uha Hi Te Giri Pada, Man Maaya Ke Paas.

मन : साधक का मन, चित्त, हृदय.
पंषी भया : पक्षी बन गया है.
पंषी : पक्षी.
भया : हो गया है.
बहुतक : बहुत, अधिक.
चढ़ा अकास : आकाश में चढ़ चूका है.
उहाँ ही : वहीँ.
तैं : से.
गिरि पड़ा : गिर गया है.
मन माया के पास : चित्त में तो अभी भी माया ही बसी हुई है.

कबीर साहेब की वाणी है की मेरा मन तो पक्षी बनकर उपर की तरफ उड़ने लगा है. साधक का मन उर्ध्वगामी हो गया है. प्रभु प्राप्ति हेतु वह शून्य प्रदेश में बहुत ऊपर तक बढ़ गया है. मन के पूर्ण रूप से समर्पण के अभाव में साधक के मन में अभी भी माया का ही विचार उद्वेलित होता रहता है. उसके मन में अभी भी माया ही रमी हुई है. इसके ही कारण से ही वह ब्रह्मरंध्र तक पहुँचने के बाद भी पुनः निचे आकर गिर पड़ती है.
इस साखी का मूल भाव है की साधक को चाहिए की वह पूर्ण निष्ठा से इश्वर की भक्ति करे और अपने मन में किसी प्रकार का दोयम भाव नहीं रखे. पूर्ण निष्ठा और समपर्ण से ही इश्वर की भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है. माया से मन को विरक्त करना अत्यंत ही आवश्यक है. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की सफल व्यंजना हुई है. 
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