कागद केरी नाँव री हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

कागद केरी नाँव री हिंदी मीनिंग Kagad Keri Naanv Ree Hindi Meaning

कागद केरी नाँव री, पाँणी केरी गंग।
कहै कबीर कैसे तिरूँ, पंच कुसंगी संग॥
Kagad Keri Naav Ree, Paani Keri Gang,
Kahe Kabir Kaise Tiru, Panch Kusangi Sang.

केरी : के समान, जैसी.
नाँव : नाव, नौका.
पाँणी केरी गंग : विषय वासना रूपी जल.
कहै कबीर कैसे तिरूँ : कबीर साहेब कहते हैं की ऐसे में भव सागर से कैसे पार पाया जा सकता है.
पंच : पाँचों विकार, काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह.
कुसंगी संग : विषय विकारों की संगती.

कबीर साहेब की वाणी है की यह जीवन (मानव जीवन) कागज की नाव के समान है. यह अत्यंत ही कमजोर है जैसे कागज़ होता है, इसका कोई स्थायित्व नहीं होता है. मानव जीवन क्षण भंगुर और नाशवान होता है.विषय वासना रूपी नदी है. ऐसे में कोई कैसे इसे पार लगाए ? वह भी पञ्च विषय विकारों से स्वंय को बचाकर. मानव जीवन अत्यंत ही अस्थिर है और उसके पञ्च विकार लगे पड़े हैं जो उसके जीवन रूपी नांव को डुबोने के लिए तैयार खड़े रहते हैं. कैसे इनसे बचा जाए और अपने जीवन को सुरक्षित रखा जाए. कबीर साहेब का भाव है की केवल हरी के नाम सुमिरण, इश्वर भक्ति से ही इस जीवन की नाव को बचाया जा सकता है. प्रस्तुत साखी में रुपकातिश्योक्ति और अन्योक्ति अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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