कबीर यह मन कत गया हिंदी मीनिंग
कबीर यह मन कत गया हिंदी मीनिंग
कबीर यह मन कत गया, जो मन होता काल्हि।डूंगरि बूठा मेह ज्यूँ, गया निबाँणाँ चालि॥
Kabir Yah Man Kat Gaya, Jo Man Hota Kalhi,
Dungari Butha Meh Jyu, Gaya Nibana Chali.
Kabir Yah Man Kat Gaya, Jo Man Hota Kalhi,
Dungari Butha Meh Jyu, Gaya Nibana Chali.
कबीर यह मन कत गया : मन, कहाँ गया.
कत : कहाँ.
जो मन होता : जो मन था.
काल्हि : कल.
डूंगरि : पहाड़, डूंगर, पहाड़ी की चोटी.
बूठा : बरसा हुआ.
मेह ज्यूँ : जैसे बरसात.
गया : चला गया.
निबाँणाँ चालि : निम्नगामी होकर, निचे की तरफ.
कत : कहाँ.
जो मन होता : जो मन था.
काल्हि : कल.
डूंगरि : पहाड़, डूंगर, पहाड़ी की चोटी.
बूठा : बरसा हुआ.
मेह ज्यूँ : जैसे बरसात.
गया : चला गया.
निबाँणाँ चालि : निम्नगामी होकर, निचे की तरफ.
कबीर साहेब ने साधक को सन्देश दिया है की वह पूर्ण निष्ठा से इश्वर के नाम का सुमिरण करे. वह बार बार अपने मन को विचलित नहीं करे. वह मन अब कहाँ गया? से आशय है की जो मन इश्वर की भक्ति में रमा हुआ था, हरी सुमिरण में व्यस्त था आज वह कहाँ गया, क्यों मेरे मन का भाव बदल गया है. आज क्यों वह इश्वर में ध्यान नहीं लगाता है. क्यों वह पुनः माया की तरफ आकर्षित हो रहा है. जैसे पहाड़ का पानी, पहाड़ पर बरसात का पानी बह कर निचे ढुलक आता है, ऐसे ही जिस साधक का मन पक्का नहीं होता है वह पुनः माया की तरफ आकर्षित हो जाता है.
श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |