कबीर माया मोहनी माँगी मिलै न हाथि मीनिंग Kabir Maya Mohani Mangi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)
कबीर माया मोहनी, माँगी मिलै न हाथि।मनह उतारी झूठ करि, तब लागी डौलै साथि॥
Kabir Maya Mohani, Mangi Mile Na Hathi,
Manah Utari Jhuth Kari, Tab Lagi Doule Sathi.
कबीर माया मोहनी : कबीर साहेब की वाणी है की माया मोहनी है.
माँगी मिलै न हाथि : मांगने पर हाथ नहीं लगती है.
मनह उतारी झूठ करि : मन से उतार देने पर.
झूठ करि : झूठ मानकर, विश्वाश नहीं करना.
तब लागी डौलै साथि : तब यह साथ में डोलती है.
माँगी मिलै न हाथि : मांगने पर हाथ नहीं लगती है.
मनह उतारी झूठ करि : मन से उतार देने पर.
झूठ करि : झूठ मानकर, विश्वाश नहीं करना.
तब लागी डौलै साथि : तब यह साथ में डोलती है.
कबीर साहेब की वाणी है की यह माया मन को भ्रम में डालने वाली है और मन को मोहित करके अपने जाल में फांस लेती है. माया
के पीछे पड़ने पर यह हाथ नहीं लगती है और जब इसे मन से झूठ मानकर उतार दिया जाता है, इसमें से विश्वाश और लगाव को पृथक कर दिया जाता है तो यह पीछे लगी रहती है. जब तक व्यक्ति माया के पीछे लगा रहता है माया दूर भागती है और जब जीवात्मा माया का त्याग कर देती है तो यह पीछे पीछे चलती है, पुनः अपने जाल में फांसने के लिए. प्रस्तुत साखी में विरोधाभाष अलंकार का उपयोग हुआ है. माया तभी अनुचरी होती है जब इसे अपने हृदय से निकाल दिया जाता है. अतः माया को छोड़ कर हरी सुमिरण ही जीवन का सार है.
के पीछे पड़ने पर यह हाथ नहीं लगती है और जब इसे मन से झूठ मानकर उतार दिया जाता है, इसमें से विश्वाश और लगाव को पृथक कर दिया जाता है तो यह पीछे लगी रहती है. जब तक व्यक्ति माया के पीछे लगा रहता है माया दूर भागती है और जब जीवात्मा माया का त्याग कर देती है तो यह पीछे पीछे चलती है, पुनः अपने जाल में फांसने के लिए. प्रस्तुत साखी में विरोधाभाष अलंकार का उपयोग हुआ है. माया तभी अनुचरी होती है जब इसे अपने हृदय से निकाल दिया जाता है. अतः माया को छोड़ कर हरी सुमिरण ही जीवन का सार है.
श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग