कबीर सूषिम सुरति का जीव न जाँणै जाल मीनिंग Kabir Sukhim Surati Meaning Kabir Dohe

कबीर सूषिम सुरति का जीव न जाँणै जाल मीनिंग Kabir Sukhim Surati Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)

कबीर सूषिम सुरति का, जीव न जाँणै जाल।
कहै कबीरा दूरि करि, आतम अदिष्टि काल॥
Kabir Sukhim Surati Ka, Jeev Na Jaane Jaal,
Kahe Kabira Duri Kari, Aatam Adishti Kaal.

कबीर सूषिम सुरति का : सूक्ष्म स्मृति, सूक्ष्म सुरती जो सहजावस्था की है.
जीव न जाँणै जाल : जीव इस रहस्य को नहीं जान पाता है.
कहै कबीरा दूरि करि : कबीर साहेब कहते हैं की दूर करो, अज्ञान को दूर करो.
आतम अदिष्टि काल :
आत्म द्रष्टि को पैदा करो, आदिष्टी को दूर करो.

कबीर साहेब की वाणी है जीव भौतिक जगत की वस्तुओं को ही सब कुछ जानता है. वह आत्म द्रष्टि का उपयोग नहीं करता है. अतः उसे रहस्य को समझने के लिए अज्ञानता को दूर करके ज्ञान, आत्म ज्ञान का उपयोग करना चाहिए. आत्म द्रष्टि से देखने पर वह तत्काल ही दिखने लगेगा. जीवात्मा संसार को सत्य समझता है यही बाधक होता है भक्ति मार्ग पर बढ़ने के लिए.
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