कबीर सूषिम सुरति का जीव न जाँणै जाल मीनिंग

कबीर सूषिम सुरति का जीव न जाँणै जाल मीनिंग

कबीर सूषिम सुरति का, जीव न जाँणै जाल।
कहै कबीरा दूरि करि, आतम अदिष्टि काल॥
Kabir Sukhim Surati Ka, Jeev Na Jaane Jaal,
Kahe Kabira Duri Kari, Aatam Adishti Kaal.

कबीर सूषिम सुरति का : सूक्ष्म स्मृति, सूक्ष्म सुरती जो सहजावस्था की है.
जीव न जाँणै जाल : जीव इस रहस्य को नहीं जान पाता है.
कहै कबीरा दूरि करि : कबीर साहेब कहते हैं की दूर करो, अज्ञान को दूर करो.
आतम अदिष्टि काल :
आत्म द्रष्टि को पैदा करो, आदिष्टी को दूर करो.

कबीर साहेब की वाणी है जीव भौतिक जगत की वस्तुओं को ही सब कुछ जानता है. वह आत्म द्रष्टि का उपयोग नहीं करता है. अतः उसे रहस्य को समझने के लिए अज्ञानता को दूर करके ज्ञान, आत्म ज्ञान का उपयोग करना चाहिए. आत्म द्रष्टि से देखने पर वह तत्काल ही दिखने लगेगा. जीवात्मा संसार को सत्य समझता है यही बाधक होता है भक्ति मार्ग पर बढ़ने के लिए.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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